36.1 C
Ranchi

BREAKING NEWS

Trending Tags:

Advertisement

सोलहवीं लोकसभा का कामकाज

अंकिता नंदा प्रोजेक्ट एसोसिएट, पीआरएस लेजिस्लेटिव रिसर्च ankita@prsindia.org साल 2019 के बजट सत्र के समापन के साथ 16वीं लोकसभा का अवसान हो गया. पिछले पांच वर्षों के दौरान 133 विधेयक पारित हुए- खास तौर से वित्त, स्वास्थ्य, कानून और न्याय, शिक्षा से जुड़े. पिछली दो लोकसभाओं- 14वीं और 15वीं- की तुलना में 16वीं लोकसभा में […]

अंकिता नंदा

प्रोजेक्ट एसोसिएट, पीआरएस लेजिस्लेटिव रिसर्च

ankita@prsindia.org

साल 2019 के बजट सत्र के समापन के साथ 16वीं लोकसभा का अवसान हो गया. पिछले पांच वर्षों के दौरान 133 विधेयक पारित हुए- खास तौर से वित्त, स्वास्थ्य, कानून और न्याय, शिक्षा से जुड़े.

पिछली दो लोकसभाओं- 14वीं और 15वीं- की तुलना में 16वीं लोकसभा में निचले सदन में एक राजनीतिक दल का बहुमत था. इस लोकसभा ने कई पैमानों पर बेहतर प्रदर्शन किया. हालांकि, 15वीं लोकसभा के मुकाबले 16वीं लोकसभा में अधिक घंटों तक कामकाज हुआ- यानी उत्पादकता ज्यादा रही. लेकिन कई दूसरे मोर्चों पर जरूरी सक्रियता नहीं दिखायी गयी.

सोलहवीं लोकसभा ने कुल 1,615 घंटों तक काम किया और पांच वर्षों के दौरान 331 दिन बैठकें हुईं. पंद्रहवीं लोकसभा के मुकाबले 16वीं लोकसभा ने 20 प्रतिशत अधिक काम किया.

लेकिन, अगर हम उन दूसरी लोकसभाओं से तुलना करें, जो पूरे पांच वर्षों तक चलीं, तो यह ऐसी दूसरी लोकसभा होगी, जिसने सबसे कम घंटों तक काम किया. इस लोकसभा की उन पिछली लोकसभाओं से तुलना करने पर पता चलता है कि बैठक के दिनों में भी गिरावट हुई है.

संसद की तीन मुख्य जिम्मेदारियां होती हैं- कानून बनाने के लिए विधेयक पारित करना, जनहित के मुद्दों पर चर्चा करना और सरकार की जवाबदेही तय करना. संसद विधायी कामकाज पर चर्चा के अतिरिक्त प्रश्न काल, महत्वपूर्ण विषयों पर चर्चा और ध्यानाकर्षण के जरिये अपने मुख्य दायित्व निभाती है.

विधायी कामकाज पर 16वीं लोकसभा का 32 प्रतिशत समय व्यतीत हुआ. यह पिछली लोकसभा की तुलना में अधिक है. जहां तक गैर-विधायी कामकाज का सवाल है, इस लोकसभा में प्रश्नकाल में 13 प्रतिशत, अल्पावधि की चर्चा में 10 प्रतिशत और ध्यानाकर्षण प्रस्ताव पर 0.7 प्रतिशत समय व्यतीत हुआ.

उल्लेखनीय है कि पिछली तीन लोकसभाओं में प्रश्नकाल के घंटों में भी गिरावट दर्ज हुई है. इससे तारांकित प्रश्नों की संख्या पर असर पड़ा, जिनके मौखिक उत्तर दिये जाते हैं.

पंद्रहवीं लोकसभा के मुकाबले 16वीं लोकसभा में प्रश्नकाल के दौरान 67 प्रतिशत ही काम हुआ और उस दौरान 18 प्रतिशत तारांकित प्रश्नों के मौखिक उत्तर प्राप्त हुए. हालांकि, इसमें भी सुधार की गुंजाइश है. चूंकि प्रश्नकाल के दौरान संसद सदस्यों को यह मौका मिलता है कि वे मंत्रियों से उनके मंत्रालयों के बारे में प्रश्न पूछ सकें और उनकी जवाबदेही तय कर सकें.

