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केंद्र सरकार हल ढूंढ़ने का जिम्मा ले

धनबाद-चंद्रपुरा-रांची रेलमार्ग पर अंगारपथरा हाल्ट के पास लिलटेन अंगारपथरा में जमीन के नीचे भीषण आग लगी हुई है. ऐसा वहां जमीन के नीचे मौजूद कोयले के भंडार में आग फैलने के कारण हुआ है. जिस जगह आग लगी है वहां से रेल लाइन केवल 20 मीटर दूर है. यह भी संभव है कि पटरी के […]

धनबाद-चंद्रपुरा-रांची रेलमार्ग पर अंगारपथरा हाल्ट के पास लिलटेन अंगारपथरा में जमीन के नीचे भीषण आग लगी हुई है. ऐसा वहां जमीन के नीचे मौजूद कोयले के भंडार में आग फैलने के कारण हुआ है. जिस जगह आग लगी है वहां से रेल लाइन केवल 20 मीटर दूर है.
यह भी संभव है कि पटरी के ठीक नीचे भी कोयला दहक रहा हो. ऐसे में इस रेलमार्ग पर रेलगाड़ियों का परिचालन किसी बड़े हादसे को न्योता देना है. यह बात रेलवे के अधिकारी भी जानते हैं.
इसे मजबूरी कहें, लाचारी कहें, लापरवाही कहें या विकल्पहीनता, रेलयात्रियों की जिंदगी जोखिम में डाल कर इस मार्ग पर रेलगाड़ियां चलायी जा रही हैं. अगर यह रेलमार्ग बंद कर दिया जाता है, तो रांची से बिहार, बंगाल, असम वगैरह जानेवाली रेलगाड़ियां बुरी तरह प्रभावित होंगी. इसी डर से इस रेलमार्ग को बंद नहीं किया जा रहा है, जबकि इस मार्ग और कई जगहों पर भी पटरी के किनारे आग लगी हुई हैं.
इस इलाके का कोयला भंडार बीसीसीएल (भारत कोकिंग कोल लिमिटेड) के तहत आता है. देश की सबसे पुरानी कोयला खदानें भी इसी इलाके में हैं. अवैज्ञानिक ढंग से खनन और लापरवाही के वजह से पूरे इलाके में जमीन के नीचे आग फैल चुकी है. झरिया का नाम तो सभी जानते हैं, पर अब यह आग सिर्फ झरिया तक सीमित नहीं रह गयी है. जिस बड़े पैमाने पर धनबाद के आसपास का कोयला क्षेत्र तबाही के दहाने पर है, उसे देखते हुए इसमें केंद्र सरकार को दखल देना चाहिए.
अंतरराष्ट्रीय स्तर की वैज्ञानिक सहायता लेकर तबाही को रोकने या उसे न्यूनतम करने की कोशिश होनी चाहिए. सच तो यह है कि जब तक प्रधानमंत्री खुद इसमें रुचि नहीं दिखायेंगे, कुछ होनेवाला नहीं है. यह काम राज्य सरकार और कोयला कंपनी के बस के बाहर की बात लगता है. क्योंकि अतीत यही बताता है.
बीसीसीएल की गंभीरता का अंदाजा इससे लगाइए कि अंगारपथरा में रेल लाइन को बचाने के लिए डेढ़ वर्षो से खंदक काटी जा रही है. तीन-चार दिन पहले बिजली की कमी के कारण खंदक काटने का काम रुक गया. जिसका नतीजा हुआ कि आग ने विकराल रूप ले लिया. ऐसे में उससे क्या उम्मीद की जाये? अब प्रधानमंत्री की देखरेख में रेलवे और कोयला मंत्रलय को मिल कर कोई हल खोजना चाहिए.

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