हिमांशु ठक्कर
पर्यावरणविद्
ht.sandrp@gmail.com
जैव विविधता पर मंडराते खतरे को लेकर आयी रिपोर्ट एक चेतावनी है कि हम अब भी नहीं संभले, तो इंसानी जीवन पर बहुत बड़े संकट में फंसकर दम तोड़ने लगेगा.बीते सोमवार को पेरिस में आईपीबीईएस (इंटरगवर्नमेंटल साइंस-पॉलिसी प्लेटफॉर्म ऑन बॉयोडाइवर्सिटी एंड इकोसिस्टम सर्विसेज) द्वारा प्रकाशित इस रिपोर्ट को दुनियाभर के पचास देशों के तकरीबन डेढ़ सौ वैज्ञानिकों ने तैयार किया है. सारे वैज्ञानिकों ने मिलकर इस बात का जायजा लिया है कि पूरी पृथ्वी पर जैव विविधता को बनाये रखनेवाले जैव एवं पादप प्रजातियों की मौत हो रही है और कई तो विलुप्त होने के कगार पर आ खड़े हुए हैं.
साल 1992 में भी जैव विविधता को लेकर एक ऐसी ही रिपोर्ट आयी थी, लेकिन उसमें तथ्यात्मक रूप से गहराई और विश्लेषण कम था. अब इतने सालों बाद यह जो रिपोर्ट आयी है, वह बहुत ही गहराई से विश्लेषित और विस्तृत है. साल 2012 में स्थापित आईपीबीईएस जैव विविधता के लिए बनाया गया एक ऐसा प्लेटफॉर्म है, जिसमें 132 सदस्य देश शामिल हैं.
आईपीबीईएस ने इस रिपोर्ट को तैयार करने में साढ़े तीन सौ से ज्यादा वैज्ञािनकों की मदद ली है. बीते 29 अप्रैल से 4 मई के बीच पेरिस में हुई वैज्ञािनकों की बैठक में इस रिपोर्ट का सिर्फ एक हिस्सा साझा किया गया. पूरी रिपोर्ट डेढ़ हजार पृष्ठों की है, जिसे इस साल के अंत तक प्रकाशित कर दिया जायेगा.
यह रिपोर्ट बताती है कि पृथ्वी पर दस लाख जैव और पादप प्रजातियां गंभीर रूप से खतरे में हैं. पर्यावरण को लेकर दुनियाभर में चिंताएं जाहिर की जाती रही हैं, लेकिन उसके बावजूद इन प्रजातियों पर खतरा कम नहीं हुआ है.
साल 1980 से लेकर 2000 के दौरान, महज बीस सालों में करीब दस करोड़ हेक्टर प्राकृतिक जंगलों का विनाश हुआ. पूरी पृथ्वी का 75 प्रतिशत जंगली हिस्सा आज बहुत ही बुरी हालत में है और उसे बरबाद करने में हमने कोई कसर नहीं छोड़ी है. उस हिस्से पर या तो खेती हो रही है, या फिर जानवरों और उनका चारा उपजाने के लिए उपयोग हो रहा है.
वैज्ञानिकों का मानना है कि जैव विविधता पर मंडराते संकट का सवाल सिर्फ प्रजातियों को बचाने का सवाल नहीं है, बल्कि इसका असर हम इंसानों की जिंदगी, हमारी अर्थव्यवस्था, हमारे खाद्य उत्पादन, पीने का पानी आदि पर भी पड़ रहा है, जिसका अर्थ है कि इंसानी जिंदगी एक बड़े खतरे की ओर बढ़ रही है.
इस पृथ्वी पर जीवन की सुरक्षा का पूरा ढांचा ही आज खतरे में है और आज आप देख ही रहे हैं, भारत के 40 प्रतिशत हिस्से में सूखा पड़ा हुआ है. क्यों?
वैज्ञानिकों ने जैव विविधता के इस संकट के लिए मुख्य पांच कारण गिनाये हैं. और मजे की बात है कि इसमें जलवायु परिवर्तन का स्थान पहले पर नहीं है.
हालांकि, जब भी पृथ्वी को संकट से उबारने की बात आती है, तो हम हमेशा जलवायु परिवर्तन की ही बात करते हैं, बाकी चीजों पर जरा भी ध्यान नहीं देते. लेकिन, रिपोर्ट में वैज्ञानिकों के मुताबिक पहला कारण है जमीन और समंदर के उपयोग में भारी बदलाव.
यानी जमीन पर जंगल को नष्ट करना, भूमिगत जल का दोहन करना और समंदर को कई तरह के कचरे से भरते जाना, यह सबसे पहला कारण है. दूसरा कारण है कि प्रकृति में जो भी दूसरे जीवधारी हैं, उनका हम अपने लिए शोषण कर रहे हैं. तीसरा कारण के रूप में जलवायु परिवर्तन आता है.
जलवायु परिवर्तन के बारे में इस रिपोर्ट में डॉ वॉटसन (यूके के रसायनज्ञ) ने कहा है कि आज पृथ्वी के तापमान में मात्र डेढ़-दो डिग्री वृद्धि का सवाल नहीं है, बल्कि हम जिस तरह से गैसों का उत्सर्जन कर रहे हैं, उस ऐतबार से साढ़े तीन डिग्री तक बढ़ने की पूरी संभावना है. इसका मतलब है कि जैव विविधता पूरी तरह से नष्ट हो जायेगी. समुद्र में कोरल्स का होना जैव विविधता का एक बहुत बड़ा हिस्सा है, जो तापमान बढ़ने पर खत्म हो जायेगा.
चौथा कारण प्रदूषण है और पांचवां एवं आखिरी कारण जीएम स्पेसीज यानी जेनिटकली मोडीफाइड प्रजातियां. इससे तात्पर्य यह है कि मान लीजिये अगर अफ्रीका से कोई मछली भारत में लायी गयी, तो वह मछली जिस भी पानी में रहेगी, वहां की व्यवस्था कॉलोनाइज करके उस पर नियंत्रण हासिल कर लेगी, जिससे वहां की बाकी प्रजातियां जीवित नहीं रह सकतीं.
इन सभी कारणों की वजह से जैव विविधता पर खतरे बढ़े हैं और लाखों प्रजातियां खतरे में हैं. तकरीबन 40 प्रतिशत उभयचर पशुओं को खतरा है, 33 प्रतिशत समुद्री कोरल्स पहले ही नष्ट हो चुके हैं, और पूरे समुद्री स्तनधारियों को खतरा है. वैज्ञानिकों ने एक बात यह भी कही है कि अभी कीटों पर कितना खतरा है, इसके बारे में विस्तृत जानकारी नहीं जुट पायी है, फिर भी लगता है कि 10 प्रतिशत कीटों की प्रजाति पर खतरा है. ऐसे बहुत सारे आंकड़े इस रिपोर्ट में मौजूद है.
इन खतरों से निपटने के लिए वैज्ञानिकों का सुझाव है कि सबसे पहले हर देश को अपनी-अपनी जैव विविधता का सही-सही जायजा लेना चाहिए, रिपोर्ट तैयार करना चाहिए और इंसानी समाज पर उसका क्या असर पड़ रहा है, इन सबका अध्ययन करके ही बड़े बदलाव करने के लिए समूचित कार्ययोजना बनायें.
(वसीम अकरम से बातचीत पर आधारित)