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श्रम सुधारों की दिशा में शुरुआती कदम

सतत आर्थिक विकास और रोजगार सृजन के लिए देश में श्रम-संबंधी सुधारों की आवश्यकता कई वर्षो से महसूस की जा रही थी. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस दिशा में सकारात्मक पहल करते हुए ‘पंडित दीनदयाल उपाध्याय श्रमेव जयते कार्यक्रम’ की शुरुआत की है. इसके तहत कई घोषणाएं की गयी हैं, जिनसे श्रमिकों के साथ-साथ उद्योगों […]

सतत आर्थिक विकास और रोजगार सृजन के लिए देश में श्रम-संबंधी सुधारों की आवश्यकता कई वर्षो से महसूस की जा रही थी. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस दिशा में सकारात्मक पहल करते हुए ‘पंडित दीनदयाल उपाध्याय श्रमेव जयते कार्यक्रम’ की शुरुआत की है. इसके तहत कई घोषणाएं की गयी हैं, जिनसे श्रमिकों के साथ-साथ उद्योगों को भी लाभ मिलने की उम्मीद है.

भविष्य निधि खातों में पड़े श्रमिकों के 27 हजार करोड़ रुपये उनके वैध हकदारों की पहचान कर वापस देने की घोषणा हजारों श्रमिकों के लिए बड़ी आर्थिक मदद होगी. साथ ही इस निधि की संचालन-प्रक्रिया के सरलीकरण से बड़ी संख्या में श्रमिक लाभान्वित होंगे. अब श्रमिकों को काम बदलने पर अपने भविष्य निधि खाते को स्थानांतरित कराने के लिए परेशान नहीं होना पड़ेगा. कार्यक्रम के तहत कौशल बढ़ाने के लिए औद्योगिक प्रशिक्षण संस्थानों पर विशेष ध्यान देने की योजना है.

देश-विदेश में कुशल कामगारों की बड़ी मांग और संस्थानों की उपलब्धता के बावजूद देश में 2.82 लाख युवा ही प्रशिक्षण प्राप्त कर रहे हैं, जबकि सीटों की संख्या 4.9 लाख है. इन संस्थानों की गुणवत्ता बढ़ाने से युवा प्रशिक्षण के लिए आकर्षित होंगे और रोजगार की संभावनाएं बेहतर होंगी. औद्योगिक इकाइयों में श्रमिकों की स्थिति जांचने की प्रक्रिया अब डिजिटल होगी, जिससे इंस्पेक्टर मनमाने ढंग से काम नहीं कर सकेंगे. जांच के 72 घंटों के भीतर उन्हें अपनी रिपोर्ट एकीकृत वेब पोर्टल पर जमा करनी होगी. इससे पारदर्शिता बढ़ने के साथ-साथ मालिकों व अधिकारियों की सांठ-गांठ से होनेवाले श्रमिकों के शोषण पर लगाम लगने की उम्मीद है. साथ ही औद्योगिक इकाइयों को भी प्रशासन के मनमाने रवैये से मुक्ति मिल सकेगी. मोदी ने इन योजनाओं की घोषणा के मौके पर अपने संबोधन में श्रमिकों के सम्मान और महत्व को ‘राष्ट्र-निर्माता’ कह कर रेखांकित किया है.

उन्होंने कामगारों के नजरिये से उनकी समस्याओं को देखने की जरूरत पर बल दिया है. निश्चित रूप से यह सरकारी रवैये में सकारात्मक बदलाव का संकेत है. ये कदम 2012-13 की आर्थिक समीक्षा के सुझावों के अनुरूप हैं और श्रम-सुधारों की दिशा में बड़ी पहलों की श्रृंखला की शुरुआत माने जा रहे हैं. इनसे यह आशा बंधती है कि श्रमिकों के हितों को ध्यान में रखते हुए श्रम कानूनों में ठोस बदलाव भी जल्दी किये जायेंगे.

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