नयी सरकार के गठन के बाद झारखंड को विकास के राजमार्ग पर सरपट दौड़ाने की चहुंओर कवायद होने की सुगबुगाहट है. केंद्र की भाजपानीत सरकार के गठन के बाद यहां उद्योग-धंधों को बढ़ावा देने के प्रयास में लगी है, मगर इस राह में सबसे बड़ा रोड़ा भूमि अधिग्रहण से सरकार बेचैन है.
आनन-फानन में अध्यादेश लाने में केंद्र ने हड़बड़ी दिखायी. नये बिल में निजी कंपनियों और कॉरपोरेट जगत को हरसंभव फायदा पहुंचाने का काम किया है. सरकार ने किसानों के हितों को ताख पर रख दिया है. केंद्र द्वारा ऐसा किया जाना उसकी मजबूरी रही होगी, लेकिन राज्य सरकार को तो अपना विरोध जताना चाहिए था. इस मामले में भी राज्य सरकार ने चुप्पी साध कर केंद्र के फैसले को शिरोधार्य किया है. इससे लगता है कि सूबा कंपनियों के जाल में फंसता जा रहा है.
महादेव महतो, बोकारो