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छात्रों के साथ शिक्षक भी बेहाल !

।।विवि शिक्षकों का धरना।।सिदो-कान्हू मुर्मू विश्वविद्यालय को केंद्रीय विश्वविद्यालय बनाने की पहल शुरू हुई है. इसकी घोषणा केंद्रीय मानव संसाधन मंत्री कर चुके हैं. लेकिन, अभी यहां की व्यवस्था व कार्यशैली ऐसी है कि इसे विश्वविद्यालय कहने में भी किसी को संकोच हो सकता है. समय पर परीक्षा नहीं लेना, प्रश्न-पत्र को लेकर बवाल तथा […]

।।विवि शिक्षकों का धरना।।
सिदो-कान्हू मुर्मू विश्वविद्यालय को केंद्रीय विश्वविद्यालय बनाने की पहल शुरू हुई है. इसकी घोषणा केंद्रीय मानव संसाधन मंत्री कर चुके हैं. लेकिन, अभी यहां की व्यवस्था व कार्यशैली ऐसी है कि इसे विश्वविद्यालय कहने में भी किसी को संकोच हो सकता है. समय पर परीक्षा नहीं लेना, प्रश्न-पत्र को लेकर बवाल तथा कई विषयों के कोर्स में गड़बड़ी हमेशा से यहां की सुर्खियां बनी हैं.विश्वविद्यालय की आधारभूत संरचना भी स्तरीय नहीं है. अब तक अपनी मांगों को लेकर यहां के छात्र आंदोलन करते रहे हैं. अब शिक्षकों को भी अपनी मांगों के समर्थन में धरना पर बैठना पड़ा.

इस हालत में यहां की शिक्षा व्यवस्था पर किसे भरोसा होगा. झारखंड गठन के बाद लगा कि इस विश्वविद्यालय के दिन बहुरने वाले हैं. लेकिन, अब शायद यही कहा जा सकता है कि इस पर किसी की नजर नहीं है. संताल परगना के इस क्षेत्र में उच्च शिक्षा के लिए तिलकामांझी विश्वविद्यालय भागलपुर से अलग कर एसकेएमयू बनाया गया. लेकिन विश्वविद्यालय बनने के बाद यहां के छात्रों की हालत पहले से ज्यादा खराब हो गयी. कभी भी समय पर परीक्षा नहीं ली गयी. नतीजतन यहां पढ़ाई कर रहे छात्रों को स्नातक की डिग्री हासिल करने में चार से पांच साल तक का समय लग जाता है. हालांकि विश्वविद्यालय की दशा सुधारने के कुछ प्रयास हुए हैं, पर वे नाकाफी ही साबित हुए हैं. झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन दुमका से ही विधायक हैं. अगर दुमका को संवारना है तो पहले यहां के विश्वविद्यालय की व्यवस्था में सुधार की जरूरत है. यदि शिक्षक अपनी मांगों को लेकर आंदोलन पर उतरेंगे तो पढ़ाई कैसे होगी.

इसके लिए जिम्मेवार कौन है? शिक्षकों की मांग भी जायज है. ये शिक्षणगण प्रोन्नति, भत्ता व बकाये भुगताने की मांग कर रहे हैं. क्या विश्वविद्यालय के पास इतनी राशि नहीं है कि इनके कार्यो के बदले बकाये राशि का भुगतान कर दिया जाये.कहा जा सकता है कि यह सब अदूरदर्शिता व अनदेखी का नतीजा है. प्रोन्नति का लाभ यहां के शिक्षकों को क्यों नहीं मिले. इनकी गलती क्या है? क्या एसकेएमयू से जुड़ना इनके लिए घातक साबित हुआ? इस पर सरकार व राजभवन दोनों को गौर करना चाहिए. पहले से ही विश्वविद्यालय में शिक्षकों की कमी है. ऐसे में विश्वविद्यालय में अव्यवस्था रहने से काम नहीं चलने वाला. इससे छात्रों का भविष्य जुड़ा हुआ है. विश्वविद्यालय की व्यवस्था को समय रहते दूर करने की पहल होनी चाहिए. शिक्षकों की जायज मांगों को अवश्य पूरा करना चाहिए.

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