सरकार ने राजधानी रांची में बड़ी इमारतों के नक्शे पास करने पर रोक लगा दी है. यह काम रांची नगर निगम से होता था. निगम के सीइओ मनोज कुमार को भी उनके पद से हटा दिया गया है.
हाल में सरकार ने कई कड़े फैसले किये हैं. ये फैसले भी उसी की कड़ी हैं. दरअसल, झारखंड में अब तक सत्ता, बिल्डर और निगम के अधिकारियों का गंठजोड़ चलता रहा है. इसका खमियाजा आम जनता को भुगतना पड़ा है. अब इस गंठजोड़ को खत्म करने की पहल की गयी है. पैसे लेकर बड़ी-बड़ी इमारतों के नक्शे पास कर दिये जाते थे. चाहे वे नियम का पालन करते हों या नहीं. रांची में हजारों ऐसी इमारते हैं, जिनके निर्माण में नियमों का पालन नहीं किया गया है.
लोग लाखों रुपये खर्च कर फ्लैट खरीद लेते हैं और बाद में पता चलता है कि निर्माण गैरकानूनी है. रांची में बड़ी-बड़ी इमारतों के अंधाधुंध निर्माण से शहर बदहाल हो गया है. इन सबके चलते जलस्तर तेजी से गिरा है. अपार्टमेंटों में पानी का अभाव होने लगा है. अपार्टमेंट के आसपास जो घर हैं, उनके कुएं सूख गये हैं. कम गहराई वाली उनकी बोरिंग से पानी नहीं निकल रहा है.
बड़ी-बड़ी इमारतों से निकलनेवाले गंदे पानी की निकासी का रास्ता नहीं है. रांची शहर की आबादी तेजी से बढ़ी है और उस स्तर से यहां पेयजल की सुविधा नहीं बढ़ी है. अगर सभी इमारतों में पाइप से पानी की सप्लाई होती, तो बोरिंग की जरूरत ही नहीं पड़ती. बड़ी इमारतें बनाने के नियम हैं. कुछ जगह खाली छोड़नी चाहिए. पार्किग का इंतजाम होना चाहिए. लेकिन स्थिति उलट है. अपार्टमेंट में पार्किग की पर्याप्त व्यवस्था नहीं होने के कारण गाड़ियां सड़कों पर लगी रहती हैं.
इससे सड़कें जाम होती हैं. बिल्डर फ्लैट बेच कर किनारे हो जाते हैं, परेशानी ङोलते हैं वहां रहनेवाले. इसलिए सरकार अब नकेल कस रही है. शहर में बड़े-बड़े कांप्लेक्स बन गये हैं. मेन रोड पर चलने की जगह नहीं है, फिर भी वहां बहुमंजिला इमारतें बनती ही जा रही हैं. कई अस्पताल ऐसे इलाके में बने हैं जहां भीड़-भाड़ होती हैं. मरीज जाम में फंसे रहते हैं. इन समस्याओं का स्थायी समाधान तभी निकल पायेगा जब बड़ी-बड़ी इमारतें मुख्य शहर से हट कर बनें, नये-नये इलाके बसें, वहां सुविधाएं बढ़ें, ताकि रांची शहर पर दबाव कम हो.