काले काका, सादर प्रणाम, तड़ातड़ सुनिये मेरा परिणाम. बहुत दु:ख के साथ खत लिख रहा हूं कि अब मैं आपको नहीं बचा सकता, क्योंकि अब मेरे सफेद कपड़े गरीबों के आंसुओं से भींग रहे हैं और मेरा कलूटा बदन अपना रंग दिखा दिया है. इनकी चीत्कार भारत को चीर कर स्विस नगरी को जा चुकी हैं, जिसे सुन कर आप भी भयाकुल हो गये हैं.
अब मेरी उमर भी अच्छे से निकल गयी. बच्चे भी पढ़-लिख कर अच्छे पद पर आसीन हो गये हैं. यानी इस काली कमाई की सफेद उपजाई हो चुकी है. अब आगे के बारे में मेरी संतति सोचेगी, क्योंकि उन सबका भी मैनेजमेंट बचपन से ही ठीक-ठाक है.
अब आप भी स्विस के चादर से मुक्त हो जाइए. अफसोस कि मुङो यह रिश्ता तोड़ना पड़ा. रिश्ता तोड़ना तो हमारा खानदानी उसूल है.
आपका था अपना/ सफेदराम फेंकू/ पता: राजनीति नगरिया, गली नंबर-नौ दो ग्यारह, चार सौ बीस.
रवि कुमार गुप्ता, ई-मेल