जस्टिस आरएस सोढ़ी
सेवानिवृत्त न्यायाधीश,
दिल्ली उच्च न्यायालय
delhi@prabhatkhabar.in
किसी भी देश को सुचारू रूप से चलाने के लिए उसके पास एक मजबूत संविधान का होना बहुत जरूरी है. संविधान यानी बतौर एक नागरिक किसी व्यक्ति को देश में रहने के क्या अधिकार हैं और क्या-क्या जिम्मेदारियां हैं. यही वजह है कि दुनिया के हर देश का अपना संविधान होता है, ताकि वहां के लोग उसका पालन करके हर काम को कानून के दायरे में रहकर संपूर्ण करें.
भले ही कोई देश लोकतांत्रिक हो या न हो या वह राजशाही को लेकर चलता हो, फिर भी उसके अपने कायदे-कानून तो होते ही हैं न, जिसके आधार पर वह देश चलायमान रहता है. और तो और, दुनिया के कुछ लोकतांत्रिक देशों की प्रासंगिकता तो इसी आधार पर बनी रहती है, कि वहां का संविधान उसको अच्छी तरह चलाने की बेहतरीन दिशा देता है. ऐसे कई देश हैं, जो दुनिया के सामने एक शानदार मिसाल स्थापित करते हैं.
अगर आप इस ऐतबार से देखें, तो आपको और हम सबको गर्व होगा कि हमारा संविधान दुनिया का सबसे शानदार संविधान है. इस पर बहस हो सकती है कि संविधान ऐसा होना चाहिए या वैसा होना चाहिए, संविधान में यह होना चाहिए या वह होना चाहिए, लेकिन उसके बावजूद संविधान का मजबूत होना बहुत जरूरी है, क्योंकि वह हम-सबके लिए बहुत महत्वपूर्ण है.
हमारा संविधान हिंदुस्तान का दिल है. यह धड़कता है, तो हमारा देश आगे बढ़ता है, हर पल तरक्की करता है. जिस तरह एक जीवधारी के शरीर में दिल बहुत महत्वपूर्ण अंग होता है, जिसकी धड़कने रुकने पर उसकी जिंदगी ही रुक जाती है, ठीक उसी तरह हमारे संविधान की धड़कनें अगर रुकीं, तो यह देश ही रुक जायेगा.
जब तक हमारा संविधान चल रहा है, यहां के नागरिकों की नाड़ियों में खून चल रहा है. अपने संविधान को बचाये रखने की हर कोशिश अपने देश को बचाये रखने की ही पूरी कोशिश मानी जायेगी. इसलिए हमारे देश के हर नागरिक का यह परम कर्तव्य है कि वह हर हाल में इस बेहतरीन संविधान की रक्षा करने का संकल्प ले और संविधान-प्रदत्त जिम्मेदारियों का निर्वाह भी करे.
फिलहाल सीएए को लेकर देशभर में बवाल मचा हुआ है. यह पुराने नागरिकता कानून का संशोधित रूप है. भारत की मौजूदा सरकार ने नागरिकता कानून में संशोधन करके जो नया कानून बनाया है, उसको हमें समझना चाहिए, क्योंकि यह नागरिकता देने का कानून है. अगर किसी को लगता हो कि यह कानून हमारे संविधान के खिलाफ है, तो उसके लिए सुप्रीम कोर्ट के दरवाजे खुले हैं. वह व्यक्ति सुप्रीम कोर्ट से गुहार लगा सकता है. और शायद कुछ याचिकाएं सुप्रीम कोर्ट में डाली भी गयी हैं, जिन पर सुनवाई होनी है.
जहां तक संशोधन का सवाल है, तो जिस तरह से हमारे दिल में कोई खराबी आ जाने पर उसकी बाइपास सर्जरी करके या जरूरी ऑपरेशन करके उसे ठीक कर लिया जाता है, ठीक उसी तरह हमारे संविधान में कभी-कभी संशोधनों के जरिये संविधान को नयी जिंदगी दी जाती रही है, ताकि बदलते दौर के हिसाब से हमारा संविधान और भी मजबूत होता रहे.
