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सूखे का संकट

जून-जुलाई में मॉनसून के कमजोर रहने की आशंका खेती के लिए चिंताजनक है. बारिश का अनुमान लगानेवाली निजी संस्था स्काईमेट ने बताया है कि अलनीनो के कारण जून में 23 और जुलाई में नौ फीसदी कम बारिश हो सकती है. इसका सबसे ज्यादा असर मध्य और पूर्वी भारत पर होगा. हालांकि, पूरे मॉनसून (जून से […]

जून-जुलाई में मॉनसून के कमजोर रहने की आशंका खेती के लिए चिंताजनक है. बारिश का अनुमान लगानेवाली निजी संस्था स्काईमेट ने बताया है कि अलनीनो के कारण जून में 23 और जुलाई में नौ फीसदी कम बारिश हो सकती है.

इसका सबसे ज्यादा असर मध्य और पूर्वी भारत पर होगा. हालांकि, पूरे मॉनसून (जून से सितंबर तक) में बारिश औसत के 93 फीसदी तक होने का आकलन है, किंतु जून और जुलाई बहुत अहम है, क्योंकि खरीफ फसलों की बुवाई इन्हीं महीनों में होती है. अगर यह अनुमान सही होता है, तो औसत से कम बारिश का यह लगातार तीसरा साल होगा.

इससे खेती पर नकारात्मक असर तो पड़ेगा ही, पानी की उपलब्धता भी कम हो जायेगी. भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (गांधीनगर) द्वारा संचालित प्रणाली ने मार्च के आखिरी दिनों का विश्लेषण कर बताया है कि देश का 42 फीसदी जमीनी हिस्सा सूखे की चपेट में है. सबसे ज्यादा संकट आंध्र प्रदेश, बिहार, गुजरात, झारखंड, कर्नाटक, महाराष्ट्र, राजस्थान, तमिलनाडु, तेलंगाना तथा पूर्वोत्तर के कुछ इलाकों में है.

इन राज्यों में भारत की करीब 40 फीसदी आबादी रहती है. अभी तक केंद्र सरकार ने किसी भी क्षेत्र को सूखा-प्रभावित घोषित नहीं किया है, परंतु आंध्र प्रदेश, गुजरात, कर्नाटक, महाराष्ट्र, ओडिशा और राजस्थान की सरकारों ने कई जिलों को संकटग्रस्त श्रेणी में डाल दिया है.

जानकारों का मानना है कि अभी मॉनसून में देरी है, सो आगामी तीन महीनों में इन इलाकों में हालत और गंभीर होगी. जून और जुलाई में अगर ठीक से बारिश नहीं हुई, तो संकट गहरा हो जायेगा. पिछले साल अक्तूबर से दिसंबर के बीच सामान्य से 44 फीसदी कम बरसात हुई थी.

इस अवधि की बारिश पूरे साल की बारिश का 10 से 20 फीसदी होती है. पिछले मॉनसून में सामान्य से 9.4 फीसदी कम बरसात हुई थी. यदि यह कमी 10 फीसदी होती है, तब मौसम विभाग सूखे की घोषणा कर देता है. भारत को 2015 से इस मुश्किल का सामना करना पड़ रहा है. साल 2017 की अच्छी बारिश ने बड़ी राहत दी थी और खाद्यान्न उत्पादन भी बढ़ा था, पर उसके बाद मॉनसून कमजोर पड़ता रहा है. बड़े जलाशयों में पानी क्षमता से काफी कम है.

सूखे से जहां कृषि संकट बढ़ेगा, वहीं सिंचाई और अन्य जरूरतों के लिए भूजल का दोहन भी अधिक होगा. इसका एक नतीजा पलायन के तेज होने के रूप में भी हो सकता है, जिससे शहरों और अन्य क्षेत्रों पर दबाव बढ़ेगा. निश्चित रूप से यह स्थिति अर्थव्यवस्था के लिए बड़ी चुनौती होगी और इससे जूझना आगामी सरकार के लिए आसान नहीं होगा.

देश के राष्ट्रपति और वित्त मंत्री रह चुके प्रणब मुखर्जी ने कभी कहा था कि देश का असली वित्त मंत्री मॉनसून है. भूजल, नदियों और जलाशयों के साथ जमीनी हिस्से के लिए पानी का सबसे बड़ा स्रोत बारिश ही है. ऐसे में जरूरी है कि सरकारें और संबद्ध विभाग इस संकट का सामना करने की तैयारी तेज करें.

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