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मानव संसाधन का सरकारी दोहन

पिछले कुछ वर्षो से झारखंड में कार्यरत पारा शिक्षकों का एक समूह घोर उपेक्षाओं का सामना कर रहा है. पिछले दस वर्षो से सभी ऐसे कार्य इन्होंने संपन्न किये हैं जो इनके कार्यक्षेत्र में आते रहे हैं. जब भी इन्होंने अपने हक के लिए आवाज उठायी है, कभी सरकार की चिकनी-चुपड़ी बातों तो कभी दमनकारी […]

पिछले कुछ वर्षो से झारखंड में कार्यरत पारा शिक्षकों का एक समूह घोर उपेक्षाओं का सामना कर रहा है. पिछले दस वर्षो से सभी ऐसे कार्य इन्होंने संपन्न किये हैं जो इनके कार्यक्षेत्र में आते रहे हैं.

जब भी इन्होंने अपने हक के लिए आवाज उठायी है, कभी सरकार की चिकनी-चुपड़ी बातों तो कभी दमनकारी प्रयासों की बदौलत इन्हें मुंह की खानी पड़ी है. इन्हें अयोग्य तक कह दिया गया. विडंबना देखिए कि अब इनमें से कई ने शिक्षक पात्रता परीक्षा (टेट) पास कर महत्वपूर्ण उपलब्धि भी हासिल कर ली है.

लेकिन फिर भी इनकी नियुक्ति में सोची-समझी अड़चन डाल कर इनके संसाधनों के दोहन को जारी रखना चाहती है. इस विषय को समाचार पत्रों में प्रमुखता से स्थान मिले तो मानवाधिकार आयोग जैसी संस्थाएं हरकत में आ सकती हैं और एक प्रताड़ित समूह को न्याय मिल सकता है.

शेखर प्रसाद, सारठ, देवघर

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