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बंधुआ मजदूरी से भी बुरा है अनुबंध

लोकतंत्र में सभी नागरिकों को समान अधिकार उनका मौलिक अधिकार है. ऐसे में अनुबंध प्रणाली द्वारा कम वेतन पर प्रतिभाशाली लोगों से काम लेना ठीक नहीं है. यह तो बंधुआ मजदूरी का बदला हुआ स्वरूप है. बंधुआ मजदूरों को भी केवल जीने भर की मजूरी मिला करती थी, आज अनुबंध में भी कर्मचारियों को सिर्फ […]

लोकतंत्र में सभी नागरिकों को समान अधिकार उनका मौलिक अधिकार है. ऐसे में अनुबंध प्रणाली द्वारा कम वेतन पर प्रतिभाशाली लोगों से काम लेना ठीक नहीं है. यह तो बंधुआ मजदूरी का बदला हुआ स्वरूप है.
बंधुआ मजदूरों को भी केवल जीने भर की मजूरी मिला करती थी, आज अनुबंध में भी कर्मचारियों को सिर्फ जीने भर की तनख्वाह मिलती है. अनुबंध और स्थायी रूप से समान पदों पर कार्यरत कर्मचारियों के काम एक ही हैं, तो फिर वेतन और सुविधाओं में फर्क क्यों?
यदि अनुबंध पर कार्यरत कर्मचारियों की योग्यता पर शक है, तो फिर उनसे लंबे समय तक काम क्यों लिया जाता है? वहीं, स्थायी रिक्त पदों को तय समय के अंदर भर क्यों नहीं दिया जाता? ऐसी नौबत ही क्यों आती है कि सरकार अनुबंध पर लोगों को नियुक्त करती है? यह देश के लिए घातक है.
बालचंद साव, ई-मेल से

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