16 करोड़ में बिके युवराज, 8 साल में 8 गुना बढ़े दाम! दिनेश कार्तिक को आरसीबी ने साढ़े दस करोड़ में खरीदा. एंजेलो मैथ्यूज साढ़े सात करोड़ में, जहीर खान चार करोड़ में बिके.
नीलामी खत्म. 282 खिलाड़ियों को नहीं मिले खरीदार. ये बातें किसी पशु मेले या गाय/बैल के हाट की नहीं हैं, बल्कि उन सम्माननीय क्रि केटरों के लिए प्रयुक्त हुई हैं, जिन्हें हम सिर-आंखों पर बिठाये रखते हैं और जो भारत का मान और धाक पूरी दुनिया अपनी हुनर की बदौलत बढ़ाते रहे हैं.ऐसे शब्दों का प्रयोग उन सम्माननीय खिलाड़ियों के लिए ऐसी-वैसी जगहों पर नहीं, बल्कि सम्मानित पत्र-पत्रिकाओं के मुख्य पृष्ठ पर छपते रहे हैं. उन महान क्रि केटरों के प्रति हमारी क्या दृष्टि है या उनका हम कितना सम्मान करते हैं, उपर्युक्त शब्दों के उनके लिए इस्तेमाल से पता चलता है. मुङो लगता है, उन महान खिलाड़ियों के लिए ऐसे शब्द गाली से कम नहीं हैं.
हैरत तो तब होती है, जब किसी अन्य जगह से तो छोड़िए, स्वयं उन खिलाड़ी बंधुओं की ओर से भी कोई प्रतिरोध का स्वर नहीं उठता. देश की गौरव गाथा लिखने वालों के प्रति हमारे देश की क्या सोच है और देश में सम्मानीय लोगों के आदर-अनादर की कैसी भद्दी परंपरा चला रखी है, इसका पता चलता है. कम से कम भारत में ऐसी गलत और क्षुद्र-अभद्र परंपरा तो नहीं थी. ऐसे भद्दे और अपमानजनक शब्दों का प्रयोग उस अमानवीय पूंजीवादी संस्कृति या मानसिकता का हिस्सा है, जिसमें व्यक्ति या मनुष्य से बड़ा है पैसा. इस संस्कृति में मानव, मानवीय मूल्य और मानवीय संवेदना का कोई मोल नहीं है. ऐसी संस्कृति में जब कोई खिलाड़ी सट्टा बाजार का हिस्सा बन जाये या उसके हार जाने पर जूते-टमाटर फेंके जायें, उसके घर की दीवार ढहायी जाये, तो आश्चर्य क्या है?
डॉ बीएन ओहदार, रांची