विगत कुछ वर्षो में भारत-जापान द्विपक्षीय संबंधों में ठहराव के बावजूद दोनों देशों के नेताओं ने परस्पर यात्राएं की हैं. गत वर्ष मई में तत्कालीन प्रधानमंत्री डॉ मनमोहन सिंह जापान गये थे और इस वर्ष गणतंत्र दिवस समारोह में जापान के प्रधानमंत्री शिंजो एबे बतौर मुख्य अतिथि शामिल हुए थे. 2012 में दोनों देशों के बीच राजनयिक संबंध स्थापित होने की 60वीं वर्षगांठ को सकारात्मक सद्भाव व सहयोग की भावना से मनाया गया था.
अब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अपने कार्यकाल के प्रारंभिक दौर में ही शनिवार से हो रही जापान यात्र कई मायनों में काफी महत्वपूर्ण है. मोदी की यह यात्र जुलाई के पहले सप्ताह में ही प्रस्तावित थी, लेकिन संसद-सत्र के कारण उसे स्थगित करना पड़ा था. इस यात्र का मुख्य उद्देश्य भारत में बुनियादी ढांचे के विस्तार की परियोजनाओं के लिए जापानी सहयोग बढ़ाने और परमाणु समझौते के साथ-साथ वैश्विक राजनीतिक व आर्थिक परिदृश्य में अपनी उपस्थिति को सुदृढ़ करना है.
भारत के साथ बेहतर संबंध जापान की एक महाशक्ति के रूप में फिर से स्थापित होने की आकांक्षा की पूर्ति के लिए भी आवश्यक है. भारत-जापान संबंध एशिया में और विश्व-स्तर पर चीन की निरंतर बढ़ती शक्ति को संतुलित करने की दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है.
यह भी रेखांकित करना जरूरी है कि मोदी अंतरराष्ट्रीय और द्विपक्षीय मामलों में पिछली सरकार के टाल-मटोल और अनिर्णय वाले रवैये से बाहर निकल कर भारत की पहुंच और उपस्थिति को सुदृढ़ करना चाहते हैं. दक्षिण एशिया, ब्रिक्स, विश्व व्यापार संगठन को लेकर रुख के अलावा गाजा पर इजरायली हमले पर संयुक्त राष्ट्र में मतदान जैसे कई मसलों पर मोदी सरकार ने राष्ट्रीय हितों के आधार पर व्यावहारिक व त्वरित निर्णय क्षमता का परिचय दिया है. मोदी की जापान यात्र का एक प्रमुख तत्व 2008 के द्विपक्षीय आर्थिक सहयोग समझौते को समुचित तौर पर लागू करने का प्रयास भी है. प्रधानमंत्री के साथ जा रहे बड़े उद्योगपतियों के प्रतिनिधिमंडल से यह संकेत मिलता है कि मोदी जापान से बड़े पैमाने पर निवेश का आग्रह करेंगे. जापान के पास उत्कृष्ट तकनीक के साथ-साथ निवेश के लिए धन भी है. उम्मीद की जा सकती है कि मोदी की यह यात्र भारत-जापान संबंधों को नया आयाम व आधार प्रदान करेगी.