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करोड़पति-आरोपी सांसदों की वृद्धि

रविभूषण वरिष्ठ साहित्यकार ravibhushan1408@gmail.com अर्थशास्त्रियों और समाज वैज्ञानिकों के लिए यह शोध का विषय है कि वित्तीय बाजार, कॉरपोरेट और याराना पूंजी से अपराध का क्या किसी प्रकार का कोई संबंध है या नहीं? नवउदारवादी ‘अर्थव्यवस्था और उनिभू’ (उदारीकरण, निजीकरण, भूमंडलीकरण), जिसे इन पंक्तियों का लेखक पिछले पच्चीस वर्ष से ‘दुष्टत्रयी’ कह और लिख रहा […]

रविभूषण
वरिष्ठ साहित्यकार
ravibhushan1408@gmail.com
अर्थशास्त्रियों और समाज वैज्ञानिकों के लिए यह शोध का विषय है कि वित्तीय बाजार, कॉरपोरेट और याराना पूंजी से अपराध का क्या किसी प्रकार का कोई संबंध है या नहीं?
नवउदारवादी ‘अर्थव्यवस्था और उनिभू’ (उदारीकरण, निजीकरण, भूमंडलीकरण), जिसे इन पंक्तियों का लेखक पिछले पच्चीस वर्ष से ‘दुष्टत्रयी’ कह और लिख रहा है, के बाद भारतीय संसद में एक साथ करोड़पतियों और संगीन अपराध के आरोपियों की संख्या कैसे बढ़ी? एडीआर (एसोसिएशन ऑफ डेमोक्रेटिक रिफर्म्स) और न्यू इलेक्शन वाच के अनुसार, वर्तमान सांसदों में से 43 प्रतिशत सांसदों ने अपने ऊपर आपराधिक मुकदमों की जानकारी दी है. 542 में से 233 सांसदों पर आपराधिक मामले दर्ज हैं.
2009 में 30 प्रतिशत सांसदों (कुल संख्या 162) और 2014 में 34 प्रतिशत सांसद (कुल संख्या 185) पर आपराधिक मामलों का प्रतिशत क्रमश: 14 और 21 प्रतिशत था. इस लोकसभा में संख्या में उछाल आया, 9 प्रतिशत का. गंभीर आपराधिक मामलों का प्रतिशत 19 है.
भाजपा के 39 प्रतिशत सांसदों (116), कांग्रेस के 57 प्रतिशत सांसदों (29), द्रमुक के 43 प्रतिशत सांसदों (10), तृणमूल कांग्रेस के 41 प्रतिशत सांसदों (9), जदयू के 81 प्रतिशत सांसदों (13) पर आपराधिक मामले दर्ज हैं.
इन दलों के अलावा वाइएसआर कांग्रेस के 10, शिवसेना के 11, बीजद के एक, बसपा के पांच, तेलंगाना राष्ट्र समिति के तीन, लोजपा के छह, राकांपा के दो, सपा के दो, तेलुगु देशम पार्टी के एक, माकपा के दो और दो निर्दलीय सांसदों पर आपराधिक मामले हैं. लोजपा के सभी छह सांसदों पर आपराधिक मामले हैं और सबसे कम आपराधिक मामला बीजू जनता दल के सांसद पर है,मात्र एक.
मात्र 10 वर्ष में (2009 के बाद) ऐसे सांसदों की संख्या काफी बढ़ी है. इनमें से कई सांसदों ने अपने प्रतिद्वंद्वियों को लाखों मत के अंतर से हराया है.
केरल के इडुक्की लोकसभा संसदीय क्षेत्र से निर्वाचित कांग्रेसी सांसद एडीवी डीन कुरिआकोसे ने अपने शपथ-पत्र में यह बताया है कि उन पर 204 आपराधिक मुकदमे दर्ज हैं. इन्होंने अपने प्रतिद्वंद्वी को एक लाख 71 हजार, 53 वोटों से हराया. 11 सांसदों ने यह जानकारी दी है कि भारतीय दंड संहिता के सेक्शन 302, जो हत्या से संबंधित है, के तहत उन पर मुकदमे दर्ज हैं.
