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भयावह वायु प्रदूषण

दुनिया की आबादी का बड़ा हिस्सा जहरीली हवा में सांस लेने को मजबूर है. भारत समेत कई देशों में यह खतरनाक होता जा रहा है.हालांकि, इसके जानलेवा नुकसान से संबंधित अनेक शोध हमारे सामने हैं, पर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर हुए तीन हालिया अध्ययनों से चिंता की लकीरें गहरी हो गयी हैं. इन रिपोर्टों के मुताबिक, […]

दुनिया की आबादी का बड़ा हिस्सा जहरीली हवा में सांस लेने को मजबूर है. भारत समेत कई देशों में यह खतरनाक होता जा रहा है.हालांकि, इसके जानलेवा नुकसान से संबंधित अनेक शोध हमारे सामने हैं, पर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर हुए तीन हालिया अध्ययनों से चिंता की लकीरें गहरी हो गयी हैं.

इन रिपोर्टों के मुताबिक, वायु प्रदूषण बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य पर असर डाल सकता है और इससे मनोवैज्ञानिक समस्याएं पैदा हो सकती हैं. इन अध्ययनों ने पहली बार प्रदूषण और बच्चों के मानसिक परेशानियों के संबंधों को रेखांकित किया है.

पर्यावरण के संकट और जलवायु परिवर्तन के नकारात्मक परिणामों से जूझती दुनिया को वायु के अलावा जल और जमीन के दूषित होते जाने की चुनौती से भी निबटने के प्रति गंभीर रवैया अपनाने की आवश्यकता है.

इन मुश्किलों से भारत जैसे देशों की परेशानी लगातार बढ़ रही है. राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली सबसे प्रदूषित शहरों की सूची में तो है ही, इस सूची के पहले 20 शहरों में 14 भारत में हैं. हर साल लाखों लोगों की मौत प्रदूषणजनित बीमारियों से हो जाती है या इससे उनके रोग बढ़ जाते हैं. विभिन्न स्वास्थ्य कारणों से होनेवाली मौतों का हिसाब देखें, तो भारत में वायु प्रदूषण तीसरा सबसे बड़ा कारण है.

संयुक्त राष्ट्र ने सभी देशों से निवेदन किया है कि वे 2030 तक विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा निर्धारित वायु गुणवत्ता मानकों को हासिल करने के लिए नीतिगत प्रयास करें. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अगुआई में भारत ने हर तरह के प्रदूषणों पर अंकुश लगाने तथा स्वच्छ ऊर्जा का उत्पादन बढ़ाने की दिशा में पहलकदमी की है. इस प्रक्रिया में जल संरक्षण पर ध्यान देने और प्लास्टिक के इस्तेमाल को घटाने की कोशिशें भी जुड़ी हैं. इन प्रयासों के कारण सकल घरेलू उत्पादन के अनुपात में कार्बन उत्सर्जन में 21 फीसदी की कमी की जा सकी है.

करोड़ों परिवारों तक रसोई गैस की सुविधा मुहैया कराने और स्वच्छ भारत अभियान के कार्यक्रमों से वायु प्रदूषण पर लगाम लगाने में मदद मिल रही है. लेकिन शहरों में वाहनों, निर्माण कार्यों और औद्योगिक गतिविधियों से पैदा होनेवाले प्रदूषण पर रोक के लिए दीर्घकालिक दृष्टि और नियमन की आवश्यकता है.

वर्ष 2050 तक दुनिया की दो-तिहाई आबादी शहरों में होगी और तब तक भारत में मौजूदा शहरी आबादी में 45 करोड़ लोग और जुड़ चुके होंगे. हाल के दो अन्य शोधों की मानें, तो 2030 तक हमारे देश में 67.4 करोड़ लोग जहरीली हवा में सांस लेने के लिए अभिशप्त होंगे. यह आकलन उस स्थिति का है, जब प्रदूषण की रोकथाम के मौजूदा नियम-कानूनों का पालन ठीक से किया जायेगा.

वैश्विक स्तर पर जलवायु संकट से निबटने के लिए सरकारों पर दबाव बढ़ता जा रहा है. यदि ठोस उपाय नहीं हुए, तो विभिन्न आयु वर्ग को होनेवाली शारीरिक स्वास्थ्य समस्याओं के साथ बच्चों के मन-मस्तिष्क के खतरे का सामना भी करना होगा. वह स्थिति हमारे सामूहिक भविष्य के लिए बहुत भयावह होगी. इसे टालना ही होगा.

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