बराक ओबामा के निर्णय से भारतीय उपमहाद्वीप के तीनों समूहों को लाभ होगा, लेकिन इसके सबसे बड़े लाभार्थी भारतीय, विशेष रूप से पटेल समुदाय के लोग, होंगे. यह इस समुदाय और संयुक्त राज्य अमेरिका-दोनों के लिए ही शुभ सूचना है.
जब मैं 30 वर्ष पहले स्कूल में पढ़ता था, मेरे एक दोस्त ने अमेरिका के वीजा का आवेदन करते समय अपना उपनाम बदल दिया था. उसका उपनाम पटेल था और उसे लगा कि अगर उसने यह उल्लेख किया, तो उसका आवेदन खारिज हो सकता है. मुङो नहीं मालूम कि यह कितना सही था (मैंने 16 वर्ष की आयु में आवेदन दिया था और मुङो वीजा मिल गया था), लेकिन यह बात निश्चित रूप से सही है कि अमेरिका में पहले भी बहुत-से पटेल अवैध रूप से रह रहे थे और आज भी रह रहे हैं.
अमेरिकी आप्रवासन नीति में राष्ट्रपति बराक ओबामा द्वारा इस सप्ताह किये गये बदलाव से करीब पांच लाख भारतीय आप्रवासियों को वैधता मिल जायेगी, जिसमें बहुत-से लोग गुजरात के पटेल समुदाय से हैं. द टाइम्स ऑफ इंडिया की एक रिपोर्ट के अनुसार ओबामा का आदेश ‘अमेरिका में पैदा हुए (और इस कारण अमेरिकी नागरिक) बच्चों के लगभग 41 लाख गैर-पंजीकृत माता-पिता, तथा तीन लाख अवैध आप्रवासियों, जो बचपन में अमेरिका आ जाते हैं, से संबद्ध है. उन्होंने नियमों में भी व्यापक बदलाव किये हैं, जिससे अति-कुशल आप्रवासियों, स्नातकों और उद्यमियों को अमेरिका में रहने और पारदर्शी रूप से अमेरिकी अर्थव्यवस्था में योगदान देने में आसानी होगी, ताकि अन्य देशों पर अमेरिका की बढ़त बनी रहे.’
पिछले वर्ष एक रिपोर्ट में दावा किया गया था कि अमेरिका में डेढ़ लाख पटेल हैं. यह संख्या तकरीबन दो लाख होनी चाहिए, क्योंकि अनेक पटेल ‘अमीन’ जैसे दूसरे उपनामों का भी प्रयोग करते हैं. अधिकतर पटेल अमेरिका में वैध रूप से निवास करते हैं और वे उस देश के सबसे सफल समुदायों में से हैं. 1999 में न्यूयॉर्क टाइम्स में प्रकाशित टुंकू वरदराजन की एक रिपोर्ट में दावा किया गया था कि आधे अमेरिकी मोटेल भारतीयों द्वारा संचालित हैं, जिनमें अधिकतर पटेल हैं. उन्होंने लिखा था कि पटेल ‘वैश्य या व्यापारी हैं, जो मध्यकाल में गुजरात (अरब सागर के तट पर बसा भारतीय राज्य, जहां उनकी उत्पत्ति हुई) में किसानों द्वारा राजाओं को दिये जानेवाले लगान के निर्धारण का काम करते थे. बहुत-से भारतीय मानते हैं कि इन लोगों की रगों में ही वाणिज्य है. और ऐसा लगता है कि पटेल भी यही मानते हैं.’
यह सच नहीं है, और यह बात खुद पटेलों ने अपने बारे में इतना जोर-शोर से प्रचारित किया है कि वे भी ऐसा ही मानने लगे हैं. पटेल किसान हैं, और वे पाटिल, रेड्डी, यादव, गौड़ा और जाट जैसी अन्य किसान जातियों के समूहों में से ही हैं, तथा जाति-वर्गीकरण के निचले स्तर पर हैं, जिन्हें मनुस्मृति में शुद्र कहा गया है.
पटेल इन समुदायों से थोड़ा भिन्न हैं. वे शाकाहारी हैं और उनका झुकाव व्यापार की ओर है. यह किसी स्वभावगत रुझान के कारण नहीं है, और बीसवीं सदी से पहले उद्यम का उनका कोई इतिहास नहीं है. व्यापार में उनकी संलग्नता का कारण यह है कि उन्होंने जैन व्यापारियों के वर्चस्व वाले गुजरात की वाणिज्यिक परंपराओं को आत्मसात कर लिया है. न्यूयॉर्क टाइम्स के लेखक वरदराजन बेकार में यह समझने की कोशिश कर रहे हैं कि क्यों पटेल ‘मोटलों-होटलों के व्यवसाय में हाथ आजमा रहे हैं, हार्डवेयर, पालतू पशुओं, दवा दुकानों में क्यों नहीं?’
