पिछले दिनों आधी आबादी पन्नों पर ‘कलियुगी मां की करतूत’ शीर्षक से छपी खबर में जालंधर की उस महिला को दुत्कारा गया है जिसने अपनी नवजात बच्ची को खंडहर में फेंक दिया. आश्चर्यजनक है कि ऐसी वारदातों में हम उन पिताओं को नजरअंदाज कर देते हैं जो ऐसे हालात के लिए ज्यादा जिम्मेदार हुआ करते हैं.
हमारे समाज में कुंआरी माताएं आज भी बरदाश्त नहीं होती हैं. माता को कुमाता घोषित करने से पहले हमें उन परिस्थितियों पर गौर करना चाहिए, जिनमें वह ऐसा करने पर विवश हुई होगी. अपने शरीर के अंश को कोई यूं ही खुद से अलग नहीं कर देता. समय का तकाजा है कि हम सिंगल मदर को भी इज्जत देना सीखें. जिस दिन हमारा समाज इतना परिपक्व, उदार, समझदार हो जायेगा, अकेली स्त्रियां अपनी बच्चियों को जन्म देने और पालन-पोषण करने का साहस दिखलायेंगी.
डॉ उषा किरण, खेलगांव, रांची