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बढ़ती डिजिटल ठगी
कुछ दिन पहले पंजाब के मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह की पत्नी और पटियाला से सांसद परनीत कौर के खाते से साइबर ठगों द्वारा 23 लाख रुपये उड़ाने का सनसनीखेज मामला सामने आया है. फोन कॉल के विवरण के जरिये अपराधी को पकड़ने में कामयाबी तो मिली है, पर सवाल यह है कि ठगी के इस सिलसिले […]
कुछ दिन पहले पंजाब के मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह की पत्नी और पटियाला से सांसद परनीत कौर के खाते से साइबर ठगों द्वारा 23 लाख रुपये उड़ाने का सनसनीखेज मामला सामने आया है.
फोन कॉल के विवरण के जरिये अपराधी को पकड़ने में कामयाबी तो मिली है, पर सवाल यह है कि ठगी के इस सिलसिले पर अंकुश कैसे लगे. आम जन से लेकर अधिकारी, सांसद और सिलेब्रिटी तक ऐसे गिरोहों के जाल में फंस कर अपनी कमाई लुटा चुके हैं. लेन-देन और भुगतान के साथ विभिन्न बैंकिंग गतिविधियों में स्मार्ट फोन और इंटरनेट का इस्तेमाल लगातार बढ़ रहा है.
वित्तीय व्यवस्था को डिजिटल बनाने पर भी जोर दिया जा रहा है, ताकि सुविधा के साथ सुरक्षा और पारदर्शिता को भी सुनिश्चित किया जा सके. ठगी का एक रूप तो यह है कि अपराधी जागरूकता की कमी या लापरवाही का फायदा उठाकर सीधे ग्राहकों से ही खातों, डेबिट या क्रेडिट कार्डों और इ-बैंकिंग से जुड़े गोपनीय जानकारियां मांग कर पैसे उड़ा लेते हैं.
इसके अलावा कार्ड क्लोनिंग, हैंकिंग आदि से भी धोखाधड़ी के मामले भी सामने आते रहते हैं. पिछले साल जुलाई में ग्राहकों की बढ़ती शिकायतों पर कार्रवाई करते हुए रिजर्व बैंक ने इ-बैंकिंग और ग्राहकों की सुरक्षा के लिए व्यापक दिशा-निर्देश जारी किये थे. इसमें एक विशेष व्यवस्था यह है कि धोखाधड़ी के बारे में पता लगाने की जिम्मेदारी बैंकों पर है, लेकिन ग्राहक को भी इसकी जानकारी तुरंत बैंक को देनी होती है.
बैंकों को यह भी निर्देश है कि वे ग्राहकों के मोबाइल नंबर और इमेल आइडी को खाते से जोड़ कर उन्हें लेन-देन के बारे में आगाह करें. बैंकों ने अपने स्तर पर ग्राहकों को लगातार सूचित किया है कि वे अपने खाते की बुनियादी जानकारी किसी से भी साझा न करें, भले ही फोन करनेवाला व्यक्ति बैंक का ही कर्मचारी क्यों न हो.
इसके बावजूद ग्राहकों को लूटने में अपराधी कामयाब हो जा रहे हैं. यह भी अचरज की बात है कि ऐसे ग्राहकों में पढ़े-लिखे लोगों की तादाद बड़ी है. मीडिया के माध्यम से भी ऐसे अपराधों के बारे में बताया जाता है. ऐसे में जरूरी यह है कि ग्राहक अपनी जिम्मेदारी को समझे तथा अपनी जेब की तरह अपने खाते और कार्डों का भी ख्याल रखे.
बैंकों को भी चेताने की कोशिश जारी रखनी चाहिए और एक निश्चित राशि से अधिक की निकासी, खर्च या हस्तांतरण को अधिक सुरक्षित बनाने के लिए कुछ उपायों पर विचार करना चाहिए. हालांकि, कई मामलों में अपराधियों की गिरफ्तारी होती रहती है और अनेक गिरोहों का पर्दाफाश हुआ है, लेकिन अपराध को रोकने और निगरानी बेहतर करने की जिम्मेदारी पुलिस की भी है.
जिन राज्यों में सक्रिय गिरोहों के कारनामे सबसे ज्यादा हैं, वहां अधिक ध्यान भी दिया जाना चाहिए. अपराधियों के तौर-तरीकों के बारे में जानकारी जुटा कर तथा बैंकों और पुलिस के साइबर तंत्र को दुरुस्त कर धोखाधड़ी को रोकने में मदद मिल सकती है. सतर्कता और निगरानी के बिना डिजिटल ठगी पर नकेल कसना संभव नहीं होगा.
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