एक कारण तो यह है कि व्यवसाय का दायरा भिन्न है और मोटेल का विस्तार किया जा सकता है. दूसरा, इससे पटेल को दोहरी पहचान हासिल होती है. वे अमेरिका से मोटेल के काउंटर के जरिये अपना धंधा करते हैं. काउंटर के पीछे वे रसोई में कढ़ी-भात बना कर और टीवी पर रामायण धारावाहिक या बॉलीवुड की फिल्में चला कर अपने लिए एक भारत रच सकते हैं. यह एक ऐसा व्यवसाय है, जिसमें बुद्धि से अधिक मेहनत की जरूरत है और पटेल यह करने के लिए तैयार हैं.
इसीलिए अमेरिका में अवैध रूप से रह रहा एक पटेल भी उस देश के लिए मूल्यवान है, क्योंकि वह अपने काम से मतलब रखता है, और सरकार के लिए मुश्किलें नहीं खड़ा करता है. अमेरिका की ओर पटेलों ने 1960 के दशक में रुख करना शुरू किया, लेकिन इसमें तेजी 1970 के दशक में आयी, जब इदी अमीन ने यूगांडा में सत्ता हथियायी. उसने वहां से भारतीयों को निकाल दिया, जिनमें ज्यादातर पटेल थे. निर्वासित लोगों ने ब्रिटेन व अमेरिका में शरण ली थी. आप्रवासन की दूसरी बड़ी खेप 1970 और 1980 के दशकों में गयी, जिनमें अधिकतर अवैध थे और अमेरिका में पहले से स्थापित पटेलों के सगे-संबंधी थे. इसी समूह ने पिछले 30 वर्षो से मोटेल चेन स्थापित किया, खरीदा और चलाया है. पटेलों का एक छोटा समूह अन्य पेशों में भी गया, जिनमें आम तौर पर छोटे शहरों में काम कर रहे डॉक्टर हैं, जो बहुत लोकप्रिय भी हैं.
यह जरूर कहा जाना चाहिए कि पश्चिम में भारतीय आप्रवासी पाकिस्तान या बांग्लादेश के प्रवासियों से अधिक लोकप्रिय हैं. एक कारण तो यह है कि सामान्यत: वे उच्चतर सामाजिक स्तर से हैं और उनके निपुण पेशेवर होने की संभावना अधिक होती है. दूसरा कारण है कि बहुत-से पाकिस्तानी और बांग्लादेशी आप्रवासी, विशेषकर यूरोप में, अतिवादी विचारों से प्रभावित हैं. उन्होंने अरब के उन समूहों से सांठ-गांठ कर ली है, जो शरारती हरकतें करते रहते हैं, उनमें बहुत बेरोजगारी है, और स्थानीय समाज उन्हें एक परेशानी के रूप में देखता है.
मेरे एक पाकिस्तानी दोस्त ने मुझे बताया कि अमेरिका में रहनेवाले उनके परिचित कुछ पाकिस्तानी लोग अपना परिचय भारतीय के रूप में देते हैं, ताकि वे पिछले कुछ वर्षो में पाकिस्तानी पहचान के कारण होनेवाली परेशानियों से बच सकें.
यूरोप में बांग्लादेशी बहुत सक्षम तरीके से उप-महाद्वीपीय व्यंजनों वाले रेस्त्रं चलाते हैं, लेकिन उनकी पहचान ‘भारतीय’ रेस्त्रं के रूप में की जाती है. इसका एक कारण यह है कि भारतीय ब्रांड अधिक आकर्षक है और दूसरे, बांग्लादेश क्या है और कहां है, इसकी जानकारी भी कम लोगों को ही है. इसके पीछे तीसरा कारण यह है कि ‘भारतीय’ व्यंजनों में, जिसका पश्चिम में सबसे कम प्रचार-प्रसार है, वह बंगाली खाना है.
बराक ओबामा के निर्णय से भारतीय उपमहाद्वीप के तीनों समूहों को लाभ होगा, लेकिन इसके सबसे बड़े लाभार्थी भारतीय, विशेष रूप से पटेल समुदाय के लोग, होंगे. यह इस समुदाय और संयुक्त राज्य अमेरिका-दोनों के लिए ही शुभ सूचना है.
आकार पटेल
वरिष्ठ पत्रकार
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