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मतदाताओं के विवेक से तय होगा झारखंड का भविष्य

प्रो के एन तिवारी प्राध्यापक, दिल्ली विश्वविद्यालय आजकल हो यह रहा है कि जिस नेता के भ्रष्टाचार की खबरें देश-दुनिया में फैली हो, वह कई बार अपने क्षेत्र के लिए विकास के कुछ काम करता है और क्षेत्र के लोगों के हित साधने का जरिया बनता है, तो अगली बार फिर से चुनाव जीत जाता […]

प्रो के एन तिवारी
प्राध्यापक, दिल्ली विश्वविद्यालय
आजकल हो यह रहा है कि जिस नेता के भ्रष्टाचार की खबरें देश-दुनिया में फैली हो, वह कई बार अपने क्षेत्र के लिए विकास के कुछ काम करता है और क्षेत्र के लोगों के हित साधने का जरिया बनता है, तो अगली बार फिर से चुनाव जीत जाता है. इस स्थिति से निजात की जरूरत है.
किसी लोकतांत्रिक शासन प्रणाली वाले देश में, लोकतंत्र की सुरक्षा की जिम्मेवारी जितनी नेता पर होती है, उससे कहीं अधिक जिम्मेदारी उस देश की जनता पर होती है. यदि कोई कुशासन प्रवृत्ति वाला व्यक्ति यदि सत्ता में आना चाहता है, तो मेरा मानना है कि उसे ऐसा करने से मतदाता ही रोक सकते हैं, कोई और नहीं. जब से भारतीय चुनाव पद्धति में कुछ परिवर्तन हुआ है, तब से आम मतदाता अपना मत बेहिचक, बिना रोक टोक के देने लगे हैं. इसलिए अब यह नहीं कहा जा सकता है कि उन्हें वोट नहीं देने दिया गया.
ऐसी स्थिति में अपनी सरकार चुनते समय मतदाताओं को इस बात पर गंभीरता से विचार करना चाहिए कि वह किसे अपना नेता चुने. चुनाव मैदान में खड़ा कौन सा ऐसा व्यक्ति या नेता है, जो आज की तारीख में उसके प्रदेश के लिए हितकारी साबित होगा, प्रदेश और उसकी जनता की भलाई के लिए तत्पर होगा. वोट उसे ही देना चाहिए, जो राज्य और देश के विकास के बारे में सोचता हो और जिसके पास इसके लिए सोच हो. विधानसभा चुनाव के बहाने झारखंड के मतदाताओं को एक बार फिर से मौका मिला है कि वह अपना सही नेतृत्व चुने. एक ऐसा नेतृत्व चुने, जो राज्य को विकास की दिशा में आगे ले जा सके.
झारखंड की एक समस्या विधानसभा सीटों की संख्या का कम होना भी है. इसके कारण कई बार एक-दो विधायकों के फैसले के ऊपर पूरी सरकार निर्भर हो जाती है. इसका खामियाजा राज्य की आम जनता को भुगतना पड़ता है. इसलिए राज्य की जनता इस चुनाव में इस पर विचार करे. ऐसे लोगों को वोट देने से पहले सौ बार सोचे. दूसरे शब्दों में कहें तो झारखंड को एक स्थायी और मजबूत सरकार की दरकार है, न कि समझौतों के सहारे चलने वाली सरकार. मतदाता सोच-विचार कर ऐसे जनप्रतिनिधि और ऐसी सरकार चुने, जिसके शासनकाल में विकास से ज्यादा ट्रांसफर-पोस्टिंग की बातें न होता रहे. झारखंड प्राकृतिक संसाधनों की वजह से विख्यात रहा है, लेकिन आज राजनीतिक कारणों से कुख्यात है.
आज देश में झारखंड की चर्चा भ्रष्टाचार, घोटाले आदि के कारण ही ज्यादा होती है, जबकि झारखंड खनिज संपदा से भरपूर राज्य है. राज्य में संसाधनों की कमी नहीं है, फिर भी वहां के निवासी गरीब है.
