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प्रेमचंद को याद करने की जरूरत

रविभूषण वरिष्ठ साहित्यकार ravibhushan1408@gmail.com आज गांधी जी और भगत सिंह को याद करना जितना जरूरी है, उससे कम जरूरी नहीं है प्रेमचंद को याद करना. एक ही समय प्रधानमंत्री और एक महत्वपूर्ण समकालीन लेखक प्रेमचंद को क्यों याद करते हैं? क्यों नरेंद्र मोदी यह मानते हैं कि प्रेमचंद की कहानियों में समूचे भारत का मनोभाव […]

रविभूषण

वरिष्ठ साहित्यकार

ravibhushan1408@gmail.com

आज गांधी जी और भगत सिंह को याद करना जितना जरूरी है, उससे कम जरूरी नहीं है प्रेमचंद को याद करना. एक ही समय प्रधानमंत्री और एक महत्वपूर्ण समकालीन लेखक प्रेमचंद को क्यों याद करते हैं? क्यों नरेंद्र मोदी यह मानते हैं कि प्रेमचंद की कहानियों में समूचे भारत का मनोभाव समाहित है, और संजीव उनकी ‘कहानियाें का मूल तत्व विस्थापित मनुष्यता का सही स्थापन’ समझते हैं?

तीस जून, 2019 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ‘मन की बात’ कार्यक्रम में प्रेमचंद की तीन कहानियों- ‘ईदगाह’ (चांद, अगस्त, 1933), ‘पूस की रात’ (माधुरी, मई, 1930), ‘नशा’ (चांद, फरवरी, 1934) में ‘व्यक्त संवेदना’ की बात कही और संजीव ने, ‘प्रेमचंद और आज का समय’ (आउटलुक, 29 जुलाई, 2019) में ‘आज के सारे प्रतिरोधों और विमर्शों के बीज, किसान, दलित, सांप्रदायिकता, राष्ट्रवाद आदि की आहटें’ ‘गोदान’ में सुनीं. नरेंद्र मोदी ने पिछले साल ‘ईदगाह’ कहानी से प्रेरित होने की बात कही थी. उन्हें हामिद से प्रेरणा प्राप्त हुई थी. अगर हामिद दादी के लिए कुछ कर सकता है, तो देश का प्रधानमंत्री क्यों नहीं कर सकता? ‘उज्ज्वला योजना’ को उन्होंने इससे जोड़ लिया. संजीव के लिए आज भी रोल मॉडल प्रेमचंद ही हैं.

गांधी, भगत सिंह और प्रेमचंद ने जिस ‘स्वराज’ की कल्पना की थी, वह हमें नहीं मिली. हम सब ठगे गये. ‘गबन’ में देवीदीन ने जो आशंका प्रकट की थी, वह पूरी तरह सच हुई. उस समय केवल कांग्रेस थी और यह स्वाभाविक था कि प्रेमचंद उसे कठघरे में खड़ा करते. स्वाधीन भारत में अनेक राजनीतिक दल हैं और इन्हें कठघरे में खड़ा करनेवाला क्या सचमुच कोई भारतीय लेखक है? आज अगर प्रेमचंद जीवित होते, तो संभव था उन्हें ‘नक्सल लेखक’ करार दिया जाता, क्योंकि उन्होंने एक साथ राष्ट्रवाद, ब्राह्मणवाद, स्वार्थांधता, सत्ता लोलुपता, सूदखोर महाजन, जाति-वर्ण व्यवस्था, सांप्रदायिकता, सनातन धर्म, आर्थिक असमानता सब पर जमकर चोटें की थीं और यह बताया था कि इन सबको समाप्त किये बिना हम ‘स्वराज’ हासिल नहीं कर सकते. पिछले वर्ष प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उन्हें ‘देश का बहुत बड़ा विद्वान लेखक’ कहा था. प्रेमचंद के गंभीर अध्येता उन्हें क्रांतिकारी लेखक, परिवर्तनकारी लेखक के रूप में याद करते हैं.

जिन तीन कहानियों की चर्चा प्रधानमंत्री ने, और नशा कहानी की संजीव ने की है, उनके गंभीर पाठ की आज अधिक आवश्यकता है. ‘ईदगाह’ में हामिद के सभी साथी- महमूद, मोहसिन, नूर और सम्मी एक मजहब के हैं, पर उनकें आर्थिक असमानता है. हामिद के घर ‘ईद के दिन दाना नहीं’ है.

