झारखंड के राज्यपाल डॉ सैयद अहमद का यह कहना कि राज्य में अपराध बढ़ा है. यह आमजन की चिंता को बयान करता है. हर शहर, हर जिले से लेकर गांव-कस्बे तक अपराध के चंगुल में फंसे हैं. कहीं दुष्कर्म, कहीं हत्या, कहीं चोरी तो कहीं लूट, हर दिन का सिलसिला है. और तो और मासूम बच्चों की इज्जत और जान भी सुरक्षित नहीं रही. जिस तरीके से हाल के दिनों में बच्चे हिंसा खास कर यौन हिंसा के शिकार हुए हैं, वह राज्य की सुरक्षा व्यवस्था पर न सिर्फ सवालिया निशान है, बल्कि बेहद शर्मनाक भी है.
बच्चा स्कूल और घर में ही सुरक्षित नहीं होगा, तो और क्या कहा जा सकता है. नक्सली क्षेत्रों में शाम ढले की बात कौन करे, लोग दिन के उजाले में जाने से भी डरते हैं. मगर आज राज्य में कौन-सी जगह महफूज है, जहां अपराध नहीं हो रहा? जवाब है, कोई भी नहीं. चाहे वह राजधानी रांची ही क्यों न हो? अपराधियों का मनोबल इस कदर बढ़ा है कि अब उनके लिए जेल भी कैदगाह नहीं, बल्कि ऐशगाह है. अभी दो दिन पूर्व ही जब देवघर सेंट्रल जेल में छापा मारा गया, तो वहां बंद जमशेदपुर के दुर्दात और सजायाफ्ता अपराधी अखिलेश सिंह के पास से ऐशो-आराम के अनेक सामान बरामद हुए.
जेल से ब्लैक बेरी फोन बरामद होना, इस बात का साफ संकेत है कि राज्य के जेलों में बंद अपराधी वहीं से अपने गिरोहों का संचालन कर रहे हैं. कहने का अभिप्राय यह कि अपराधियों के मन में पुलिस का जरा भी खौफ नहीं है. पुलिस से डरते तो आम लोग हैं. राज्यपाल महोदय ने ठीक ही तो कहा कि पुलिस के पास जाने से लोग डरते हैं, क्योंकि पुलिस उनकी शिकायत सुनने के बजाय उल्टे उन्हें धमकाती है, प्रताड़ित करती है. राज्य सरकार को इस बात को गंभीरता से लेना होगा. झारखंड पुलिस को ऐसी ट्रेनिंग देने की जरूरत है जिससे वह पब्लिक के साथ दोस्ताना व्यवहार बनाये.
लोगों की भावनाओं को समङो और उनके दर्द को महसूस करे. तभी पब्लिक भी पुलिस के साथ मित्रवत तरीके से पेश आयेगी. वरना पुलिस-पब्लिक संघर्ष का खतरा बना ही रहेगा. राज्य सरकार पुलिस को तमाम सुविधाएं तो प्रदान करे ही, उसका मनोबल भी बढ़ाये. उम्मीद की जानी चाहिए कि राज्य सरकार राज्यपाल महोदय की सलाह को तवज्जो अवश्य देगी.