दूसरे राज्य के आदिवासी जितने परिपक्व हैं, उनकी तुलना में झारखंड के आदिवासी अब भी दूसरों के कहने पर अपना निर्णय लेते या बदलते हैं. इसका कारण उनकी शिक्षा, विकास और उनका स्वभाव भी हो सकता है. यही कारण है कि राज्य में आदिवासियों को बरगलाया जाता रहा है. इसलिए जरूरत इस बात की है कि जनता हर नेता को खुद की कसौटी पर कसे. जिन नेताओं के अंदर क्षेत्र, राज्य और देश का विकास निहित हो, उसे ही अपना जनप्रतिनिधि बनायें.
आजकल हो यह रहा है कि जिस नेता के भ्रष्टाचार की खबरें देश-दुनिया में फैली हो, वह कई बार अपने क्षेत्र के लिए विकास के कुछ काम करता है और क्षेत्र के लोगों के हित साधने का जरिया बनता है, तो अगली बार फिर से चुनाव जीत जाता है. इस स्थिति से निजात की जरूरत है. झारखंड में जब निर्दलियों के भरोसे सरकार चली है, तब सरकार चलने की कीमत उन नेताओं ने किस तरह से वसूली है, यह अब किसी से छुपी हुई नहीं है. इसका कारण क्षेत्रवाद और जातिवाद भी रहा है.
कई बार यह भी देखने में आता है कि मतदाताओं की सोच में इतनी संकीर्णता आ गयी है कि नेता भले ही लूट कर हजारों करोड़ रुपया अपने घर में रख लें, लेकिन उसमें से कुछ हिस्सा अपने वोटर को बांट दें, तो वोटर उसे वोट करने को तैयार हो जाता है. यह परिपाटी गलत है. इस तरह के कामों पर मतदाता ही रोक लगा सकते हैं. कुछ गलत नेताओं के रवैये के कारण राज्य का नुकसान होता है, तो इसमें बदनामी मतदाताओं की भी होती है. इसलिए मतदाताओं का काम है कि वे अपने जनप्रतिनिधि का सोशल ऑडिट कर उनके कामों की निगरानी भी करें. जनता की ओर से अपने नेताओं से सवाल भी पूछे जाने चाहिए. क्योंकि जबतक जनता उनसे पांच साल के हिसाब नहीं मांगेगी, तबतक राजनेता इसी तरह से काम करते रहेंगे.
झारखंड में पौरुषता, विशेषज्ञता और बुद्धिमता की कमी नहीं है. श्रम करने वाले लोगों की कमी नहीं है. अपने राज्य के विकास के लिए कुछ करनेवालों की कमी नहीं है. जरूरत सिर्फ इस बात की है कि वह जब भी अपने जनप्रतिनिधि का चुनाव करें, तो उनके मन में उनकी छवि, उनके काम और क्षेत्र, जनता, राज्य तथा देश के विकास के प्रति उनका नजरिया क्या है, इसे समझकर ही वोट करें, तभी राज्य के लिए बेहतर साबित होगा. जातिवाद और क्षेत्रवाद से ऊपर उठ कर विकास को प्राथमिकता देकर वोट करेंगे, तो निश्चित ही झारखंड एक विकसित राज्य बन सकता है.
यानी झारखंड का विकास और झारखंड के हालात बदलने में आम जनता ही मददगार साबित होगी. आम जनता को काम मिले, विकास में उनकी हिस्सेदारी हो, तो राज्य का निश्चित रूप से विकास होगा. चुनाव पांच साल बाद आता है. इसीलिए राज्य का हर वोटर अपने विवेक का इस्तेमाल करते हुए सिर्फ उन्हीं जनप्रतिनिधियों को वोट करें, जो अगले पांच साल तक राज्य के विकास में सहायक बनें.
(आलेख बातचीत पर आधारित)

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