हमारे देश में एक नौकरी पर तकरीबन पांच लोग निर्भर होते हैं. इसका अर्थ हुआ कि अगर 60 लाख नौकरियां होंगी, तो तीन करोड़ लोगों का जीवन-यापन सुदृढ़ होगा. अगर विकास दर साढ़े चार से साढ़े आठ प्रतिशत पर पहुंच जाये, तो 12 करोड़ लोगों का जीवन पटरी पर आ जायेगा. ऐसे में ओबामा के दौरे से हमें एक बात तो समझ में आ ही गयी है कि अगर हमारे देश से लाल फीताशाही खत्म हो जाये, तो हम तीन-चार साल में देश के एक बेहतर स्थिति में खड़ा कर सकते हैं.
भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमेरिका के राष्ट्रपति बराक ओबामा ने दोनों देशों की सीइओ बैठक में जो भाषण दिये थे, उसमें दोनों ने यही कहा था कि कैसे अपने-अपने देशों को आर्थिक रूप से बहुत ऊपर पहुंचाना है. प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि जो अमेरिका हमको सिखा सकता है, वह है कि कैसे देश को आर्थिक व्यवस्था में ऊपर लाना चाहिए. इसका अर्थ यह हुआ कि अमेरिका में आर्थिक रूप से जो फायदे और समृद्धि आयी है, वही समृद्धि भारत में कैसे आ सकती है, इसके बारे में सोचना शुरू कर देनी चाहिए. अमेरिका के बारे में एक बहुत ही मशहूर कहावत कही जाती है- ‘अमेरिकाज बिजनेस इज बिजनेस’ यानी सिर्फ व्यापार करना ही अमेरिका का व्यापार है. व्यापक अर्थो में अगर हम इस वाक्य के मायने तलाश करें, तो हम इस निष्कर्ष पर पहुंचते हैं कि ज्यादा से ज्यादा फायदे और ऊंची से ऊंची समृद्धि के लिए अमेरिका ने सिर्फ और सिर्फ व्यापार करने को ही अपना व्यापार बना लिया है. पिछले दो सौ वर्षो में अमेरिका ने खुद को व्यापारिक दृष्टि से इतना समृद्ध बनाया है और उसने मध्यवर्ग की एक ऐसी फौज तैयार कर दी है, जिसके पास एक खुशहाल जिंदगी गुजारने के लिए दुनिया की हरसंभव चीजें मौजूद हैं.
वर्तमान में अमेरिका दुनिया का सबसे मजबूत ‘मिडिल क्लास स्टेट’ है. आज अमेरिकी अर्थव्यवस्था के थोड़ा-सा भी कमजोर होने से दुनिया की कई अर्थव्यवस्थाएं चरमरा जाती हैं. नरेंद्र मोदी का भाषण इसी बात की तस्दीक करना था कि कैसे आगामी वर्षो में व्यापारिक दायरे को विस्तार देकर भारत को अमेरिका जैसा समृद्ध देश बनाया जाये. यहां भी गरीबी को दूर कर मध्यवर्ग को विस्तार दिया जाये, जिसके पास सभी बुनियादी चीजें मौजूद हों. कुल मिला कर ओबामा और मोदी की यह व्यापारिक रणनीति हमारे हित में है, जिसका दूरगामी फायदा होने की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता है.
भारत की आर्थिक समृद्धि के लिए सबसे बड़ी समस्या रेड टेप यानी लाल फीताशाही की है. किसी काम को महीनों-वर्षो तक लटकाये रहने की लाल फीताशाही की आदत की वजह से बहुत से प्रोजेक्ट अपने देर से पूरा होने के खर्चे को संभाल नहीं पाते, नतीजा- आगे चल कर उनमें से कई प्रोजेक्ट बंद हो जाते हैं. ऐसी स्थिति में लोगों की कौशल क्षमता और आर्थिक समृद्धि पर नकारात्मक असर पड़ता है. इसलिए कार्यप्रणाली की तरलता के मद्देनजर लाल फीताशाही को खत्म करने की बात कही जाती है, ताकि सारे काम समय पर पूरा हो सके. ओबामा और मोदी दोनों ने समान रूप से भारत में लाल फीताशाही पर अपनी चिंता व्यक्त की और कहा कि यह आर्थिक प्रगति में बहुत बड़ी बाधा है. हालांकि इस समस्या के बारे में ओबामा ने प्यार से समझाया कि कैसे यह भारत के लिए अच्छा नहीं है, लेकिन मोदी ने स्पष्ट कहा कि भारत को इससे निजात दिलाना ही होगा.
