23.1 C
Ranchi

BREAKING NEWS

Advertisement

अब नहीं आयेगी सवेरे वाली गाड़ी

।। कुमार राहुल ।। प्रभात खबर, भागलपुर मुझे याद है, जब मेरे गांव का धनेसर उर्फ हाकिम शायद पहली बार दिल्ली से कमा कर धनरोपनी के समय गांव आया था, तो आने से पहले उसने चिट्ठी लिखी थी. उसकी पत्नी मुझ से ही चिट्ठी पढ़वाने आती थी. मैं उस समय दूसरी या तीसरी कक्षा का […]

।। कुमार राहुल ।।

प्रभात खबर, भागलपुर

मुझे याद है, जब मेरे गांव का धनेसर उर्फ हाकिम शायद पहली बार दिल्ली से कमा कर धनरोपनी के समय गांव आया था, तो आने से पहले उसने चिट्ठी लिखी थी. उसकी पत्नी मुझ से ही चिट्ठी पढ़वाने आती थी. मैं उस समय दूसरी या तीसरी कक्षा का छात्र था. जैसे-तैसे चिट्ठी-पतरी पढ़ लिया करता था. उसने लिखा था- हम इस बार गांव जनता गाड़ी (जनता एक्सप्रेस) से आयेगा.

दरभंगा टीशन के बाद पसिंजर पकड़ कर लोहना रोड उतरेगा. हुआं तुम किसी को लेकर खड़ा रहना. बहुते सामान है. साथ में रेडी (ट्रांजिस्टर) भी है. उस समय मुझे लगता था कि जनता गाड़ी कोई अदभुत चीज है, जो गांव के कई घरों में खुशी की मनुहार करती है. मुझे यह भी याद है कि बेगूसराय का छेदना पंजाब में साहेब की रखवाली करने के दौरान अपना हाथ गंवाने के बाद लालकिला एक्सप्रेस से गांव लौटा था. मां ने उस बार भी खरजितिया की थी कि कम से कम बेटा जिंदा तो है.

मुझे यह भी याद है कि पत्थरों पर बसे फूलों का शहर मधुपुर से गुलाब की खेप लालकिला से भी साहबों के लिए भेजी जाती थी. मेरे गांव से भोर में पाखी की तरह हरेक साल युवकों का हुजूम जनता एक्सप्रेस पकड़ने के लिए सूरज उगने से पहले ही लोहनारोड स्टेशन पहुंच जाया करता था. युवकों के जाने के बाद उसकी आंगनवाली कहती थी- बौउआ, फलाना का बाप तो सवेरेवाली गाड़ी से ‘डिल्ली’ चला गया. उस समय मुझे लगता था कि एक जनता एक्सप्रेस और दूसरी लालकिला नामक रेलगाड़ी ही है, जो मेरे गांव से युवकों को लेकर कहीं चला जाता है.

पीछे रह जाती है महतारी की पीड़ा, आंगनवाली की लालसा और छोटकन का ठुनकना.. बाढ़ में अपना सब कुछ गंवाने के बाद पू-भर पुरैनियां जाने वाले चले जाते हैं इसी सवेरे वाली गाड़ी से, अपना उज्जर धप-धप मखाना छोड़ कर, सफेद हरसिंगार और लाल टुह-टुह दीपमाला (सुबह में यह दोनों फूल पौधे से अपने आप गिर जाते हैं) को धरती पर बिखरे छोड़ कर.. विडंबना देखिये कि पहली बार परदेस मैं भी इसी सवेरे वाली गाड़ी से चला था. जब पहली बार परदेस में उतरा तो वहां ऐसी ही झीनी-झीनी बारिश हो रही थी. पहाड़ी क्षेत्रों की बारिश मैंने देखी नहीं थी.

वह भी इतने नजदीक से. मुझे उस समय भी पता नहीं था कि यह लालकिला और जनता कहां तक जाती है. मेरे अवचेतन में यह बात गहरे तक धंस गयी थी कि ये दोनों गाड़ियां मेरे गांव के कई घरों को रोटी मुहैया करवाती हैं. इतने दिनों के बाद पता चला कि लालकिला और जनता एक्सप्रेस अब नहीं चलेंगी. बुलेट ट्रेन चलाने के लिए ये पुरानी गाड़ियां बंद करनी ही होंगी. शायद यह गाड़ी बाबा की टूटी कुरसियों की तरह घर के अंधेरे कोने में आपको दिख जाये. अबकी सावन झिर-झिर बारिश में हम इस ट्रेन से नहीं उतर पायेंगे, मेरे गांव का धनेसर उर्फ हाकिम अब सवेरे वाली गाड़ी से नहीं आ पायेगा.

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

Advertisement

अन्य खबरें

ऐप पर पढें