‘ईदगाह’ में कोई ‘धन और पद नहीं देखता, वहां सब समान हैं.’ ‘ईदगाह’ में चिमटा ‘रुस्तम-ए-हिंद’ है, जो खिलौने के वकील को पटककर ‘उनका कानून उनके पेट में डाल देगा.’ कानून को पेट में डालना ‘बेतुकी बात होने पर भी कुछ नयापन रखती है’. लॉर्ड कॉर्नवालिस को जाने बिना क्या सचमुच ‘पूस की रात’ कहानी समझी जा सकती है? वॉरेन हेस्टिंग्स के बाद कॉर्नवालिस 12 सितंबर, 1786 से 28 अक्तूबर, 1793 तक बंगाल का दूसरा गवर्नर जनरल था, जो भारतीय सिविल सेवा के जनक के रूप में जाना जाता है.

सन 1793 में इसने प्रसिद्ध कॉर्नवालिस कोर्ट का निर्माण कराया था और बंगाल में जिस स्थायी बंदोबस्त की शुरुआत की थी, वह पुरानी राजस्व-पद्धति से भिन्न एक नयी राजस्व-पद्धति थी. ‘पूस की रात’ कहानी में नीलगायों का झुंड फसल चर चुका है. खेत के रौंदे जाने से हल्कू प्रसन्न है और उसकी पत्नी मुन्नी चिंतित, क्योंकि ‘अब मजूरी करके मालगुजारी भरनी पड़ेगी’. खेत में फसल न होने के बाद भी मालगुजारी देने की नयी नीति कॉर्नवालिस ने ही लागू की थी. जिस प्रकार ‘ईदगाह’ में चिमटा एक पात्र है, उसी प्रकार ‘पूस की रात’ में जबरा कुत्ता एक पात्र है. हल्कू-जबरा की मैत्री सामान्य नहीं है.

कुत्ते की देह से दुर्गंध निकल रही है, पर ‘हल्कू की पवित्र आत्मा में कुत्ते के प्रति घृणा की गंध न थी’. प्रेमचंद ने इसे ‘अनोखी मैत्री’ कहा है. नीलगाय और जबरा दोनों पशु हैं, पर जबरा नीलगाय की हरकत का भौंककर विरोध करता है. जबरा गलत का विरोध करता है. आज गलत का विरोध करनेवाले कितने हैं?

इस कहानी में मुन्नी खेती छोड़ देने की बात कहती है. आज डेढ़ करोड़ से अधिक किसानों ने खेती छोड़ दी है, जिन तीन लाख से ज्यादा किसानों ने आत्महत्या की, वे होरी (गोदान) और हल्कू (पूस की रात) की संताने हैं. जो समझते हैं कि हिंदी की कथा-साहित्य प्रेमचंद से बहुत आगे बढ़ गया है, वे प्रेमचंद, उनके समय और आज के समय के भारत का समग्र पाठ करें.

‘नशा’ कहानी पढ़कर प्रधानमंत्री का ध्यान ‘समाज में व्याप्त आर्थिक विषमताओं’ पर गया और संजीव ने इसे ‘किसी भी सत्ता के नशे में अपनी चेतना, विवेक के लोप की बेहतरीन कथा’ कहा. ‘नशा’ कहानी झूठ के खिलाफ है.

प्रेमचंद ने ‘सफेद झूठ’ की बात कही है. ईश्वरी झूठ बोलता है कि उसके मित्र की रियासत है. सब इस झूठ को सच समझ लेते हैं. झूठ को सच समझनेवालों को ईश्वरी ने ‘गधा’ कहा है. ‘पोस्ट ट्रूथ’ के इस दौर में ‘नशा’ कहानी के नये पाठ की जरूरत है, क्योंकि आज चारों ओर झूठ का ही राज है. हमेशा याद रखें कि प्रेमचंद सदैव ‘सत्य’ और ‘न्याय’ के पक्ष में डटकर खड़े रहे- झूठ और अन्याय के विरुद्ध. यही सृजन-कर्म है.

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