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गरीबी में कमी

स्वतंत्र भारत की सात दशकों की यात्रा की सबसे बड़ी चिंता निर्धनता उन्मूलन की रही है. विभिन्न स्तरों पर निरंतर प्रयासों के परिणाम उत्साहवर्द्धक हैं. संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम और निर्धनता एवं मानव विकास पर ऑक्सफोर्ड पहल द्वारा जारी ताजा रिपोर्ट में बताया गया है कि 2005-06 और 2015-16 के बीच 27.1 करोड़ लोगों को […]

स्वतंत्र भारत की सात दशकों की यात्रा की सबसे बड़ी चिंता निर्धनता उन्मूलन की रही है. विभिन्न स्तरों पर निरंतर प्रयासों के परिणाम उत्साहवर्द्धक हैं.

संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम और निर्धनता एवं मानव विकास पर ऑक्सफोर्ड पहल द्वारा जारी ताजा रिपोर्ट में बताया गया है कि 2005-06 और 2015-16 के बीच 27.1 करोड़ लोगों को गरीबी के चंगुल से छुड़ाया गया है. यह आंकड़ा इस लिहाज से बहुत अहम है कि सर्वाधिक वंचना में जकड़े समुदायों- मुस्लिम, अनुसूचित जाति एवं जनजाति- में विकास ज्यादा हुआ है. इस संदर्भ में जहां झारखंड ने बेहतरीन प्रदर्शन किया है, वहीं अरूणाचल प्रदेश, बिहार, छत्तीसगढ़ और नागालैंड जैसे पिछड़े राज्यों में भी प्रगति बहुत अच्छी गति से हुई है.

चूंकि यह अध्ययन गरीबी के साथ स्वास्थ्य, शिक्षा और जीवनयापन के स्तर जैसे विविध कारकों का भी संज्ञान लेता है, इसलिए ये परिणाम न सिर्फ संतोषजनक हैं, बल्कि बहुआयामी वंचना से छुटकारा पाने के लिए उठाये जा रहे कार्यक्रमों का उत्साह भी बढ़ाते हैं, परंतु यह भी ध्यान रखा जाना चाहिए कि इस मोर्चे में लगातार और ठोस पहलों और उनके कार्यान्यवन की आवश्यकता बनी हुई है.

अब भी देश में भयानक निर्धनता में जीने को अभिशप्त लोगों की संख्या 36.4 करोड़ है, जिनमें 25 प्रतिशत दस साल से कम आयु के बच्चे हैं. अतिशय वंचना के त्रस्त इस जनसंख्या का आधे से अधिक हिस्सा चार राज्यों- बिहार, झारखंड, उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश में निवास करता है. दुनिया के अनेक हिस्सों की तरह हमारे देश में भी आर्थिक और सामाजिक विषमता कुछ राज्यों में बहुत कम है, तो कुछ में बहुत अधिक. इसका सबसे बड़ा कारण शिक्षा, स्वास्थ्य, पोषण और स्वच्छता जैसे मसलों पर असमान विकास है. दिल्ली, गोवा, केरल जैसे राज्यों में वंचना सबसे कम है, जहां शहरीकरण व्यापक है तथा मूलभूत सुविधाओं की अच्छी उपलब्धता है.

जहां गरीबी बहुत ज्यादा है, वहां शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार का स्तर भी बहुत खराब है. संयुक्त राष्ट्र की इस रिपोर्ट का एक संदेश तो यह है कि बीते डेढ़-दो दशकों से केंद्र और राज्य सरकारों द्वारा लोगों के जीवन स्तर की बेहतरी के लिए जो कार्यक्रम चलाये जा रहे हैं, उन्हें सक्षमता से जारी रखा जाए और दूसरा संकेत यह है कि नयी कोशिशें भी हों. इस संदर्भ में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का सूत्र ‘सबका साथ, सबका विकास’ बहुत महत्वपूर्ण है.

स्वास्थ्य के मोर्चे पर रविवार से प्रारंभ ‘आयुष्मान भारत’ की वृहद परियोजना से करोड़ों गरीबों और निम्न आय वर्ग के लोगों को बड़ी राहत मिलने की गुंजाइश बनी है. चिकित्सा पर भारी खर्च के कारण देश में करीब पांच करोड़ लोग हर साल गरीबी के शिकार हो जाते हैं.

बीमारी और कुपोषण देश के कार्यबल की ताकत को कमजोर कर देते हैं. इसी के साथ शिक्षा और रोजगार के सवाल पर बड़ी पहलकदमी की दरकार है. आय के रास्ते बनेंगे, तो लोग अपने जीवन स्तर को ठीक कर सकेंगे तथा राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था में भी योगदान दे पायेंगे.

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