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भारत-चीन संबंधों में बेहतरी की उम्मीद

वैसे तो ब्रिक्स के छठे शिखर सम्मेलन में ब्राजील पहुंचे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की यात्रा की सफलता का आकलन इस आधार पर किया जायेगा कि वे ब्रिक्स विकास बैंक की स्थापना और इसमें समूह के देशों की बराबर की हिस्सेदारी को सुनिश्चित करवाने में कहां तक प्रभावी रहे, पर यात्रा की एक उपलब्धि को अभी […]

वैसे तो ब्रिक्स के छठे शिखर सम्मेलन में ब्राजील पहुंचे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की यात्रा की सफलता का आकलन इस आधार पर किया जायेगा कि वे ब्रिक्स विकास बैंक की स्थापना और इसमें समूह के देशों की बराबर की हिस्सेदारी को सुनिश्चित करवाने में कहां तक प्रभावी रहे, पर यात्रा की एक उपलब्धि को अभी से रेखांकित किया जा सकता है.

यह उपलब्धि है चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग के साथ उनकी मुलाकात में जिनपिंग का दोस्ताना मिजाज, जो भविष्य के संबंधों के मामले में शुभ संकेतों से भरा है. यह मुलाकात ब्राजील के तटीय शहर फोर्तालिजा में मोदी और जिनपिंग के पहुंचने के तुरंत बाद हुई. मुलाकात 40 की जगह 80 मिनट तक चली. चीनी राष्ट्रपति ने 21 देशों के एशिया-पैसिफिक आर्थिक सहयोग संगठन की नवंबर में होनेवाली बैठक में आने के लिए मोदी को न्योता दिया.

यह एक तरह से आर्थिक महाशक्ति के रूप में भारत के बढ़ते प्रभाव को चीन की स्वीकृति सरीखा है. मुलाकात से मिले संकेतों के आधार पर कहा जा सकता है कि आनेवाले दिनों में इतिहास प्रदत्त ‘सीमा-विवाद’ दोनों देशों के बीच मुख्य मसला नहीं रह जायेगा और इसकी जगह लेंगे आर्थिक सहयोग के मुद्दे. चीनी राष्ट्रपति ने सीमा विवाद को उठाया जरूर, पर दोस्ताना समाधान की पैरोकारी भी की. बातचीत में आर्थिक सहयोग के मुद्दे हावी रहे. जहां चीनी राष्ट्रपति ने भारत के साथ आधारभूत संरचना के विकास में कुछेक महत्वपूर्ण परियोजनाओं को शुरू करने पर बल दिया, वहीं मोदी ने चीन के साथ आर्थिक सहयोग बढ़ाने की अपनी प्रतिबद्धता को दोहराया.

यह सही है कि चीन के साथ भारत का व्यापार घाटा कुछ ज्यादा ही बड़ा (पिछले साल 29 अरब डॉलर) है, पर यह बात भी गौर की जानी चाहिए कि चीनी राष्ट्रपति ने भारत की चिंता को दूर करने के लिए भारतीय सेवा-क्षेत्र से चीन में आयात बढ़ाने की बात कही है. मोदी सरकार को शासन संभाले अभी डेढ़ माह ही हुए हैं, इस बीच भारत और चीन के बीच चार उच्चस्तरीय बातचीत हो चुकी है और चारों के केंद्र में आर्थिक निवेश का मसला मुख्य रहा है. इससे संकेत मिलते हैं कि भारत और चीन के आर्थिक संबंधों को आगे के दिनों में निर्णायक दिशा मिल सकती है, जिसमें फायदा दोनों देशों को है और नुकसान किसी को नहीं.

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