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राज्य की जिम्मेदारी

सन्नी कुमार टिप्पणीकार sunnyand65@gmail.com देश का विभिन्न हिस्सा अलग-अलग समय में किसी न किसी आपदा से ग्रस्त रहता ही है. कभी पहाड़ी इलाकों में भू-स्खलन से भारी तबाही मचती है, तो कभी तटीय क्षेत्रों को चक्रवात का सामना करना पड़ता है, तो कभी बाढ़ के कारण मैदानी भाग का जनजीवन ठप हो जाता है. इन […]

सन्नी कुमार

टिप्पणीकार

sunnyand65@gmail.com

देश का विभिन्न हिस्सा अलग-अलग समय में किसी न किसी आपदा से ग्रस्त रहता ही है. कभी पहाड़ी इलाकों में भू-स्खलन से भारी तबाही मचती है, तो कभी तटीय क्षेत्रों को चक्रवात का सामना करना पड़ता है, तो कभी बाढ़ के कारण मैदानी भाग का जनजीवन ठप हो जाता है.

इन आपदाओं की वजह से ‘जीवन’ को कितनी क्षति पहुंचती है, इसका ठीक-ठीक अनुमान नहीं किया जा सकता. हां, भौतिक आधार पर नुकसान का निर्धारण जरूर किया जाता है. स्वाभाविक ही है कि इन आपदाओं से उबरने में सरकारें अपनी जनता की मदद करती हैं तथा तमाम जरूरी संसाधनों को मुहैया कराने की कोशिश करती हैं.

अब, एक दूसरे दृश्य की कल्पना करिये. दूसरा दृश्य एक आतंकवादी घटना का है, जिसमें कई बेगुनाह नागरिक मारे जाते हैं. अब दोनों ही परिस्थितियों में ‘राज्य की प्रतिक्रिया’ को देखें. आपदा वाली स्थिति में भले ही राज्य मात्रात्मक रूप से कितनी भी मदद क्यों न पहुंचाये, किंतु इसकी प्रतिक्रिया काफी ‘धैर्यपूर्ण’ और ‘संयत’ किस्म की होती है.

वहीं आतंकवादी हमले के मामले में राज्य ‘त्वरित’ और ‘आक्रामक’ प्रतिक्रिया व्यक्त करता है. इस प्रतिक्रिया में राज्य की बेचैनी को स्पष्टता से चिह्नित किया जा सकता है. साथ ही आतंकवादी घटना के विरुद्ध कार्रवाई करने की बात करते समय राज्य स्वयं को एक ऐसे ‘सक्षम’ इकाई के रूप में प्रस्तुत करता है, जो सफलतापूर्वक इसका प्रत्युत्तर दे सके. वहीं दूसरी तरफ, आपदा से लड़ने की बात पर राज्य स्वयं को ‘लाचार’ सिद्ध करने की भरपूर कोशिश करता है और सीधे प्रत्युत्तर की बजाय निकास का कोई मार्ग तलाशता नजर आता है.

आखिर ऐसा अंतर क्यों होता है? अगर आतंकी घटनाओं में बेगुनाह नागरिकों के मारे जाने के तर्क को लें, तो आपदा के कारण मरनेवाले नागरिकों का क्या दोष होता है? अव्वल तो यह कि आपदाओं में कहीं अधिक बेगुनाह नागरिकों को अपनी जान गंवानी पड़ती है. भौतिक संसाधनों के नुकसान की तो तुलना भी नहीं की जा सकती. फिर राज्य की प्रतिक्रिया में अंतर क्यों? इसके लिए हमें ‘राज्य की वैधता’ के प्रश्न पर फिर से विचार करना होगा.

दरअसल, आधुनिक राज्य के निर्माण की बुनियाद ही यही है कि वह सार्वजनिक जीवन को ‘राजनीतिक हिंसा’ से मुक्त रखेगा. जब तक ऐसा होता रहेगा, राज्य की निर्मिति को वैधता मिलती रहेगी. स्वाभाविक रूप से राज्य ऐसी हर घटना का अपने पूरे सामर्थ्य से विरोध करेगा, जो उसके अस्तित्व को प्रश्नगत करेगा. आतंकी घटनाओं के विरुद्ध राज्य की आक्रामक प्रतिक्रिया के पीछे यही वजह काम करती है.

वहीं, आपदा से बचाव राज्य की जिम्मेदारी अवश्य है, लेकिन वह उसके अस्तित्व से जुड़ा पहलू नहीं है. इसलिए राज्य की प्रतिक्रिया भी इसी अनुरूप होती है. यह दुखद स्थिति है कि राज्य की प्रतिक्रिया मरनेवाले लोगों की संख्या के आधार पर तय नहीं होती. इस स्थिति को बदलने की जरूरत है.

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