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आवेला असाढ़ मास, लागेला अधिक आस…

चंदन तिवारी लोकगायिका chandan.tiwari59@gmail.com आसाढ़ सामने है. किसानों के जीवन में उल्लास लानेवाला महीना, जिसका इंतजार वे बेसब्री से करते हैं. खेती की शुरुआत इस महीने में होती है.इसी महीने मॉनसून आता है, बरखा-बुनी लाता है. खेतों और प्रकृति को नया जीवन मिलता है. नदी-तालाब अपने रंग में लौटने लगते हैं. आसाढ़ पर सावन का […]

चंदन तिवारी

लोकगायिका

chandan.tiwari59@gmail.com

आसाढ़ सामने है. किसानों के जीवन में उल्लास लानेवाला महीना, जिसका इंतजार वे बेसब्री से करते हैं. खेती की शुरुआत इस महीने में होती है.इसी महीने मॉनसून आता है, बरखा-बुनी लाता है. खेतों और प्रकृति को नया जीवन मिलता है. नदी-तालाब अपने रंग में लौटने लगते हैं. आसाढ़ पर सावन का मनभावन होना टिका होता है. ऐसी कई विशेषताएं हैं, जिसकी वजह से लोक का यह प्यारा मौसम है.

आसाढ़ के बाद सावन आयेगा, तो बात कजरी की होने लगेगी. कजरी को सावन से जोड़ दिया जाता है और फिर कजरी पर जितनी बात होती है, उतनी बात आसाढ़ के गीतों पर नहीं होती, जबकि लोकगीतों की दुनिया में आसाढ़ सिर्फ खास और लोकप्रिय नहीं, बल्कि यह पहले महीने की तरह भी माना जाता है.

लोकगीतों की दुनिया में एक सदाबहार, लोकप्रिय विधा है बारहमासा की. हिंदी इलाकों में जाएं, तो हर लोकभाषा में बारहमासा गायन की परंपरा रही है. बारहमासा का नाम लेते ही अपने देश में सबसे पहले मलिक मोहम्मद जायसी की चर्चा होती है, जिन्होंने कालजयी बारहमासा की रचना की.

जायसी का बारहमासा महाकाव्य ‘पद्मावत’ का एक अहम हिस्सा है. जायसी ने बारहमासा में रत्नसेन की पत्नी नागमती की विरह-वेदना को स्वर दिया है.

रत्नसेन जब चित्तौड़ छोड़ जाते हैं और नहीं आते हैं, तो नागमती को लगता है कि रत्नसेन किसी और के प्रेमजाल में फंस गये. वह एक-एक महीना इंतजार में गुजारती है. आशंका और उम्मीदों के साथ और उसी हर महीने को अलग-अलग छंदों में बांधा है जायसी ने. खास बात यह है कि जब जायसी नागमती के विरह को स्वर देते हैं, तो अपने बारहमासा में अासाढ़ से ही शुरुआत करते हैं.

पहली पंक्ति है- चढ़ा असाढ़, गगन घन गाजा. साजा विरह दुंद दल बाजा… उनसे इतर बारहमासा की दुनिया में सब आसाढ़ को ही विरह और उम्मीदों का पहला महीना मानते हैं.

भोजपुरी में के कालजयी नाटक ‘बिदेसिया’ में लोकनट सम्राट भिखारी ठाकुर ने एक बारहमासा रचा है. उसकी शुरुआत भी आसाढ़ से ही होती है- आवेला असाढ़ मास, लागेला अधिक आस, बरखा में पिया घरे रहतन बटोहिया… भिखारी ठाकुर के बाद पुरबिया उस्ताद और भोजपुरी लोकगीतों के राजकुमार महेंदर मिसिर ने भी शानदार बारहमासा रचा है. वे लिखते हैं- गरजत आसाढ़ मास, पिया नहीं आयो पास…

मैथिली में थोड़ी विविधता आती है, लेकिन आसाढ़ केंद्र में ही होता है. महाकवि विद्यापति ने भी खूब बारहमासा रचे. एक बारहमासा उनका बेहद लोकप्रिय है- प्रीतम हमरो तेजने जाइ छी परदेशिया यौ, धरबै जोगनीक भेष… असाढ़ पुरि गेल बारह मास यौ,धरबै जोगनीक भेष… विद्यापति आसाढ़ को आखिरी माह के रूप में लाते हैं. अधिकतर बार पहले महीने की तरह, तो कहीं-कहीं यह आखिरी माह के रूप में भी आता है, लेकिन आसाढ़ लोकभाषाओं की दुनिया में, विशेषकर बारहमासा में एक खास महीना बनकर उभरता है. इस अासाढ़ पर अगर लोकगीतों की दुनिया में और विचरें, तो एक से एक गीत मिलते हैं.

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