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सुनियोजित था राहुल गांधी का खेल

जनप्रतिनिधित्व कानून पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले को निष्प्रभावी बनाने के लिए लाये जा रहे अध्यादेश पर कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी द्वारा यह बयान देना कि यह बकवास है और इसे फाड़ कर फेंक देना चाहिए, यह बता रहा है कि कांग्रेस चुनाव की तैयारी कितने सूक्ष्म तरीके से कर रही है. इस पूरे प्रकरण […]

जनप्रतिनिधित्व कानून पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले को निष्प्रभावी बनाने के लिए लाये जा रहे अध्यादेश पर कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी द्वारा यह बयान देना कि यह बकवास है और इसे फाड़ कर फेंक देना चाहिए, यह बता रहा है कि कांग्रेस चुनाव की तैयारी कितने सूक्ष्म तरीके से कर रही है.

इस पूरे प्रकरण को देखने के बाद ऐसा प्रतीत होता है कि सारी पटकथा पहले से ही तय थी. दरअसल, राहुल गांधी में ऐसा कुछ भी झलकता नहीं है, जिससे देश की जनता उन्हें भावी प्रधानमंत्री के रूप में स्वीकार करे.

यह सारी घटना एक तरह से राहुल गांधी का कद काल्पनिक रूप से बढ़ाने की कोशिश भर थी, ताकि देश की जनता उन्हें समझदार और चिंतक समङो. अंतत: राहुल गांधी ने एक ही झटके में सारे कांग्रेसियों को अपनी ताकत भी दिखा दी. कुल मिला कर यह कहना कि कांग्रेस और राहुल गांधी देश की जनता को बेवकूफ समझते हैं, ज्यादा उचित होगा, वरना खुद अध्यादेश लाकर उसे कौन फाड़ेगा? कांग्रेस के ऐसे यकीन के पीछे ठोस वजह भी दिखती है, वरना रिकार्डतोड़ घोटालों के बावजूद वह 60 साल से भी ज्यादा समय से देश में शासन कैसे करती? राहुल के बयान से यह भी झलकता है कि वह अपने-आप को कांग्रेस और सरकार से ऊपर समझते हैं, यानी सुपर हीरो. क्या यह सब राजतंत्र की ओर इशारा नहीं कर रहा है? लेकिन आम जनता जब ‘इनमें से कोई नहीं’ का बटन दबाना शुरू करेगी, तब सभी राजनेताओं को भी अपनी स्थिति का अंदाजा हो जायेगा. अंत में एक सवाल, आम जनता नेताओं से खफा है, लेकिन खुद दागी को वोट करती है. तब क्या जनता शत-प्रतिशत ईमानदार है? क्या अब जनता पर भी उंगली नहीं उठनी चाहिए?

हरिश्चंद्र कुमार, डंडार कलां, पांकी

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