झारखंड में विधानसभा चुनाव होने हैं और दूसरे दलों के निराश नेता, सत्ता से जुड़ने की चाह में भाजपा में शामिल होने की होड़ लगाये हुए हैं. यही राजनीतिज्ञों का असली चेहरा है, क्योंकि उन्हें किसी भी कीमत पर सत्ता चाहिए, ताकि कुछ दौलत हासिल कर सकें.
ऐसे में पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी द्वारा संसद में पास कराया गया ‘दल-बदल विरोधी कानून’ की चर्चा प्रासंगिक हो जाती है. हालांकि पुराने कानून के प्रावधानों में थोडी ढिलाई बरती गयी थी और इसमें एक तिहाई का फॉमरूला अपनाया गया था.
बाद में, सन 2003 में दल-बदल के लिए न्यूनतम संख्या दो तिहाई कर दी गयी. लेकिन, इतना पर्याप्त नहीं है. होना यह चाहिए कि दूसरे राजनीतिक दल में जाने पर पांच साल तक कोई पद नहीं मिले. इसलिए मौजूदा परिप्रेक्ष्य में इस पर दोबारा विचार करने की जरूरत है.
डॉ भुवन मोहन, हिनू, रांची