झारखंड में किसान बदहाल हैं. सूखे की मार ङोलते रहने तथा सरकारी उपेक्षा की वजह से पिछले कुछ वर्षो मे झारखंड के किसानों की बेरोजगारी बेतहाशा बढ़ी है.
कारण, यहां न तो अबतक सिंचाई की व्यवस्था बहाल हुई और न वैकिल्पक रोजगार के अवसर बढ़े. इसके फलस्वरु प कामधंधे की तलाश मे यहां के युवकगण भारी तादाद मे अन्य प्रदेश के बड़े शहरो की ओर पलायन कर गये है. परंतु हमारे विधायक और मंत्री यहां के किसी भी गांव का दौरा करके उनके स्थिति से अवगत होना मुनासिब नहीं समझते.
प्राय: यहां के सभी गांवों की दशा दयनीय हो चुकी है. गांवो के नवयुवक अब घर में नहीं रहते. इनका नया ठिकाना अब झारखंड से बाहर है. ऐसे में अक्सर ये भी खबरें भी मिलती रहती है कि फलां के बेटे की अमुक शहर के बहुमंजिले इमारत में काम करते वक्त गिर कर मौत हो गई या फलां गांव की कई किशोरियां मानव तस्करों द्वारा बेची गयी. मगर ये मुद्दे कभी भी चुनावी मुद्दे नहीं बन पाए. स्थानीय नीति के अभाव में यहां के युवकों की छोटी-मोटी नौकरियां ग्लोबल प्रतियोगिता बन कर बाहरी प्रतिद्वंदी द्वारा हथिया ली जाती है. यहां के भोले-भाले नवयुवक ठगे रह जाते हैं. झारखंड की कला व सांस्कृतिक विधाएं भी उपेक्षा के शिकार है. पर ऐसी समस्याएं कभी किसी पार्टी का चुनावी मुद्दा कभी नहीं बनी. झारखंड की जमीनी हकीकत पर नजर डालने से ऐसी अनेक समस्याएं दिखती हैं, जो दिनोंदिन और अधिक विकराल होती जा रही है. ऐसे में झारखंडी हित में सरकार को इन बुनियादी समस्याओं पर शीघ्र ध्यान देने की आवश्यकता है. सरकार की ओर से किसानों और बेरोजगारों पर ध्यान न दिये जाने से लोगों में कुंठा बढ़ रही है.
महादेव महतो, बोकारो