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बयानबाजी नहीं, स्थायी हल चाहिए

।।केरेडारी में पुलिस फायरिंग।।हजारीबाग के केरेडारी में रैयतों पर पुलिस ने फायरिंग कर दी, जिसमें एक रैयत की मौत हो गयी. इस घटना के बाद झारखंड के प्रमुख दलों के बड़े नेता केरेडारी पहुंचे और अपने हिसाब से परिजनों को आश्वासन दिया.केरेडारी की घटना झारखंड के लिए कोई नयी घटना नहीं है. जमीन अधिग्रहण को […]

।।केरेडारी में पुलिस फायरिंग।।
हजारीबाग के केरेडारी में रैयतों पर पुलिस ने फायरिंग कर दी, जिसमें एक रैयत की मौत हो गयी. इस घटना के बाद झारखंड के प्रमुख दलों के बड़े नेता केरेडारी पहुंचे और अपने हिसाब से परिजनों को आश्वासन दिया.केरेडारी की घटना झारखंड के लिए कोई नयी घटना नहीं है. जमीन अधिग्रहण को लेकर राज्य बनने के पहले से इस इलाके में रैयतों और विस्थापितों की आवाज पुलिस दबाती रही है.

1978 में सुवर्णरेखा के विस्थापितों पर पुलिस ने गोली चलायी थी, जिसमें तीन लोग मारे गये थे. कोयलकारो परियोजना के विस्थापितों पर गोलियां चली थीं. हाल ही में रांची में नगड़ी में जमीन अधिग्रहण का विरोध करनेवाले ग्रामीणों पर पुलिस का कहर बरपा था. इतना सब होने के बाद भी जमीन अधिग्रहण का कोई स्थायी समाधान नहीं निकल सका है. सरकार की नीति और नीयत साफ नहीं रही है. सरकार चाहे किसी भी दल की हो, झारखंड में ऐसी घटनाएं घटती रही हैं.

किसी भी दल ने ईमानदारी से कोई प्रयास नहीं किया. यह जरूरी है कि राज्य का विकास तभी होगा, जब यहां नयी परियोजनाएं लगेंगी, नयी कंपनियां आयेंगी, पर इसके लिए जमीन चाहिए. जिसकी जमीन है, वे जमीन देना नहीं चाहते. कारण, सरकार जमीन कौड़ियों के भाव लेती है. रैयतों का ख्याल नहीं किया जाता. यह जमीन ही है जिसके बल पर रैयतों का जीवन चलता है. जब जमीन नहीं रहेगी, तो वे खायेंगे क्या? इसलिए दोनों में तालमेल होना चाहिए. जितना महत्वपूर्ण विकास है, उतना ही महत्वपूर्ण है रैयतों को उचित भुगतान/मुआवजा अन्य सुविधाएं. जिनकी जमीन जा रही है, वे विरोध करेंगे ही. बंदूक के बल पर विरोध दबाना जनतांत्रिक नहीं है. केरेडारी मामले में इस बात की जांच होनी चाहिए कि ऐसे कौनसे हालात पैदा हो गये थे कि फायरिंग करना जरूरी हो गया. यह फायरिंग पुलिस की भूमिका पर सवाल उठाती है. उसमें धैर्य क्यों नहीं होता? सवाल तो राजनेताओं से भी पूछा जाना चाहिए.

अर्जुन मुंडा और बाबूलाल मरांडी यहां मुख्यमंत्री रहे हैं. सुदेश महतो उपमुख्यमंत्री रहे हैं. इनके कार्यकाल में भी भूमि अधिग्रहण के लिए बेहतर नीति क्यों नहीं बनी? नीति ऐसी बने, इतनी सुविधाएं हों कि रैयत जमीन देने खुद अ़ागे आयें. नगड़ी का विवाद भी सुलझा, पर इसके पहले वहां कितनी घटनाएं घटीं. अगर सरकार पहले ही निर्णय कर लेती (जो बाद में किया गया), तो नगड़ी सुलगती नहीं. सरकार सबक ले और ठोस नीति लागू करे, ताकि झारखंड के अन्य हिस्सों में ऐसी घटनाएं घटें.

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