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यह स्थिति बदली जानी चाहिए

* योजना राशि का धीमा खर्च बिहार बीमारू राज्य की छवि से मुक्त होने की गंभीर कोशिश में जुटा है. कहा जा सकता है कि इसमें काफी हद तक सफलता भी मिली है. आज की तारीख में यहां बदलाव के जो संकेत दिख रहे हैं, उनकी देश–दुनिया में चर्चा हो रही है. सूबे की सीमा […]

* योजना राशि का धीमा खर्च

बिहार बीमारू राज्य की छवि से मुक्त होने की गंभीर कोशिश में जुटा है. कहा जा सकता है कि इसमें काफी हद तक सफलता भी मिली है. आज की तारीख में यहां बदलाव के जो संकेत दिख रहे हैं, उनकी देशदुनिया में चर्चा हो रही है. सूबे की सीमा से बाहर बैठे लोग कुछ ज्यादा ही उत्सुकता से बिहार में बदलाव पर नजर लगाये बैठे हैं. इसके अतिरिक्त स्थानीय जनता की उम्मीदें भी काफी बढ़ गयी हैं.

ऐसी स्थिति में सरकार प्रशासन के कंधे पर बड़ी जिम्मेवारी है, जिसका एहसास सूबे के शासन तंत्र को नेतृत्व दे रहे लोगों को जरूर होगा. पर, लोगों की उम्मीदों के अनुरूप चीजें आगे बढ़ें, इसके लिए जरूरी है कि सब कुछ सुनियोजित तरीके से चले. कामकाज की निर्धारित गति में कोई व्यवधान नहीं पैदा हो, यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए. पर, यह सब तभी संभव है, जब हर स्तर पर लोग चौकस रहें.

अपनी जिम्मेवारियों के प्रति संवेदनशील रहें. यह गंभीर मामला है कि किसी वित्त वर्ष का एक चौथाई हिस्सा हाथ से निकल जाये और काम के नाम पर कहीं कुछ भी नहीं हो. तीन महीने का समय निकल जाने के बाद का हिसाब अगर यह बताता है कि योजना राशि का महज 10वां हिस्सा ही खर्च हो सका है, तो यह मामला सचमुच गंभीर है. तब तो और भी, जब यह भी पता चले कि कई विभागों में एक पैसा भी खर्च नहीं हो सका.

इससे पता चलता है कि इन विभागों में कामकाज की गति पर नियंत्रण ढीला पड़ गया है. इसे तुरंत ठीक किया जाना चाहिए. यह बहाना ठीक नहीं है कि वित्त वर्ष के आरंभ में योजना बना कर उस पर काम शुरू करने में देरी होती है. यह भी नहीं चल सकता कि राशि आवंटन में भी विलंब के चलते इस तरह की स्थिति पैदा होती है. इसी प्रदेश में कुछ ऐसे विभाग भी हैं, जिनके हिस्से आये पैसे से 35-36 फीसदी तक इसी तीन महीने में खर्च किये गये हैं.

दूसरी ओर ऐसे विभाग भी हैं, जहां खर्च का आंकड़ा शून्य है. सवाल उठता है कि जहां 35 फीसदी से अधिक योजना राशि खर्च हुई है, वहां आखिर योजनाएं कैसे बनी होंगी? वहां का आवंटन कहां से आया होगा? ऐसे चंद विभागों में 25 फीसदी से अधिक राशि कैसे खर्च हो गयी? अगर खर्च में सुस्ती के पीछे सचमुच कहीं कोई कारण हो भी, तो उसका निवारण होना चाहिए. यह काम वही लोग करेंगे, जिन्हें इन पिछड़े हुए विभागों की जिम्मेवारी दी गयी है. अगर लगातार यह स्थिति बनी रहती है, तो निश्चित तौर पर इससे सूबे की सेहत प्रभावित होगी. विकास की रफ्तार धीमी पड़ सकती है.

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