सोलहवीं लोकसभा में 133 विधेयक पारित हुए, जो कि 15वीं लोकसभा में पारित विधेयकों की तुलना में 15 प्रतिशत अधिक है. इन विधेयकों में जीएसटी, दिवालिया संहिता, आपराधिक कानून (संशोधन) विधेयक और आधार विधेयक शामिल हैं. पिछले पांच वर्षों के दौरान 45 अध्यादेश जारी किये गये और वित्त क्षेत्र पर बहुत अधिक बल दिया गया.

उसके रेगुलेशन पर सबसे अधिक विधेयक लाये गये. वित्त क्षेत्र से संबंधित 26 प्रतिशत विधेयक पारित किये गये. जैसे देश की कर संरचना में सुधार के लिए जीएसटी लाया गया. भगोड़ा आर्थिक अपराधी विधेयक के जरिये आर्थिक अपराधियों को सजा देने का प्रावधान किया गया और बीमा संशोधन विधेयक लाया गया. पारित विधेयकों में 10 प्रतिशत शिक्षा क्षेत्र से संबंधित थे. इनमें से एक विधेयक ने शिक्षा के अधिकार कानून की ‘नो डिटेंशन नीति’ में परिवर्तन किया.

सोलहवीं लोकसभा के अंत में 46 विधेयक लैप्स हो गये. स्वास्थ्य क्षेत्र से जुड़े 70 प्रतिशत विधेयक पारित ही नहीं हुए. इसमें राष्ट्रीय मेडिकल आयोग विधेयक शामिल है, जिसे मेडिकल शिक्षा और प्रैक्टिस को नियंत्रित करने के लिए पेश किया गया था. अन्य विधेयकों में उपभोक्ता संरक्षण विधेयक, तीन तलाक विधेयक, मोटर वाहन विधेयक और नागरिकता (संशोधन) विधेयक शामिल हैं.

सोलहवीं लोकसभा ने 15वीं लोकसभा की तुलना में विधेयकों पर अधिक समय तक चर्चा की. इसके द्वारा पारित 32 प्रतिशत विधेयकों पर तीन घंटे से अधिक की चर्चा हुई.

दरअसल, विधेयक पर अधिक समय तक चर्चा करने से सदस्यों को विधेयक के प्रावधानों पर बहस करने का मौका मिलता है और यह सुनिश्चित होता है कि पारित होनेवाले प्रत्येक विधेयक पर पर्याप्त विचार-विमर्श किया गया है.

पारित होनेवाले विधेयकों की संख्या में बढ़ोतरी और उस पर अधिक घंटों तक चर्चा होने के बावजूद विधेयकों को संसदीय समितियों के पास कम संख्या में भेजा गया. संसदीय समितियां किसी विधेयक की बारीकी से पड़ताल करती हैं. विशेषज्ञों और आम जनता से सक्रिय संवाद होता है और दलों के बीच आम सहमति कायम करने में मदद मिलती है.

सोलहवीं लोकसभा में केवल 25 प्रतिशत विधेयकों को विचार के लिए संसदीय समितियों के पास भेजा गया. जबकि, पिछली 15वीं और 14वीं लोकसभा के दौरान क्रमश: 71 और 60 प्रतिशत विधेयकों को संसदीय समितियों के पास भेजा गया था.अब 17वीं लोकसभा की प्रतीक्षा की जा रही है. इसके मद्देनजर संसदीय समिति की प्रणाली में सुधार की जरूरत है.

कानून प्रभावी तरीके से बनाये जाएं, इसके लिए बड़ी संख्या में विधेयकों को संसदीय समितियों के पास भेजा जाना चाहिए. इसी के समानांतर, संसदीय समिति की प्रणाली को सशक्त बनाने के लिए यह भी जरूरी है कि शोध अनुसंधान के जरिये उन्हें सहयोग प्रदान किया जाये.

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

Advertisement

अन्य खबरें