दक्षिण एशिया समेत समूचे अंतरराष्ट्रीय मंच पर अलग-थलग पड़ चुके पाकिस्तान की बदहवासी का सिलसिला बरकरार है. उसका कश्मीर राग एक तरफ युद्ध और परमाणु हमले तक जा पहुंचा है, वहीं दूसरी ओर वह भारत के साथ बातचीत की शर्त भी रख रहा है.
बेतुकी बयानबाजी में एक और कड़ी जोड़ते हुए पाकिस्तानी विदेश मंत्री शाह महमूद कुरैशी ने कहा है कि उनकी सरकार भारत से बातचीत करने के लिए तैयार है, बशर्ते कश्मीरी नेताओं को रिहा कर दिया जाए तथा उनसे मिलने की मंजूरी मिले. इतना ही नहीं, उन्होंने कश्मीर में पाबंदियों को हटाने की मांग भी की है. भारत की ओर से लगातार कहा जाता रहा है कि कश्मीर उसका अंदरूनी मामला है. इसे दुनिया के लगभग सभी अहम देशों ने माना भी है. इसके बावजूद पाकिस्तान कश्मीर में हालात खराब करने की कोशिशों से बाज नहीं आ रहा है.
कुरैशी ने यह भी गलतबयानी की है कि पाकिस्तान ने भारत के साथ बातचीत करने से कभी गुरेज नहीं किया है. सच तो यह है कि जब भी घाटी में अमन-चैन बहाल होने की हालत पैदा हुई, पाकिस्तान ने आतंकवाद और अलगाववाद का सहारा लेकर माहौल खराब करने की कोशिश की है. उसने आतंकियों की घुसपैठ करायी है, अलगाववादियों को धन मुहैया कराया है, कश्मीरी नौजवानों को गुमराह किया है तथा नियंत्रण रेखा व अंतरराष्ट्रीय सीमा पर युद्धविराम का लगातार उल्लंघन किया है.
भारत ने हमेशा यही कहा है कि पाकिस्तान अपनी धरती का इस्तेमाल आतंकी गिरोहों को न करने दे और उन्हें शह देना बंद कर दे. संयुक्त राष्ट्र और अमेरिका एवं अन्य देशों द्वारा प्रतिबंधित हाफिज सईद और मसूद अजहर जैसे आतंकी सरगनाओं और उनके द्वारा संचालित गिरोहों को पाकिस्तानी सरकार और सेना का संरक्षण मिला हुआ है.
कुछ दिन पहले खुद पाकिस्तानी प्रधानमंत्री इमरान खान यह स्वीकार कर चुके हैं कि पाकिस्तान में बड़ी संख्या में आतंकवादी मौजूद हैं और इस सच्चाई को वहां की पूर्ववर्ती सरकारों ने दुनिया से छुपाया था. तो, अब तो उन्हें इन आतंकियों का दमन करना चाहिए, जो भारत और अफगानिस्तान में ही नहीं, बल्कि पाकिस्तान में भी निरीह जनता को निशाना बनाते रहे हैं.
यदि पाकिस्तान बातचीत करने और दोनों देशों के बीच तनाव कम करने को लेकर ईमानदार है, तो उसे आतंकियों का साथ देना बंद कर देना चाहिए. अपने पड़ोसी देशों को अस्थिर करने की कोशिश के बजाय पाकिस्तानी सरकार को अपने देश में विभिन्न समुदायों पर हो रहे सैनिक दमन और चरमपंथियों के कहर पर लगाम लगाना चाहिए. उसकी अर्थव्यवस्था दिवालियेपन के कगार पर है. वैश्विक राजनीति में उसकी पक्षधरता करनेवाले देशों की संख्या बहुत कम है.
एक ओर इमरान सरकार चरमराती आर्थिकी को बचाने के लिए दुनियाभर से अनुदान और कर्ज की गुहार लगा रही है, वहीं युद्धोन्माद में वह मिसाइलों का परीक्षण भी कर रही है. बेतुकेपन की हद लांघने से बेहतर है कि पाकिस्तान अपनी मुश्किलों की परवाह करे और एक देश के रूप में दुनिया की नजर में भरोसेमंद बनने की कोशिश करे.