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Friday, March 29, 2024

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बजट-भाषण में कवि, लेखक, विचारक

रविभूषण वरिष्ठ साहित्यकार ravibhushan1408@gmail.com अभी तक संभवत: इस पर विचार-विमर्श नहीं हुआ है कि स्वाधीन भारत के वित्त मंत्रियों ने अपने बजट-भाषण में कवियों, लेखकों और विचारकों को उद्धृत करने की आवश्यकता क्यों समझी और यह सिलसिला कब से आरंभ हुआ. यह एक रोचक, अध्ययन-विवेचन का विषय है, जिस पर न तो लेखकों का ध्यान […]

रविभूषण
वरिष्ठ साहित्यकार
ravibhushan1408@gmail.com
अभी तक संभवत: इस पर विचार-विमर्श नहीं हुआ है कि स्वाधीन भारत के वित्त मंत्रियों ने अपने बजट-भाषण में कवियों, लेखकों और विचारकों को उद्धृत करने की आवश्यकता क्यों समझी और यह सिलसिला कब से आरंभ हुआ. यह एक रोचक, अध्ययन-विवेचन का विषय है, जिस पर न तो लेखकों का ध्यान गया, न अर्थशास्त्रियों-समाजशास्त्रियों का. संभव है, उनके लिए यह महत्वहीन हो, पर उन वित्त मंत्रियों के लिए, जिन्होंने अपने बजट-भाषण में इन्हें उद्धृत किया है, महत्वहीन नहीं था. समय-समय पर एक अति संक्षिप्त सूची पेश की गयी है, पर वह मात्र उल्लेख है.
क्या वित्त मंत्रियों से यह सवाल नहीं किया जाना चाहिए था कि वे अपने बजट-भाषण में कवियों की काव्य-पंक्तियों, विचारकों, चिंतकों, लेखकों और समाज सुधारकों के विचार क्यों प्रस्तुत करते रहे हैं? क्या यह अर्थशास्त्रीय आंकड़ों और उबाऊ भाषणों की नीरसता की समाप्ति के लिए है, एक छौंक की तरह या सचमुच वे हमारे लिए उपयोगी भी हैं?
हिंदी के किसी भी बड़े आलोचक और कवि नागार्जुन के गंभीर, महत्वपूर्ण आलोचक (नामवर समेत) ने इस पर ध्यान नहीं दिया है कि नागार्जुन ने 28 फरवरी, 1950 में एक कविता ‘बजट वार्तिक’ लिखी थी, जिसमें उन्होंने जान मथाई का नामोल्लेख किया- ‘मथनी लेकर जान मथाई/ अमृत मथ रहे/ रत्नाकर का आमंत्रण चौदहों भुवन के दिक्पालों को.’ स्वतंत्र भारत के पहले बजट पर तुरंत कविता लिखनेवाले नागार्जुन अकेले भारतीय कवि हैं. पाणिनीय सूत्रों पर वार्तिक वररुचि ने लिखा था. मथाई के बजट पर वार्तिक नागार्जुन ने लिखा.
मथाई का बजट-भाषण सहज उपलब्ध नहीं है. नागार्जुन ने कविता के अंत में लिखा- ‘गंगा-यमुना के कछार में/ आ-आकर अंडे देगी अब/ दुनिया भर की जोंकें/ रामराज की सरल प्रजा का तरल रक्त/ कितना सस्ता है.’ एक साथ सरकार की वित्त और विदेश नीति भी. एक संकेत ही सही, पर वह है.
भारत में नव उदारवादी अर्थव्यवस्था को लागू किये जाने के बाद ही बजट-भाषण में काव्य-पंक्तियों को स्थान मिला. मनमोहन सिंह ने अपने बजट-भाषण में इकबाल के साथ फ्रेंच कवि, उपन्यासकार, नाटककार विक्टर ह्यूगो को भी याद किया था. साल 1991 में 24 जुलाई को अपने बजट-भाषण में उन्होंने ह्यूगो की यह प्रसिद्ध पंक्ति उद्धृत की- ‘कोई भी ताकत उस विचार को नहीं रोक सकती, जिसके आने का समय हो चुका है.’ सभी सरकारों ने नव उदारवादी अर्थव्यवस्था को गले लगाया.
