आज का इनसान अपने स्वार्थ में इतना अंधा हो चुका है कि अपने फायदे के लिए हम धरती को भी छेद डाल रहा है. हम यह नहीं सोचते कि प्रकृति मानव का अत्याचार कब तक सहती रहेगी, गली-मुहल्ले के कूड़ेदान और नालियां प्लास्टिक से भरी होती हैं.
नदियों का अतिक्रमण कर हमने उन्हें नाला बना दिया है. आज कई घरों की गंदगी नदियों में समा रही है. लेकिन हमें इससे क्या? यह जानते हुए भी कि प्लास्टिक एड्स, कैंसर से भी अधिक जानलेवा है, हम इससे चाह कर भी बच नहीं पा रहे हैं.
बीमारियां तो सिर्फ व्यक्ति विशेष को प्रभावित करती हैं, लेकिन प्लास्टिक एक साथ जीव-जंतु एवं प्रकृति को नष्ट करने की क्षमता रखता है. लेकिन फिर भी हम खाली हाथ बाजार जाते हैं और सामान उसी दुकान से खरीदते हैं, जो हमें प्लास्टिक के थैले में सामान दे. आखिर यह आदत कब सुधरेगी?
अभिजीत घोष, बोकारो