इनमें से सर्वाधिक संख्या भाजपा के सांसदों की है, पांच. भोपाल की सांसद प्रज्ञा सिंह ठाकुर ने मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह को, 03 लाख, 64 हजार, 822 मतों से पराजित किया. बसपा के घोसी (उत्तर प्रदेश) से सांसद अतुल कुमार सिंह ने एक दिन भी चुनाव-प्रचार नहीं किया और वह एक लाख, 22 हजार मतों से जीते. उनकी जमानत की अर्जी खारिज की जा चुकी है.
अभी सोशल मीडिया पर ओडिशा के बालासोर के भाजपा सांसद प्रताप चंद्र सारंगी छाये हुए हैं और केंद्रीय राज्यमंत्री बनने के समय सर्वाधिक तालियां उनके नाम पर बजी थीं, पर आपराधिक धमकी, दंगा, धर्म के आधार पर दुश्मनी बढ़ाने, जबरन वसूली के आरोप के तहत उनके खिलाफ सात आपराधिक केस दर्ज हैं. इस बार की मोदी सरकार में 39 प्रतिशत मंत्रियों (22) पर आपराधिक मामले दर्ज हैं. पिछली सरकार में यह संख्या 31 प्रतिशत थी. पांच वर्ष में यह वृद्धि आठ प्रतिशत की है. ये सभी सांसद जनता द्वारा चुने गये हैं.
वर्तमान 539 सांसदों में से 475 सांसद करोड़पति हैं, जिनमें कमलनाथ के पुत्र नकुलनाथ शीर्ष पर हैं- 660 करोड़ रुपये के मालिक. इस चुनाव में सबसे अमीर बिहार के पाटलिपुत्र से एक निर्दलीय प्रत्याशी था, जिनका नवी मुंबई में कृषि भूमि 1,100 करोड़ रुपये की थी. संसद में करोड़पतियों की संख्या लगातार बढ़ रही है. साल 2009 की लोकसभा में 315 सांसद करोड़पति थे. साल 2004 में इनकी संख्या इसकी आधी थी. अब संसद में 88 प्रतिशत सांसद करोड़पति हैं.
भाजपा के 265, कांग्रेस के 43, द्रमुक के 22, तृणमूल कांग्रेस के 20, वाइएसआर के 19, शिवसेना के सभी 18 सांसद करोड़पति हैं. प्रत्येक सांसद की औसत संपत्ति 20.93 करोड़ रुपये है. सबसे कम संपत्ति वाली सांसद आंध्र प्रदेश की अरुक संसदीय सीट से विजयी गोद्देती माधवी हैं, जिनकी चल-अचल संपत्ति मात्र एक लाख, 47 हजार रुपये है. अभी मोदी सरकार के 57 मंत्रियों में से 51 मंत्री करोड़पति हैं, जो कुल 91 प्रतिशत है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इस सूची में 46वें नंबर पर हैं.
चुनाव अब सबसे बड़ा आर्थिक निवेश है. भारतीय राजनीति में धन और अपराध का बोलबाला बढ़ता ही गया है. राजनीतिक दल धनाढ्यों और अपराधियों को टिकट देने में संकोच नहीं करते. मतदाता करोड़पतियों और गंभीर अपराध के आरोपियों को चुनाव में जीत दिला कर संसद भेजते हैं. क्या इसके बाद आर्थिक असमानता मिटेगी? अपराध खत्म होगा?
भ्रष्टाचार कम होगा और क्या ये करोड़पति और आरोपी लोकतंत्र को समृद्ध करेंगे? करोड़पति और संगीन अपराध के आरोपी चुनाव कैसे जीतते हैं, क्यों जीतते हैं, यह गंभीर अध्ययन का विषय है. भारतीय मतदाता और राजनीतिक दल का इससे स्वभाव और विचार प्रकट होता है. नयी सरकार में 91 प्रतिशत मंत्री करोड़पति हैं और 39 प्रतिशत मंत्रियों पर अपराध के मामले दर्ज हैं.

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