ह्यूगो ने यह भी कहा है कि मृत विचार का कोई दास नहीं होगा, क्या विडंबना है कि हमारी सरकारें नव उदारवादी विश्व अर्थव्यवस्था की दास हो गयीं. प्रणब मुखर्जी, पी चिदंबरम, यशवंत सिन्हा, अरुण जेटली आदि काे फिलहाल छोड़कर पहली पूर्णकालिक महिला वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण के 2 घंटे, 10 मिनट के बजट-भाषण में बीच-बीच में तमिल, संस्कृत, उर्दू आदि के उद्धरण देखे. उन्होंने अपने बजट में खर्चे और राजस्व प्राप्ति के आंकड़े नहीं बताये. कई प्रमुख व्यक्तियों ने संसद में इन आंकड़ों का खुलासा न करने को ‘अनैतिक’ कहा है.
वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने आरंभ में एक शेर पढ़ा- ‘यकीन हो तो कोई रास्ता निकलता है/ हवा की ओट लेकर भी चराग जलता है.’ जिनका यह शेर है, उस मंजूर हाशमी (1938-2008) का उन्होंने उसी तरह नाम नहीं लिया, जिस तरह पीयूष गोयल ने अपने अंतरिम बजट-भाषण में मुक्तिबोध की काव्य-पंक्तियां पढ़ीं और कवि का नाम नहीं लिया.
सीतारमण ने अपने बजट-भाषण में सरकार और करदाता के बीच के संबंध को समझाने के लिए ‘संगम युग’ की तमिल कविता उद्धृत की. उन्होंने दो हजार 200 वर्ष पहले के तमिल कवि पिसिरंधयार द्वारा राजा सुंडिअन अरिवुदई नाम्बी को दी गयी सलाह की बात कही, जो ‘पुरानन्नरु’ संग्रह/ चयनिका का 184वां पद है.
इस संग्रह में कुल 400 पद हैं, जिनसे यह पता चलता है कि कब, किस कवि ने किस राजा को सलाह दी. इन सभी पदों का रेंज व्यापक है, जिसमें युद्ध, भयावहता, उदारता, नैतिकता और दर्शन-संबंधी पद है. कवि पिसिरंधयार मदुरई के पास के पिसिर गांव के थे. राजा से उनकी मैत्री की कथा प्रसिद्ध है.
उस समय राजा मंत्री का कितना आदर करते थे, इसे सीतारमण जानती होंगी, पर आज के शासक का बुद्धिजीवी समुदाय से कैसा रिश्ता है, यह भी सब जानते हैं. पिसिरंधयार ने राजा को समझाया था कि एक हाथी धान के खेत से दो टीले चावल खाकर खुश होगा, पर खेत में जाने पर वह खायेगा कम और खेत रौंदेगा अधिक.
वित्त मंत्री ने एक प्रतीक के रूप में इसे पेश किया कि वर्तमान सरकार करदाता को रौंदेगी नहीं, उससे जरूरी कर लेकर वह प्रसन्न होगी. वित्त मंत्री ने स्वामी विवेकानंद को उद्धृत किया कि महिलाओं की स्थिति में सुधार के बिना विश्व का कल्याण नहीं हो सकता और 12वीं सदी के महान सुधारक-विचारक बिसवेश्वरा को उद्धृत कर यह कहा कि हमारी सरकार भगवान बिसवेश्वरा की शिक्षाओं को मान्यता देती है और उनका अनुसरण करती है.
क्या वर्तमान सरकार महान तमिल कवि पिसिरंधयार, समाज सुधारक बिसवेश्वरा और विवेकानंद के आदर्शों को सचमुच समझती है या यह सब महज एक छौंक की तरह है? जिस मंजूर हाशमी को वित्त मंत्री ने उद्धृत किया, उनकी एक गजल मशहूर है- ‘नयी जमीं न कोई आसमान मांगते हैं/ बस एक गोशा-ए-अमनो-अमान मांगते हैं.’ अमान मांगना एक मुहावरा है, जिसका अर्थ है रक्षा की प्रार्थना करना.
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