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विषमता दूर हो

हमारे देश की राष्ट्रीय विकास यात्रा जहां उत्साह देती है, वहीं राज्यों के बीच विषमता चिंताजनक भी है. नीति आयोग ने सतत विकास लक्ष्यों की प्राप्ति के प्रयास व उपलब्धि के आधार पर राज्यों का जो मूल्यांकन किया है, उसे सरकारों को गंभीरता से लेते हुए बेहतर करने की कोशिश में जुट जाना चाहिए. संयुक्त […]

हमारे देश की राष्ट्रीय विकास यात्रा जहां उत्साह देती है, वहीं राज्यों के बीच विषमता चिंताजनक भी है. नीति आयोग ने सतत विकास लक्ष्यों की प्राप्ति के प्रयास व उपलब्धि के आधार पर राज्यों का जो मूल्यांकन किया है, उसे सरकारों को गंभीरता से लेते हुए बेहतर करने की कोशिश में जुट जाना चाहिए.

संयुक्त राष्ट्र के तहत वैश्विक समुदाय ने शिक्षा, स्वास्थ्य, आर्थिक अवसर, पर्यावरण, न्याय व शासन उत्कृष्ट संस्थान आदि विभिन्न लक्ष्यों को 2030 तक पूरा करने का संकल्प लिया है. पिछले कुछ सालों में आयुष्मान भारत स्वास्थ्य बीमा, पोषण व टीकाकरण, स्वच्छ भारत, बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ जैसी अनेक योजनाओं के कारण इन लक्ष्यों की प्राप्ति की दिशा में भारत का प्रयास सराहनीय है. विभिन्न राज्य सरकारों ने भी केंद्रीय योजनाओं के साथ या अपने स्तर पर विकासोन्मुखी पहलें की हैं.

केंद्र सरकार ने विकास की विषमता को कम करने के इरादे से कई जिलों को भी सहायता दी है. लेकिन लोगों के जीवन को खुशहाल बनाने और उन्हें अच्छी सुविधाएं देने में कुछ राज्यों ने बढ़त बनाये रखी है, तो अनेक राज्य पीछे दिखायी देते हैं. सूचकांक बनाने के लिए निर्धारित 100 अंकों के मानक पर केरल ने 70 अंक हासिल कर सूची में पहला स्थान हासिल किया है, वहीं 50 अंकों के साथ बिहार सबसे नीचे है.

हालांकि, उत्तर प्रदेश और ओडिशा ने पिछले सूचकांक की तुलना में तेज सुधार किया है, पर अब भी उनका स्थान नीचे है. विकास से संबंधित हर सूचकांक में यह बात देखी जाती है कि उत्तर और पूर्वी भारत की अपेक्षा दक्षिण भारत के राज्य आगे रहते हैं. नये साल की शुरुआत के साथ सतत विकास लक्ष्यों को पूरा करने के लिए दस साल का समय बचा है.

तात्कालिक तौर पर अर्थव्यवस्था की बढ़त की गति धीमी पड़ने की चुनौती सामने है. उम्मीद है कि आर्थिकी के मोर्चे पर नये वर्ष में नये उत्साह के साथ भारत अग्रसर होगा. आर्थिकी के आधार ठोस हैं तथा सरकार निरंतर सुधारों व अल्पकालिक पहल के लिए तत्पर है. यदि आशानुसार अर्थव्यवस्था गति पकड़ती है, तो विकास योजनाओं में भी तेजी आयेगी और लोगों के पास भी अवसर बढ़ेंगे. सतत विकास लक्ष्यों में पर्यावरण एक प्रमुख हिस्सा है.

भारत समेत दुनियाभर में जलवायु परिवर्तन के नकारात्मक असर साफ दिखने लगे हैं. प्रदूषण, वन व भूमि क्षरण, जल संकट आदि के मामले में भी उत्तर भारत के राज्य अधिक प्रभावित हैं. इस समस्या को प्राथमिकता देना जरूरी है. स्वच्छ ऊर्जा, जल संरक्षण, वन विस्तार, भूमि क्षरण पर अंकुश लगाने और प्लास्टिक नियंत्रण जैसे महत्वपूर्ण पहलों से समाधान में सहयोग मिलेगा.

विकास के अन्य आयामों पर भी इनका असर होगा. जैसे नागरिकों में समता व बंधुत्व समाज और राष्ट्र की प्रगति के अनिवार्य शर्त हैं, उसी तरह सभी राज्यों के विकास से ही हम एक समृद्ध राष्ट्र बन सकेंगे. नये वर्ष का प्रारंभ साथ चलने और सहयोग करने के प्रण के साथ हो. यह वर्ष सभी के लिए मंगलमय हो!

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