दुनिया की तमाम अर्थव्यवस्थाओं के आसान व्यापारिक गतिविधियों के मामले में भारत की रैंकिंग 142 है, जबकि अमेरिका शुरू की रैंकिंग वाले दस बड़े देशों में शुमार है. नरेंद्र मोदी ने भारत को 142वें पायदान से नीचे लानी की ठान ली है कि कैसे व्यापार को आसान बना कर दुनिया के तमाम बड़े निवेशकों को अपनी तरफ आकर्षित किया जाये, जिससे कि ज्यादा से ज्यादा रोजगार का सृजन हो. मोदी का मानना है कि इस रैंकिंग को कम करना बहुत जरूरी है. भारत जैसे बड़े लोकतंत्र की 5-6 प्रतिशत के आसपास पर सिमटी विकास की दर के नजरिये से मोदी का यह बहुत महत्वपूर्ण लक्ष्य है. यह रैंकिंग कम से कम 50 पर नहीं तो 80 पर जरूर पहुंचनी चाहिए. अगर सचमुच यह 80 पर भी पहुंच जाती है, मैं समझता हूं कि भारत के आर्थिक नजरिये से एक बड़ी उपलब्धि होगी.
अकसर लोग यह सवाल उठाते हैं कि भारत में बेतहाशा गरीबी है और ज्यादातर युवा बेरोजगारी की मार झेल रहे हैं, ऐसे में इसे अमेरिका की तरह एक मध्यवर्गीय देश कैसे बनाया जा सकता है? मेरा मानना है कि यह संभव है, अगर हम व्यापारिक गतिविधियों को आसान बनायें और अर्थनीतियों में तरलता लायें, तो लोग हमारी ओर आकर्षित होंगे. इसमें मेक इन इंडिया एक महत्वपूर्ण भूमिका अदा कर सकता है. हमारे सारे पूर्वी देश- जैसे जापान, ताइवान, कोरिया, सिंगापुर और हांगकांग, भी मिडिल क्लास स्टेट बनने की राह पर हैं और कुछ तो बन भी गये हैं. अब तो चीन भी तकरीबन इसी आर्थिक डगर पर चल पड़ा है. अब सवाल है कि ये मिडिल क्लास स्टेट कैसे बनते हैं? जब रोजगार बढ़ता है, नौकरियों का सृजन होता है, तब लोगों की आर्थिक क्षमता में वृद्धि होती है और धीरे-धीरे एक सशक्त मध्यवर्ग विकसित होता है. रोजगार कैसे बढ़ता है? जब देश में बड़े पैमाने पर विदेशी निवेश होता है. निवेशक क्यों आते हैं? जब लाल फीताशाही नहीं होती है. अगर हम अपनी लाल फीताशाही को काट दें और इन्फ्रास्ट्रर पर फोकस करें, तो नौकरियां बढ़ने लगेंगी. हमें भी मिडिल क्लास स्टेट बनने की इस राह पर चलने की जरूरत है और शायद मोदी अमेरिकी राष्ट्रपति ओबामा के साथ मिल कर इसी राह को मजबूत करने के लिए जुटे हुए हैं.
मौजूदा भारत को हर महीने दस लाख नौकरियों की जरूरत है. और यह तब होगा, जब देश का विकास दर 8-9 प्रतिशत के करीब पहुंच जायेगा. कुछ साल पहले तक यह विकास दर 9 प्रतिशत था, लेकिन पिछली सरकार की कुछ कमजोर आर्थिक नीतियों के चलते यह साढ़े चार प्रतिशत पर पहुंच गया. इस साल यह साढ़े पांच प्रतिशत के आसपास है. उम्मीद है कि अगले साल यह साढ़े छह प्रतिशत तक पहुंच जाये और फिर उसके अगले साल साढ़े सात प्रतिशत तक होने की संभावना है. इस तरह यह धीरे-धीरे तीन-चार साल में बढ़ जायेगा. हमारे देश में एक प्रतिशत विकास दर बढ़ने का अर्थ है- 1.5 मिलियन यानी 15 लाख नौकरियां. एक आदमी को नौकरी मिलने का अर्थ है- अप्रत्यक्ष रूप से तीन और नौकरियों का सृजन. इस हिसाब से देखें तो एक प्रतिशत विकास दर बढ़ने से 60 लाख प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष नौकरियों का सृजन होता है. एक दूसरी बात- हमारे देश में एक नौकरी पर तकरीबन पांच लोग निर्भर होते हैं. इसका अर्थ हुआ कि अगर 60 लाख नौकरियां होंगी, तो तीन करोड़ लोगों का जीवन-यापन सुदृढ़ होगा. अब अंदाजा लगाया जाये कि अगर विकास दर साढ़े चार से साढ़े आठ प्रतिशत पर पहुंच जाये, तो 12 करोड़ लोगों का जीवन पटरी पर आ जायेगा. ऐसे में ओबामा के दौरे से हमें एक बात तो समझ में आ ही गयी है कि अगर हमारे देश से लाल फीताशाही खत्म हो जाये, तो हम तीन-चार साल में देश को एक बेहतर स्थिति में ला खड़ा कर सकते हैं.
(वसीम अकरम से बातचीत पर आधारित)
गुरचरण दास
वरिष्ठ टिप्पणीकार
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