अनुज कुमार सिन्हा
वरिष्ठ संपादक
प्रभात खबर
दुनिया में जितना कार्बन उत्सजिर्त होता है, उसमें 26.43 फीसदी सिर्फ चीन का योगदान होता है. फिर अमेरिका है, जो 14.14 फीसदीकार्बन का उत्सजर्न करता है. भारत में दुनिया का सिर्फ 6.14 फीसदी कार्बन उत्सजिर्त होता है, लेकिन आरोप तो भारत पर ही लगते हैं.
अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा सैंडी तूफान व अमेरिका में आयी बाढ़ के लिए भारत और चीन में हुए विकास को दोषी मानते हैं. ओबामा कहते हैं कि अमेरिका में समस्याएं बदतर होती जा रही हैं, क्योंकि भारत व चीन समेत दुनिया के कई देशों की अर्थव्यवस्था मजबूत हुई है, वहां तेजी से कारों और बिजली का इस्तेमाल बढ़ा है. इससे कार्बन डाइऑक्साइड का उत्सजर्न बढ़ा है. ओबामा इतने पर ही नहीं माने. यह भी कह दिया कि इन देशों के लोग उन सभी चीजों का भी इस्तेमाल करना चाह रहे हैं, जो अमेरिकी इस्तेमाल करते हैं. सवाल यह है कि क्या ओबामा चाहते हैं कि भारत, चीन या अन्य विकासशील देशों की अर्थव्यवस्था मजबूत नहीं हो? क्या इन देशों के लोगों को आधुनिक सुख-सुविधाओं के उपयोग का अधिकार नहीं है? अमेरिका की अर्थव्यवस्था को चीन, जापान और भारत की ओर से चुनौती मिल रही है.
चीन ने अमेरिका समेत कई देशों के बाजार पर कब्जा कर लिया है. अगर दुनिया में चीन की सस्ती चीजें अधिक बिक रही हैं, तो उसका लाभ चीन को मिलेगा ही. इन चीजों को बनाने के लिए कंपनियां लगेंगी ही. इसके लगने से कार्बन डाइऑक्साइड का उत्सजर्न होगा ही. लेकिन इसे तकनीक के बल पर नियंत्रित करना होगा, वरना यह विकास बाद के दिनों के लिए आत्मघाती होगा.
यह पहला मौका नहीं है, जब अमेरिकी राष्ट्रपति की जुबान से ऐसी बात निकली है. एक साल पहले उन्होंने अमेरिकी युवाओं को नसीहत दी थी कि मेहनत से पढ़ो, वरना आइटी की तुम्हारी नौकरियों पर भारतीय कब्जा कर लेंगे. शायद उन्होंने तब अमेरिकी युवाओं को प्रेरित करने के लिए यह कहा हो, लेकिन इसका अर्थ यह भी है कि अमेरिका कहीं न कहीं भारतीय प्रतिभाओं या समृद्धि को पचा नहीं पा रहा है. आज भारतीय युवा अमेरिका में अगर आगे बढ़ रहे हैं, नौकरी पा रहे हैं, तो किसी की दया के बल पर नहीं, बल्कि अपनी प्रतिभा के बल पर. भारतीय युवाओं में टैलेंट है और अमेरिका में जब उन्हें अपनी प्रतिभा दिखाने का मौका मिलता है, तो इसका वे लाभ उठा रहे हैं. अब अमेरिका को अहसास हो रहा है कि उनके यहां बेरोजगारी बढ़ रही है, तो इसके लिए भारतीय युवा दोषी हैं. वहां बाढ़ आ रही है तो इसके लिए भारत दोषी है.
हो सकता है कि टिप्पणी करने के समय ओबामा के दिमाग में वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गेनाइजेशन की वह रिपोर्ट हो, जिसे हाल ही में जारी किया गया है. इस रिपोर्ट में दिल्ली को दुनिया का सबसे प्रदूषित (वायु) शहर माना गया है. इस सर्वेक्षण के लिए दुनिया के 91 देशों के 1,600 शहरों को चुना गया था और उसमें अगर दिल्ली का स्थान प्रदूषित शहरों में सबसे ऊपर आता है, तो यह भारत के लिए चिंता की बात है. यह भी देखना चाहिए कि प्रदूषण के कारण अगर आज दुनिया संकट में है तो इसके लिए असली मुजरिम कौन है?
भारत तो औद्योगिकीकरण में दुनिया के विकसित देशों से काफी पीछे रहा है. यह सारा किया-धरा तो अमेरिका व अन्य पश्चिमी देशों का है. आज कार्बन-उत्सजर्न में चीन और अमेरिका के बाद भारत का स्थान आता है. दुनिया में जितना कार्बन डाइऑक्साइड उत्सजिर्त होता है, उसमें 26.43 फीसदी सिर्फ चीन का योगदान है. फिर अमेरिका है, जो 14.14 फीसदी कार्बन डाइऑक्साइड का उत्सजर्न करता है. भारत में दुनिया का सिर्फ 6.14 फीसदी कार्बन उत्सजिर्त होता है, लेकिन आरोप तो भारत पर ही लगते हैं.
अन्य देशों की तरह भारत भी तरक्की कर रहा है. इस पर किसी को आपत्ति नहीं होनी चाहिए. यह एक ग्लोबल संकट है और इसका समाधान मिल कर करना चाहिए. इसके लिए कानून है. उसका पालन होना चाहिए. ऐसी तकनीक का उपयोग हो, जिससे कार या बिजली घरों से न्यूनतम कार्बन निकले. चीन में स्थिति इसलिए बिगड़ी है, क्योंकि विकास की उसकी गति तेज है. भारत, चीन व अन्य विकासशील देश तो अपनी जिम्मेवारी समझे हीं, अमेरिका भी इसे समझे . ग्लोबल वार्मिग पर कई अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन हो चुके हैं. तय हुआ है कि अधिक गैस का उत्सजर्न करनेवालों को दंड भरना होगा, लेकिन कार्रवाई नहीं होती.
भारत भी इस बात को महसूस करता है कि जब भी प्रकृति से खिलवाड़ किया जायेगा, पर्यावरण को नुकसान पहुंचाया जायेगा, उसकी बड़ी कीमत चुकानी होगी. इसलिए भारत हो या दुनिया का कोई और देश, रिसर्च पर ध्यान देना होगा. वैकल्पिक ऊर्जा पर जोर देना होगा. देश जब तरक्की करेगा तो बिजली की खपत बढ़ेगी ही. बिजली का उत्पादन बढ़ाना होगा. लेकिन ध्यान देना होगा कि पर्यावरण को कम से कम क्षति हो. यह तो हर देश और हर व्यक्ति के लिए जीवन-मरण का सवाल है. जिस तरीके से ओबामा ने अमेरिका में आयी बाढ़, तूफान के लिए भारत व चीन को जिम्मेवार ठहराया है, हो सकता है कि आनेवाले अंतरराष्ट्रीय सम्मेलनों में भारत जैसे देशों पर अमेरिका और दबाव बनाये.