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प्रकृति के संकेतों को समझें

पहले मानव समाज आदिम प्रवृत्ति का था, जब उसके पास ज्ञान का अभाव था. उस समय हम प्रकृति को पूज्य मान कर उसके सैकड़ों उपादानों को प्रसाद स्वरूप ग्रहण करते थे. प्रकृति हमेशा से हमारी सहचरी रही है. हम उसके दास हैं. पहले प्रकृति के विरुद्ध कार्य होने पर हम कई तरह से क्षमा-याचना करते […]

पहले मानव समाज आदिम प्रवृत्ति का था, जब उसके पास ज्ञान का अभाव था. उस समय हम प्रकृति को पूज्य मान कर उसके सैकड़ों उपादानों को प्रसाद स्वरूप ग्रहण करते थे. प्रकृति हमेशा से हमारी सहचरी रही है. हम उसके दास हैं. पहले प्रकृति के विरुद्ध कार्य होने पर हम कई तरह से क्षमा-याचना करते थे.
आज हम जैसे-जैसे अपना विकास करते जा रहे हैं, वैसे ही हम प्रकृति पर हावी होते जा रहे हैं. आज हम प्रकृति को अपनी दासी समझते हैं. आज मानव समाज प्रकृति पर हावी हो गया है. आधुनिकीकरण की दौड़ में प्राकृतिक संकेतों को नजरअंदाज किया जा रहा है.
इसी का दुष्परिणाम है कि बेमौसम की बरसात और आंधी-तूफान जैसी प्राकृतिक आपदाएं हमें खून के आंसू रोने के लिए विवश कर रही हैं. इसका सिर्फ एक ही कारण है और वह कि हमने प्रकृति को अपनी दासी समझ लिया है और अपनी सुविधानुसार उसकी नेमतों का दोहन कर रहे हैं.
बड़ा सवाल यह नहीं है कि हम किस रफ्तार से प्राकृतिक संसाधनों का दोहन कर रहे हैं, बल्कि यह है कि आखिर कब तक हम प्राकृतिक संकेतों को दरकिनार कर अंधाधुंध विकास की सीढ़ियां चढ़ते रहेंगे? आज अगर बेमौसम की बरसात से देश के लाखों किसानों की फसलें बर्बाद हो गयीं और देश को आर्थिक नुकसान उठाना पड़ा है, तो उसके पीछे कहीं न कहीं हमारी सोच और अंधाधुंध विकास की गति जिम्मेदार है.
जिसने हमें पोषित किया है, आज हम उसी का शोषण कर रहे हैं. आज हमें खुद ही विचार करना होगा कि हम एकाधिकारवादी औद्योगिक विकास की राह पर चलें या फिर प्रकृति की शरण में चल कर मानव प्रजाति की रक्षार्थ काम करने का प्रयास करें. यह मानव को ही तय करना है.
सुधीर कुमार, राजाभीठा, गोड्डा

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