प्रसिद्ध अमेरिकी दार्शनिक विल डुरैंट ने कहा था कि ‘कुछ नहीं कहना, खास कर बोलते समय, कूटनीति की आधी कला है’. पर, अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा और हमारे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पिछले तीन दिनों में रिश्तों की नजदीकियों से कूटनीति की पारंपरिक समझदारियों को बहुत पीछे छोड़ दिया है.
वार्ताओं, समझौतों और घोषणाओं की सीमाओं से द्विपक्षीय संबंधों को बाहर ले आने तथा उसमें व्यक्तिगत समझ का आयाम जोड़ने के कारण ओबामा की भारत यात्र कई मायनों में सफल रही है. इसे मोदी की विदेश नीति में एक उल्लेखनीय अध्याय कहा जा सकता है. अपने दौरे के आखिरी चरण में युवाओं और छात्रों से बातचीत में अमेरिकी राष्ट्रपति ने कहा कि उनके देश को भारत की सहभागिता और मित्रता पर गर्व है.
ओबामा ने जहां गांधी, विवेकानंद और डॉ मार्टिन लूथर किंग जूनियर के विचारों को रेखांकित किया, वहीं भारत और अमेरिका की लोकतांत्रिक उपलब्धियों की उत्कृष्टता का उल्लेख करते हुए कहा कि साधारण पृष्ठभूमि के बावजूद वे और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपने-अपने देशों के सर्वोच्च पदों तक पहुंचे हैं. इस यात्र का महत्व इस बात में भी है कि दोनों देशों ने आर्थिक और सामरिक क्षेत्र में संबंधों को सुदृढ़ बनाने की दिशा में कदम बढ़ाया है. हालांकि पिछले कुछ महीनों से वरिष्ठ अमेरिकी मंत्रियों की लगातार आवाजाही और फिर प्रधानमंत्री की अमेरिका यात्र की सफलता के बाद से ही संकेत मिलने लगे थे कि द्विपक्षीय संबंधों में पिछले कुछ वर्षो से आये ठहराव को गति मिल सकती है.
राष्ट्रपति ओबामा के गणतंत्र दिवस समारोह में मुख्य अतिथि बनने और प्रधानमंत्री के साथ बनी व्यक्तिगत प्रगाढ़ता से स्पष्ट है कि दोनों देश संबंधों की व्यापक संभावनाओं को धरातल पर उतारने के लिए प्रयासरत हैं. इस प्रयास में दोनों देशों की आर्थिक स्थितियां उत्प्रेरक की भूमिका निभा रही हैं. कुछ दिन पूर्व राष्ट्रपति ओबामा ने अपने ‘स्टेट ऑफ द यूनियन’ भाषण में अमेरिकी अर्थव्यवस्था में सुधार की घोषणा के साथ देश में अधिक उत्पादन और रोजगार के अवसर पैदा करने की आवश्यकता पर बल दिया था. भारत में मोदी सरकार भी ‘मेक इन इंडिया’ कार्यक्रम के तहत निर्माण को प्राथमिकता देने की दिशा में काम कर रही है. इस संदर्भ में दोनों ही देश वैश्विक व्यापार में चीन के वर्चस्व को भी कम करना चाहते हैं. यही कारण है कि इस यात्र में परमाणु निवेश में गतिरोध को कम करने का गंभीर प्रयास किया गया है. इसी तरह रक्षा और ऊर्जा के क्षेत्र में भी निवेश और तकनीकी सहयोग की दिशा में प्रगति हुई है. ओबामा ने चार बिलियन डॉलर के सरकार-समर्थित निवेश की घोषणा भी की है. इसमें आधी राशि गैर-परंपरागत ऊर्जा के क्षेत्र में खर्च होगी, जबकि भारत के पिछड़े ग्रामीण इलाकों में लघु और मध्यम आकार के उद्यमों के लिए एक बिलियन डॉलर की राशि दी जायेगी. एक बिलियन डॉलर अगले दो वर्षों तक अमेरिकी उत्पादों के भारत में लाने पर खर्च होगी.
संबंधों में प्रगति की निगरानी के लिए एक उच्च-स्तरीय समूह भी बनाया गया है. ओबामा ने बताया कि भारत को हो रहे अमेरिकी निर्यात में 2010 के बाद से 35 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है, जिससे वहां अच्छी आमदनीवाली 1.7 लाख नौकरियों को आधार मिलता है, लेकिन यह आंकड़ा कुल अमेरिकी निर्यात का महज एक फीसदी ही है और भारत से होनेवाला निर्यात भी कुल अमेरिकी आयात का मात्र दो फीसदी ही है. उन्होंने इस तथ्य को भी रेखांकित किया कि दोनों देशों के बीच 100 बिलियन डॉलर का व्यापार है, जबकि अमेरिका व चीन के बीच 560 बिलियन डॉलर का व्यापार होता है. ऐसे में अमेरिका भारत में अधिक निवेश की संभावना देख रहा है. भारत में उत्पादन बढ़ने से चीन की आर्थिक बढ़त को भी नियंत्रित किया जा सकता है. यात्र के आखिरी दिन ओबामा ने भारत में महिलाओं, युवाओं और गरीबों के विकास की जरूरत को समझाया. उनकी यात्र एक और अर्थ में यादगार बन गयी है.
धार्मिक और सांस्कृतिक सहिष्णुता के लिए दुनिया अब तक भारत को एक आदर्श के रूप में देखती आयी है, यह पहली बार हुआ है, जब किसी देश के नेता ने हमें बताने की कोशिश की है कि धार्मिक आधार पर विभाजित होकर भारत सफल नहीं हो सकता है. देश में हाल के दिनों की कुछ घटनाओं का विदेश में क्या संदेश जा रहा है, इसे उनके इस बयान में पढ़ा जा सकता है. एक अच्छे मित्र की तरह भारत को ओबामा की बातों पर विचार करना चाहिए और धार्मिक व सांस्कृतिक सौहार्द के साथ समाज के हर वर्ग के विकास की नयी मिसाल बनाना चाहिए.