पुराणों में कहा गया है, गोधन, गजधन, बाजधन और रतन-धन खान/जब आवै संतोष धन, सब धन धूरि समान//.इसका मतलब सबसे बड़ा धन ‘संतोष-धन’ है. दिन-रात हम भौतिक सुखों को पाने की दौड़ लगा रहे हैं. हम इसे ही अपनी सुख-शांति मानते हैं, लेकिन स्थिति इसके उलट हो रही है, हमें सुख-शांति के बजाय दु:ख और अशांति मिलती है, इसका मतलब कहीं न कहीं हम गलत हैं.
और यह गलती है हमारी सोच की, हमारे विचारों की. संत-महात्माओं ने हमेशा से कहा है कि जिस सुख-शांति-संतुष्टि को तुम चाहते हो, वह तो सदैव तुम्हारे अंदर है, बस अंतमरुख होने की जरूरत है. ज्ञान द्वारा हमारा चिंतन, हमारी सोच अंतमरुखी हो सकती है. ज्ञान-चिंतन से वैराग्य, अपरिग्रह, ईश्वर के प्रति प्रेम व समर्पण का भाव जागता है, जिससे सहज ही संतोष धन की प्राप्ति होती है.
बालकृष्ण त्रिवेदी, ई-मेल से