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फैशन की दुनिया की भेड़चाल

क्षमा शर्मा स्वतंत्र टिप्पणीकार पहली बार बार्बी डॉल के निर्माताओं ने फ्लैट चप्पल पहननेवाली बार्बी बनायी है. जबकि हमारे यहां इन दिनों शक्तिशाली औरत की जो तसवीर पेश की जाती है, उसमें ऊंची एड़ी के जूते-चप्पल एक अनिवार्य तत्व की तरह से पेश किये जाते हैं. पुराने जमाने में स्त्रियों के सौंदर्य और श्रृंगार के […]

क्षमा शर्मा

स्वतंत्र टिप्पणीकार

पहली बार बार्बी डॉल के निर्माताओं ने फ्लैट चप्पल पहननेवाली बार्बी बनायी है. जबकि हमारे यहां इन दिनों शक्तिशाली औरत की जो तसवीर पेश की जाती है, उसमें ऊंची एड़ी के जूते-चप्पल एक अनिवार्य तत्व की तरह से पेश किये जाते हैं.

पुराने जमाने में स्त्रियों के सौंदर्य और श्रृंगार के जो मानक थे-चूड़ी, बिछुआ, सिंदूर, बिंदी, उनकी जगह अब नये मानकों ने ले ली है, जिनमें ऊंची एड़ी, अंगरेजी, पश्चिमी वेशभूषा, अग्रेसिव व्यवहार आदि शामिल हैं. मजेदार बात यह है कि औरतों ने कभी कोई मानक नहीं बनाये, बल्कि वे हमेशा दूसरों के बनाये मानकों पर ही खरी उतरने की कोशिश करती रही हैं.

आज के मानकों को बनाने में तो बाजार का बड़ा हाथ है जो औरतों के जरिये उत्पादों को औरत-मर्द, दोनों में लोकप्रिय करना चाहता है. अफसोसनाक यह है कि बाजार के इस फंदे में वे लोग भी जा फंसे हैं, जो समाजसेवा की बात करते हैं. औरत की इस छवि को तोड़ने, उसे नयी छवि और मानक प्रदान करने में उनकी कोई दिलचस्पी नहीं है.

जिस सिमोन द बुआ को स्त्रीवाद आदर की नजर से देखता है, उसी सिमोन के देश फ्रांस में कान फिल्म महोत्सव होता है, जहां जाने और वहां का निमंत्रण पाने पर दुनिया की ग्लैमर वल्र्ड से जुड़ी औरतें धन्य हो जाती हैं. वहीं होनेवाले कान महोत्सव में उन औरतों को रैम्प पर नहीं चलने दिया गया, जिन्होंने ऊंची एड़ी नहीं पहनी थी. क्या इससे ज्यादा नृशंसता की कल्पना हम कर सकते हैं.

जो यूरोप स्त्री आधिकार और मानवाधिकार के लिए हर पल दुबला हुआ जाता है, वहां यह होता है और सब खामोश रहते हैं. इस महोत्सव में दुनियाभर के वे फैशन व्यवसाई भाग लेते हैं, जो औरत को काम देने के बदले, उसके शरीर पर एक इंच मांस भी देखना नहीं चाहते. रसायनों के लेप से पैदा की गयी नकली चमक-दमक और कम से कम कपड़े- औरत के शोषण के ये नये तरीके हैं. मगर उसे ‘एम्पावर्ड’ औरतक का प्रतीक बना कर, उसके शोषण और बदहाली को छिपा लिया जाता है.

यहां तो आजकल हालत यह है कि जो लड़की या औरत पश्चिमी कपड़ों या रहन-सहन से कुछ अलग दिखती है, उसे बहन जी कह कर मजाक उड़ाया जाता है. जबकि पश्चिमी रहन-सहन और ऊंची एड़ी के जूते-चप्पल पहननेवाली औरत को सेक्सी बताया जाता है.

यह एक नये किस्म का श्रेष्ठतावाद और जातिवाद है. कम कपड़े, ऊंची एड़ी के सैंडिल, सजने-संवरने के लिए त्वचा को नुकसान पहुंचाते तमाम तरह के रसायन आज गांव-गांव जा पहुंचे हैं. अफसोस इनके दुष्प्रभावों पर हमारे यहां शायद ही कोई अध्ययन हुआ हो. हम वह देश हैं जहां कोई विचार भेड़चाल की तरह आता है और लोगों में बिना किसी जांच-परख के अपनी जगह बना लेता है. ऊंची एड़ी के जूते-चप्पलों के बारे में पश्चिम में ही शोध हो रहे हैं.

2002 से 2012 तक ऊंची एड़ी के जूते-चप्पलों को पहनने के कारण चोट लगने की घटनाएं दोगुनी हो गयी थीं. इन्हें पहनने से पैर और टखने की मांसपेशियों को नुकसान पहुंचता है. लेकिन फैशन की दुनिया अपने व्यापार को बढ़ाने के लिए जो चाहती है, दुनियाभर की लड़कियां बिना किसी परवाह के उधर चल देती हैं.

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