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बिन पानी सब सून

देश के कई इलाके गंभीर जल संकट से जूझ रहे हैं. बहुत कमजोर मॉनसून की वजह से इसमें सुधार की उम्मीद भी बहुत कम है. ऐसी स्थिति के लिए सरकारों और समाज की लापरवाही और कुप्रबंधन जिम्मेदार है. एक तरफ विकास और कृषि के कारण पानी की मांग लगातार बढ़ती जा रही है, तो दूसरी […]

देश के कई इलाके गंभीर जल संकट से जूझ रहे हैं. बहुत कमजोर मॉनसून की वजह से इसमें सुधार की उम्मीद भी बहुत कम है. ऐसी स्थिति के लिए सरकारों और समाज की लापरवाही और कुप्रबंधन जिम्मेदार है.

एक तरफ विकास और कृषि के कारण पानी की मांग लगातार बढ़ती जा रही है, तो दूसरी ओर जलवायु परिवर्तन और वैश्विक तापमान में बढ़ोतरी से मौसम का मिजाज बदलता जा रहा है. ऐसे में पानी को समझ-बूझ के साथ इस्तेमाल करने के साथ उसे बचाने और जमा करने की कवायद पर जोर देने की जरूरत है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देश से अपने रेडियो संबोधन में यही आह्वान किया है.

संसद में राष्ट्रपति के अभिभाषण पर तथा नीति आयोग की बैठक में भी उन्होंने पानी बचाने तथा आगामी पांच सालों में घर-घर तक पेयजल पहुंचाने के सरकार के संकल्प को रेखांकित किया है. इस दिशा में नवगठित जल शक्ति मंत्रालय तथा जल क्रांति अभियान जैसे ठोस कदम उठाये गये हैं.

कमजोर मॉनसून और समुचित जल वितरण के अभाव में भूजल का अंधाधुंध दोहन हो रहा है. इसका एक भयावह नतीजा चेन्नई के मौजूदा संकट के रूप में सामने है. देश के 17 राज्यों के कम-से-कम 256 जिलों में भूजल का स्तर बहुत नीचे जा चुका है. इन जिलों में देश के कई बड़े शहर भी बसे हुए हैं.

दोहन को नियंत्रित करने के साथ बारिश और अन्य स्रोतों के पानी को सहेजकर भूजल के स्तर को बढ़ाया जा सकता है. जमीन के भीतर पानी संरक्षित हो, इसके लिए झील, तालाब, पोखर आदि का बचे और बने रहना भी बहुत जरूरी है. बहुत समय नहीं बीता है, जब देश में ऐसे छोटे-बड़े जलाशयों की संख्या 30 लाख के आसपास थी, परंतु आज महज 10 लाख ही बचे हुए हैं. अनियंत्रित शहरीकरण और दिशाहीन विकास ने इन जल कुंडों पर बस्तियां बसा लीं या कुछ और निर्माण कर दिया है.

इस कारण शहरों में बाढ़ और सूखे की बारंबारता भी बढ़ी है. जो चेन्नई आज पानी के लिए तरस रहा है, वह 2015 में बाढ़ में डूब रहा था. चेन्नई के अलावा 2005 में मुंबई में तथा 2013 में उत्तराखंड में आयी विनाशक बाढ़ का एक मुख्य कारण जलाशयों पर अतिक्रमण ही था.

पिछले साल हिमालय की गोद में और नदियों-सोतों के बीच बसे शिमला में पानी मुहाल हो गया था, तो कुछ साल पहले इतनी ऊंचाई पर बसे श्रीनगर में बाढ़ ने कहर ढा दिया था. अभी देश के 91 बड़े जलाशयों में से 11 पूरी तरह सूख चुके हैं तथा शेष में सामान्य से बहुत कम पानी बचा हुआ है. नदियों में बहुत कम पानी होने के कारण नहरों से भी आपूर्ति बहुत प्रभावित हुई है.

चूंकि करीब 85 फीसदी पानी सिर्फ खेती में खप जाता है, तो बचाव के लिए खेती के तरीकों में बदलाव जरूरी है. हमारी जरूरत का 40 फीसदी पानी भूजल से आता है, सो उसे बढ़ाने के लिए हर नागरिक को योगदान करना होगा. उम्मीद है कि केंद्र और राज्य सरकारें जल संरक्षण के लिए तुरंत नीतिगत पहल करेंगी.

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