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किसानों की कब बदलेगी किस्मत!
देश के कई हिस्सों में बेमौसम की बरसात से करीब 50 लाख हेक्टेयर जमीन में खड़ी फसल को भारी नुकसान हुआ है. यह सरकारी अनुमान है, वास्तविक बरबादी इससे कहीं अधिक होने की आशंका है. मोटे अनुमानों के मुताबिक बारिश से हुई आर्थिक तबाही 22 हजार करोड़ से अधिक की है. हालांकि खबरों के मुताबिक, […]
देश के कई हिस्सों में बेमौसम की बरसात से करीब 50 लाख हेक्टेयर जमीन में खड़ी फसल को भारी नुकसान हुआ है. यह सरकारी अनुमान है, वास्तविक बरबादी इससे कहीं अधिक होने की आशंका है. मोटे अनुमानों के मुताबिक बारिश से हुई आर्थिक तबाही 22 हजार करोड़ से अधिक की है.
हालांकि खबरों के मुताबिक, बीमा कंपनियां नुकसान का आकलन एक हजार करोड़ से अधिक नहीं कर रही हैं. प्रभावित इलाकों से किसानों की आत्महत्या की खबरें आने लगी हैं. विपक्ष की मांग के बाद सरकार ने किसानों को राहत देने की घोषणा की है, पर इससे बहुत उम्मीद नहीं बंधती. कृषि क्षेत्र में बर्षो से जारी संकट के कारण बड़ी संख्या में किसान आत्महत्या कर चुके हैं. सिर्फ 2015 में ही यह संख्या 200 से अधिक है.
विडंबना है कि अच्छी फसल के भरोसे ही वृद्धि दर के आठ फीसदी से आगे जाने के दावे करनेवाली सरकार ने बजट में किसानों को बेहतर दाम और आर्थिक सहयोग के लिए कोई संतोषजनक प्रावधान नहीं किया है. भाजपा ने चुनावों में किसानों को लागत से डेढ़ गुनी कीमत देने का वादा किया था, पर अब उसका विशेष ध्यान भूमि अधिग्रहण बिल पास कराने पर है. जबकि, सरकार ने संसद में माना है कि पिछले वर्षो में विशेष आर्थिक जोन के नाम पर ली गयी भूमि का करीब 40 फीसदी हिस्सा खाली पड़ा है. यह किसानों के साथ छल है.
उधर, चीनी मिलों पर किसानों का 17 हजार करोड़ रुपये से अधिक का बकाया है. अन्य फसलों के भी उचित दाम नहीं मिल रहे हैं. 2011 की जनगणना के अनुसार, 26.31 करोड़ लोग (11.88 करोड़ किसान और 14.43 करोड़ कृषि श्रमिक) खेती पर निर्भर हैं. इसमें अस्थायी और मौसमी श्रमिकों को जोड़ लें, तो यह संख्या कुल रोजगार की करीब 60 फीसदी है. परंतु, खेतिहर परिवारों की औसत मासिक आय करीब तीन हजार रुपये ही है.
जीडीपी में कभी 16 फीसदी से अधिक योगदान करनेवाले कृषि क्षेत्र का हिस्सा सिमट कर करीब 13 फीसदी रह गया है. उदारीकरण के जरिये देश में तेज विकास के दावे ढाई दशक से हो रहे हैं, पर किसानों की किस्मत नहीं बदल रही. भारत जैसा कृषि-प्रधान देश किसानों की उपेक्षा कर विकास की राह पर लंबे समय तक अग्रसर नहीं रह सकता. तो समेकित कृषि नीति की दिशा में पहल कब होगी?
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