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हिंदी का महीना बीत गया

संतोष उत्सुक वरिष्ठ व्यंग्यकार sa- toshutsuk@gmail.com हिंदी का महीना हिंदी-हिंदी करते हुए बीत गया. जब यह महीना शुरू हुआ, तो शहर के हिंदी प्रेमियों, राजनेताओं को अंग्रेजी में लगे बोर्ड बुरे लगने लगे थे. सितंबर चला गया, तो लग रहा है कि एक महीना सेवा के बाद अधिक विकसित होकर हिंदी अब विश्राम करने चली […]

संतोष उत्सुक
वरिष्ठ व्यंग्यकार
sa- toshutsuk@gmail.com
हिंदी का महीना हिंदी-हिंदी करते हुए बीत गया. जब यह महीना शुरू हुआ, तो शहर के हिंदी प्रेमियों, राजनेताओं को अंग्रेजी में लगे बोर्ड बुरे लगने लगे थे. सितंबर चला गया, तो लग रहा है कि एक महीना सेवा के बाद अधिक विकसित होकर हिंदी अब विश्राम करने चली गयी है.
हर बरस की तरह राजभाषा कार्यान्वयन समितियां व संस्थाएं इस बार भी काफी सक्रिय रहीं. हिंदी कार्यक्रमों की बारिश में सब मिलकर खूब भीगे. अंग्रेजी में बतियानेवालों ने हिंदी में लिखे बैनर उठाये हुए सुबह-सुबह ‘हिंदी वाक’ का आयोजन किया और बोर्ड लगाकर सबने हिंदी में हस्ताक्षर भी किये. हर साल की तरह हिंदी में पुरस्कार जीतनेवालों के बीच होड़ लगी रही.
ज्यादा मजा आया दूरदर्शन पर आयोजित होनेवाली कविता प्रतियोगिता में. हिंदी मास में आयोजित कविता प्रतियोगिता कई बार लाइव टेलीकास्ट भी कर दी जाती है.
कविता प्रेम हर तरफ फैल जाने के कारण, इस बार प्रतियोगिता में कवियों की तादाद बढ़ गयी थी. बरसों से दूरदर्शन पर अपनी एक झलक दिख सकने की तमन्ना में कितने ही कवि बुजुर्ग भी हो रहे थे. मैं जब स्टूडियो में दाखिल हुआ, तो पता चला कि लाइव होगा. दुख हुआ कि पहले बता देते, तो सज-संवर कर जाते. वे भी क्या करें, प्रोग्राम के लिए मुख्य अतिथि, कवि, श्रोता, अश्रोता सभी को मैनेज करना पड़ता है. स्क्रीन पर कुर्सियां खाली न दिखें, मोबाइल न बजने पायें, कोई सो न जाये, कोई बीच में न उठे आदि.
स्टूडियो में अगली लाइन में सोफाजी और बाकी सभी में प्लास्टिक कुर्सियां रहती हैं. सोफाजी मुख्य अतिथि या गणमान्य व्यक्तियों के लिए होते हैं. यह बात एक कवि भूल गये, तो प्रोड्यूसर बोले कि उन्हें प्लास्टिक की कुर्सियों पर ही बैठना है. यह समझाने की नहीं, समझने की बात होती है. इससे साबित हुआ कि कवि नासमझ होते हैं.
मुख्य अतिथि हमेशा की तरह देर से आनेवाले थे, तो सोफाजी पर रिमूवेबल कर्मचारियों को रखा गया था. संचालक बोले, सहजता से बैठें ताकि उठते समय खटर-पटर न हो.
लेकिन वे भूल गये कि कवियों और पलास्टिक की कुर्सियों की खासियत यही होती है. निर्णायक का मोबाइल बज सकता था, बजा. बताया गया कि कविता तीन से पांच मिनट की एवं स्वरचित होनी चाहिए, मगर किसी ने जांचा नहीं कि किसने स्वरचित पढ़ी और किसने किसी दूसरे की खिसकाकर पढ़ी.
जब मुख्य अतिथि आ गये, तो सोफाजी को भी नॉर्मल लगने लगा. एक साधारण रिमूवेबल कर्मचारी अंत तक उस पर जमा रहा, यह सोफाजी को भी अच्छा नहीं लगा. संचालक को लगा कि कवि व दर्शक बोर हो रहे हैं, इसलिए प्रतियोगिता के बीच में मुख्य अतिथि का भाषण दिलवा दिया.
भाषण इतना सूचनाशाली था कि कवि सोने लगे. भाषण के बाद मुख्य अतिथि भी कार्यक्रम के समापन तक सोफाजी पर लेटे रहे. मेरी कविता, जिसे प्रथम स्थान मिला, मेरी पत्नी को पसंद नहीं थी, मगर पुरस्कार में मिले ब्रांडेड बरतन देखकर वह बोली- अगले बरस भी ऐसी ही कविता लिखना, जय हिंदी!

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