देश में सरकारें बदलती हैं, पर मानव चूक से उपजी त्रसदियां बदस्तूर जारी हैं. उनमें कमी होने के बजाय वृद्धि ही हो रही है. मानव चूक से हुई रेल दुर्घटनाओं से देश के कितने परिवारों का भविष्य चौपट हो गया, इसका अंदाजा लगाना कठिन है. न जाने कितनी जिंदगियां बर्बाद हो जाती हैं, कितने सपने बिखर जाते हैं और न जाने हमसे कितनी प्रतिभाएं छिन जाती हैं.
हम देहरादून से बनारस जा रही जनता एक्सप्रेस हादसे के संदर्भ में ही बात कर रहे हैं. इसे मानवीय भूल बताया जा रहा है. संभवत: कालांतर में इसकी जांच भी फाइलों में बंद होकर अन्य रेल दुर्घटनाओं की तरह लीपापोती की शिकार हो जायेंगी. आज तक जितने भी बड़े रेल हादसे हुए उन्हें मानवीय भूल बता कर गतालखाते में डाल दिया गया. घटनाओं को लेकर रेल मंत्रालय ने जो नजरिया बना रखा है, उसे हर हाल में बदलना होगा.
सतीश के सिंह, रांची