हमारी संसद को जब कभी यह लगता है कि संविधान के किसी अनुच्छेद के किसी प्रावधान में सुधार करने की जरूरत है, तो वह संशोधन के जरिये उसे ठीक कर लेती है. चूंकि, संसद को ही कानून बनाने का अधिकार है, इसलिए संशोधन का भी अधिकार उसी को है. यह अलग बात है कि सुप्रीम कोर्ट संसद द्वारा बनाये कानून की समीक्षा कर सकता है कि वह कानून संविधान-सम्मत है या नहीं.
संविधान देश के नागरिकों को इकट्ठा रखने का काम करता है. यही इसकी बहुत बड़ी खूबी है. भारत के नजरिये से तो यह इसकी विशिष्टता है, क्योंकि भारत अनेकता में एकता वाला देश है. भले ही हम किसी भी धर्म, संप्रदाय, मत, भाषा, जाति या क्षेत्र के हों, लेकिन हमारा संविधान हमें एक मानता है और हम सबको समान अधिकार देता है. ऐसे में अगर समानता के अधिकार के साथ छेड़छाड़ हुआ, तो जाहिर है कि इससे संविधान को नुकसान पहुंचेगा.
देश में एक आदमी अपनी जाति को लेकर किसी से अलग राय रख सकता है, धर्म को लेकर अपनी अलग सोच रख सकता है, क्षेत्र या भाषा को लेकर अलग समझ रख सकता है, लेकिन संविधान को लेकर सबकी राय एक हो जाती है, होनी ही चाहिए. क्योंकि संविधान ही वह शक्ति है, जो सबको एकता के सूत्र में बांधने का काम करती है.
धर्म में वह शक्ति नहीं है कि वह सभी नागरिकों को एकता के सूत्र में बांध सके. क्षेत्रीयता, जाति और भाषा में भी यह शक्ति नहीं है. सिर्फ संविधान ही है, जो हम सब अनेक को एक बनाती है. इसलिए हमारे लोकतंत्र के लिए संविधान का इतना ज्यादा महत्व है कि बिना इसके हमारा लोकतंत्र ढह जायेगा. इसलिए आज सबसे ज्यादा जरूरत इस बात की है कि हम अपने संविधान की कद्र करें. यह जिम्मेदारी सिर्फ नागरिकों के लिए नहीं है, बल्कि हर उस व्यक्ति की भी है, जो इस संविधान की शपथ लेकर देश चलाने का कार्य कर रहा है. नागरिकों को चाहिए कि किसी कानून या नापसंदीदा बात को लेकर सड़क पर उतरकर राष्ट्र की संपत्ति का नुकसान करने से बचें. क्योंकि यह भी संविधान की भावना के खिलाफ है.
हर काम मर्यादा में रहकर किया जाये, तो ही वह शोभनीय होता है. संविधान को बर्बाद करने का खयाल हर उस आदमी को ही बर्बाद करनेवाला है, जो ऐसा करने की साेचता है. भले ही वह कोई नागरिक हो या फिर उच्च पद पर बैठा कोई व्यक्ति हो. संविधान अगर किसी को आजादी देता है, तो साथ ही कुछ जिम्मेदारियां भी देता है. इन जिम्मेदारियों का एहसास देश के हर नागरिक को शिद्दत से होना चाहिए.
देश की आजादी के समय जो तबाही हमने देखी है, वह बहुत बड़ी तबाही थी, क्योंकि तब हमारे पास संविधान नहीं था. लेकिन, आज हमारे पास एक मजबूत संविधान है, फिर भी मैं कहता हूं कि अगर इसके महत्व को ध्यान में नहीं रखा गया, और अगर इसकी अवहेलना की गयी, तो आज की तबाही उस दौर से कहीं ज्यादा बड़ी साबित होगी. सीएए हमारे पुराने नागरिकता कानून के एक सेक्शन में संशोधित रूप भर है. इसलिए इससे समझने की जरूरत है, न कि इसको लेकर सड़कों पर उत्पात मचाने की जरूरत है. नागरिकों से गुजारिश है कि वे संविधान की रक्षा का संकल्प लें.
ये लेखक के निजी विचार हैं
(वसीम अकरम से बातचीत पर आधारित)