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संसद की सक्रियता
देश की सबसे बड़ी पंचायत संसद का मौजूदा सत्र अनुच्छेद 370 और जम्मू-कश्मीर के विभाजन व उसकी शासन प्रणाली में बदलाव के कारण एक ऐतिहासिक सत्र बन गया है. परंतु, एक अन्य अहम वजह से भी इस सत्र ने संसदीय इतिहास में अपनी जगह बना ली है. चालू सत्र में अब तक 30 विधेयक पारित […]
देश की सबसे बड़ी पंचायत संसद का मौजूदा सत्र अनुच्छेद 370 और जम्मू-कश्मीर के विभाजन व उसकी शासन प्रणाली में बदलाव के कारण एक ऐतिहासिक सत्र बन गया है. परंतु, एक अन्य अहम वजह से भी इस सत्र ने संसदीय इतिहास में अपनी जगह बना ली है. चालू सत्र में अब तक 30 विधेयक पारित हो चुके हैं और सोमवार को भी जम्मू-कश्मीर से जुड़े प्रस्तावों पर चर्चा हुई. इसके बाद भी आज और कल सत्र जारी रहेगा. इस अवधि में भी कुछ विधेयक पारित होंगे. इससे पहले सर्वाधिक विधेयक पहली लोकसभा के एक सत्र में 1952 में पारित हुए थे.
तब 64 दिनों की कार्यवाही में संसद ने 27 विधेयकों को मंजूरी दी थी. संसद का मुख्य काम जरूरी विधेयकों पर चर्चा कर उन्हें कानूनी रूप देना है. इस प्रक्रिया में सांसद अपनी राय देते हैं और संशोधन भी प्रस्तुत करते हैं. इस तरह पारित विधेयक देश की आकांक्षाओं के प्रतिनिधि होते हैं. लोकसभा के अध्यक्ष ओम बिरला ने उचित ही कहा है कि हमें लोगों के भरोसे पर खरा उतरना होगा, जिन्हें हमसे बहुत अपेक्षाएं हैं. विधेयकों के सदन में लाने में अध्यक्ष की बड़ी भूमिका होती है और आंकड़े इंगित करते हैं कि वे इसे बखूबी निभा रहे हैं.
चालू सत्र की इस उपलब्धि का श्रेय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को भी जाता है. उन्होंने कुछ दिनों पहले सदन की चर्चाओं में और सरकार की ओर से जवाब देने के वक्त गैरहाजिर रहनेवाले मंत्रियों पर नाराजगी जतायी थी. इस सत्र के पहले दिन ही उन्होंने अपने दल और गठबंधन के सांसदों से भी अनुशासन और मर्यादा को लेकर गंभीर रहने का निर्देश देते हुए कहा था कि संसद में पक्ष और विपक्ष को भूलकर देशहित में निष्पक्ष होकर काम करना चाहिए.
इस सत्र में सूचना के अधिकार कानून में संशोधन, गैरकानूनी गतिविधियों पर रोक लगाने के कानून में संशोधन, नियमन के बिना चलनेवाली बचत योजनाओं पर पाबंदी, मोटर वाहन संशोधन विधेयक, बच्चों के खिलाफ अपराध पर अंकुश, दिवालिया नियमों में बदलाव तथा तीन तलाक की महिलाविरोधी परंपरा को रोकने के कानून जैसे कई महत्वपूर्ण प्रस्तावों पर संसद ने मुहर लगायी है.
सभी विधेयकों पर विस्तार से चर्चा अनेक कारणों से संभव नहीं हो पाती है तथा कुछ ऐसे प्रस्ताव भी होते हैं, जिन पर पक्ष और विपक्ष में सहमति होती है. लेकिन, कुछ विधेयकों पर विपक्षी दलों या सत्तारूढ़ गठबंधन में शामिल पार्टियों ने असहमति भी जतायी है. ऐसे प्रस्तावों को संसदीय समिति को भेजने की मांग भी उठी. कुछ अवसरों पर विपक्ष ने चर्चा के लिए अधिक समय भी मांगा.
ऐसे कुछ अनुरोधों को तो स्वीकार किया गया, लेकिन विपक्ष का आरोप है कि सरकार संख्या बल के आधार पर उसकी आवाज दबाने की कोशिश कर रही है. पक्ष व विपक्ष के परस्पर आरोप अपनी जगह हैं, पर सरकार और पीठासीन अधिकारियों को विपक्ष को भरोसे में लेने की पूरी कोशिश करनी चाहिए. बहरहाल, दोनों सदनों की सराहनीय उत्पादक सक्रियता आगे के लिए शानदार मिसाल है.
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