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अब भी कर्ज मिलने की उम्मीद कम

झारखंड मंत्रिपरिषद की बैठक में पिछले दिनों अनुसूचित जनजाति व अनुसूचित जाति के सदस्यों को मकान बनाने, शिक्षा और व्यापारिक कार्यो के लिए अपनी जमीन बैंकों के पास गिरवी रख कर कर्ज लने की अनुमति दे दी. इसके लिए छोटानागपुर काश्तकारी अधिनियम (सीएनटी एक्ट) और संताल परगना काश्तकारी अधिनियम (एसपीटी एक्ट) में पहले से किये […]

झारखंड मंत्रिपरिषद की बैठक में पिछले दिनों अनुसूचित जनजाति व अनुसूचित जाति के सदस्यों को मकान बनाने, शिक्षा और व्यापारिक कार्यो के लिए अपनी जमीन बैंकों के पास गिरवी रख कर कर्ज लने की अनुमति दे दी. इसके लिए छोटानागपुर काश्तकारी अधिनियम (सीएनटी एक्ट) और संताल परगना काश्तकारी अधिनियम (एसपीटी एक्ट) में पहले से किये गये प्रावधान में संशोधन करते हुए इन विषयों को भी जोड़ दिया. सीएनटी एक्ट की धारा 46(1)(सी) और एसपीटी एक्ट की धारा 20(2)(1)(4)(1) में पहले से यह प्रावधान है कि अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के सदस्य कृषि कार्यो के लिए कर्ज लेने के उद्देश्य से अपनी जमीन बैंकों में गिरवी रख सकें.

मंत्रिपरिषद ने अब कृषि के साथ शिक्षा, व्यापारिक गतिविधि और मकान का विषय भी जोड़ दिया. इसके पीछे तर्क दिया गया है कि कृषि के अलावा किसी अन्य कार्य के लिए जमीन गिरवी रखने का प्रावधान नहीं होने की वजह से बैंक इन कार्यो के लिए कर्ज नहीं दे रहे हैं? पर सरकार का यह तर्क पूरी तरह सही नहीं है. बैंकों द्वारा मुख्य रूप से दो कारण बताये जाते रहे हैं.

पहला, सीएनटी और एसपीटी में इन विषयों का शामिल नहीं होना है. दूसरा और सबसे बड़ा कारण सीएनटी और एसपीटी एक्ट में निहित प्रावधानों के तहत एससी और एसटी की जमीन के हस्तांतरण का अधिकार बैंकों के पास नहीं होना है. सरकार ने कर्ज के लिए जमीन बंधक रखने का दायरा तो बढ़ा दिया, लेकिन इस बात पर कोई फैसला नहीं किया कि अगर जमीन गिरवी रख कर कर्ज लेनेवाला एससी और एसटी समुदाय का सदस्य कर्ज चुकाने की स्थिति में नहीं हो और बैंक द्वारा उसे डिफॉल्टर घोषित कर दिया जाये, तो कर्ज की वसूली कैसे होगी? जब तक डिफॉल्टर की स्थिति में कर्ज वसूली के लिए जमीन बेच कर कर्ज की रकम वसूलने का अधिकार बैंकों को नहीं मिलता है, तब तक बैंक कर्ज देने से परहेज करेंगे. सरकार इस स्थिति से निबटने के लिए बैंकों पर सिर्फ दबाव डाल सकती है. कर्ज देने के लिए बाध्य नहीं कर सकती है. इन वजहों से एससी- एसटी को बैंकों से कर्ज मिलने की उम्मीद नहीं के बराबर है. इसमें अब भी कई पेच हैं. राज्य सरकार की कोशिश सिर्फ छलावा ही लगती है?

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