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मनमानी पर नकेल

विभिन्न तरीकों से छूट देकर ग्राहकों को आकर्षित करना बाजार की पुरानी रवायत है. ऐसा अक्सर त्योहारों के अवसर पर होता रहा है. लेकिन ई-कॉमर्स का खुदरा बाजार में आने के बाद से हालात तेजी से बदले हैं. ई-रिटेल की वेबसाइटों पर अब सालभर छूट, कैशबैक और बचत के ऑफर चलते रहते हैं. इस कारोबार […]

विभिन्न तरीकों से छूट देकर ग्राहकों को आकर्षित करना बाजार की पुरानी रवायत है. ऐसा अक्सर त्योहारों के अवसर पर होता रहा है. लेकिन ई-कॉमर्स का खुदरा बाजार में आने के बाद से हालात तेजी से बदले हैं. ई-रिटेल की वेबसाइटों पर अब सालभर छूट, कैशबैक और बचत के ऑफर चलते रहते हैं. इस कारोबार में जो बड़ी कंपनियां हैं, वे अलग-अलग योजनाओं के साथ खास उत्पादों को सिर्फ अपने पोर्टल से बेचती हैं.

इनमें से कुछ ऐसी वस्तुएं भी होती हैं, जिन्हें बनानेवाली कंपनियों में ई-रिटेल कारोबारियों की हिस्सेदारी होती है. बाजार का एक जरूरी कायदा यह है कि कारोबार के लिए ऐसा माहौल बने, जहां स्वस्थ प्रतिस्पर्धा हो. बड़ी ई-कॉमर्स कंपनियों का वैश्विक बाजार है और उनके पास निवेश करने की अकूत क्षमता है. वे भारी छूट देकर लंबे समय तक घाटा बर्दाश्त कर सकती हैं तथा अपने उत्पादों के लिए बड़ा बाजार बना सकती हैं.

लेकिन, इससे घरेलू व्यवसायी, चाहे वे ई-कॉमर्स में हों या खुदरा दुकान चलाते हों, तबाह हो जाते हैं. ये कारोबारी बहुत समय से ठोस नियमन की मांग करते आ रहे हैं, ताकि बाजार में कुछ मालदार वेबसाइटों के एकाधिकार को रोका जाये. यह असंतुलन इंटरनेट और डेटा-आधारित व्यवसाय की तेज बढ़त से गंभीर होता जा रहा है. कुछ बड़ी ई-कॉमर्स कंपनियों ने अनेक शहरों में दुकानों की बड़ी चेन चलानेवाली कंपनियों से भी साझेदारी बनायी है.

इस विषमता पर अंकुश लगाने के उद्देश्य से सरकार ने बुधवार को कुछ जरूरी निर्देश जारी किया है. इसके तहत चीजों की कीमतों पर बेजा असर डालनेवाली हरकतों पर लगाम लगाया गया है. विदेशी कंपनियों द्वारा प्रत्यक्ष विदेशी निवेश के नियमों के उल्लंघन की शिकायतों का भी संज्ञान लिया गया है. ये निर्देश एक फरवरी से लागू हो जायेंगे. यह स्वाभाविक ही है कि बड़ी कंपनियां नये नियमों पर नाराजगी जता रही हैं.

अभी एक माह का समय है, तो यह उम्मीद की जा सकती है कि सरकार उनकी शिकायतों पर भी विचार करे. उनका यह तर्क वाजिब है कि छूट देने और विशेष उत्पादों को प्रमुखता से बेचने का फायदा ग्राहकों के साथ उन उत्पादों को ई-कॉमर्स साइट के जरिये बेचनेवाले छोटे और मंझोले दुकानदारों को भी मिलता है, लेकिन सिर्फ इस आधार पर अन्य ग्राहकों और कारोबारियों के हितों की अनदेखी नहीं की जा सकती है.

उत्पादन और बाजार की अर्थव्यवस्था में संतुलन बना रहेगा, तो खरीद-बिक्री की प्रक्रिया भी सभी भागीदारों के लिए फायदेमंद बनी रहेगी. डिजिटल आर्थिकी में अपनी जगह तलाशते स्टार्ट-अप की कोशिशों को भी सरकारी नियमन से मदद मिलेगी. इन निर्देशों के साथ ई-कॉमर्स में व्यापक नियमन की दरकार है.

आशा है कि कुछ महीने पहले लाये गये सरकारी प्रस्ताव पर चर्चा भी आगे बढ़ेगी. उसमें भारतीय ग्राहकों के डेटा संग्रहण देश में ही करने और रुपे भुगतान प्रणाली का इस्तेमाल करने जैसे प्रावधान हैं. विश्व व्यापार संगठन की आगामी बैठक के नतीजे भी इस पर असर डाल सकते हैं.

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