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घोषणापत्र में शिक्षा को शामिल नहीं करना दुर्भाग्यपूर्ण

लोकतंत्र का महापर्व चुनाव की चर्चा हर जगह हो रही है. आज नेताओं द्वारा जनता के विकास के लिए तरह-तरह के वादे किये जा रहे हैं. मगर किसी नेता अथवा पार्टी द्वारा शिक्षा में लगातार हो रही गिरावट के संबंध में कोई चर्चा नहीं होना बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है. विभिन्न दलों के चुनाव घोषणा पत्र में […]

लोकतंत्र का महापर्व चुनाव की चर्चा हर जगह हो रही है. आज नेताओं द्वारा जनता के विकास के लिए तरह-तरह के वादे किये जा रहे हैं. मगर किसी नेता अथवा पार्टी द्वारा शिक्षा में लगातार हो रही गिरावट के संबंध में कोई चर्चा नहीं होना बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है.

विभिन्न दलों के चुनाव घोषणा पत्र में शिक्षा में सुधार को शामिल करना तो दूर चुनाव सभाओं में जिक्र करना भी मुनासिब नहीं समझा गया. आज विद्यालयों की स्थिति, भौतिक उपस्करों की कमी, शिक्षकों की कमी, खेल मैदान का अभाव, प्रयोगशाला की कमी, शिक्षकों के वेतन की समस्या आदि के तरफ किसी का ध्यान नहीं जा रहा है. आये दिन प्रायः शिक्षक अपनी मांगों के लिए जिले से लेकर राजधानी की सड़कों पर प्रदर्शन करते हुए देखे जाते हैं और लाठी खाकर घर आते हैं, लेकिन नतीजा सिफर होता है.

गोविंद कुमार, बाबु अमौना (दाउदनगर)

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